Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 83
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] अणालोचे। निशी० १३६ आ। आकस्मिकम्। ओघ. | जम्बू. ३९४। सहस्रपाकं तैलविशेषः। आव० ११६| १५४। सहसा-एककालम्। जम्बू. १०२। अवितर्व्य। सहस्सब्मक्खाण- सहसाभ्याख्यानम्। आव०८२० प्रश्न. ३० अप्रतर्कितम्। ओघ० २२६। सहस्साणीय- उदायनस्य पितृपिता। भग० ५५६) सहसाअब्भाक्खाण- सहसा-अनालोच्याभ्याख्यानं-असद्दो- | सहस्सार-सहस्रारः कल्पोपगवैमानिके भेदविशेषः। प्रज्ञा. षारोपणं सहसाऽभ्याख्यानम्। उपा०। ६९ सहसाकारेह- सहसात् कारयत- आश् पञ्चत्वं नयत। सहसारवडिंसग-आनतकल्पे आचा०२७३। अष्टादशसागरोपमस्थितिक-देवविमानं। सम० २५ सहसागार-सहसाकारः सत्यकल्पनायः भिक्षादोषविशेषः। सहस्रारावतंशकः। सहस्रारदेव-लोकस्य मध्येऽवतंसकः। आव०५७५ जीवा० १९२ सहसारर- सहस्रारः पुरुषोत्तमवासुदेवागमनस्थानम्। सहा- सभा चातुर्वैद्यादिशाला। ३६६। सखा-बालवयस्यः। आव० १६३ स्था० २४५। सखा-समानखादनपानोगाढतमस्नेर्सहसावत्तासियाणि- सहसाऽवत्रासितानि- पराङ्मुखतादेः स्थानम। जीवा. २८१। सभा। औप०४१। सहाः। जम्बू० सपदि त्रासोत्पदकान्यक्षिस्थानगर्भे घट्टनादीनि। उत्त. ३१३। सहाः। जम्बू. १२८। सभा। आस्थायिका। जम्बू. ૪ર૮ી. १४४| सखा-समानखादनपानो गाढतमस्नेहास्पदम्। सहसि- सहसा भयाभावेन। ज्ञाता०७१। जम्बू. १२३। सभा। जम्बू० ३८८ सभानाम सहसुद्राह- सहसा-अकस्माद् उद्दाहः-प्रकृष्टौ दाहः सहसो ग्रामनगरादीनां द्दाहः सहस्राणां वा लोकस्योद्दाहः। स्था०५०८। तद्वासिलोकास्थायिकार्यमागन्तुकशयनार्थं च सहस्रपत्र- जलजम्। प्रज्ञा० ३७। कुड्याद्या-कृतिः। आचा० ३०७। सहस्रपाकतैल-सहस्रपाकतैलम्। आचा० ३१३| सहाकार- विशेषितग्रहणशक्तिलक्षणः। स्था. ९३। सहस्रामवणं-द्वारकायां उद्यानम्। अनुत्त०४९२। सहाकिच्च-सहायकृत्यं-मित्रादिकृवं सहायकम। ज्ञाता० सहस्संबवण- सहस्रामवणं-हस्तिनापरे उदयानम्। विपा. | १९११ ९श सहस्रामवणं-हस्तिनापुरे उदयानम्। भग०७६७ सहामि- तदुत्पत्तावभिमुखतया। स्था० २४७। उदयानविशेषः। ज्ञाता०१५२। पोलासपुर उद्यानम्। सहाय-सहायः-साहाय्यकारी। ज्ञाता०८८। सहायःउपा० ३९| सहचरः। स्था० २४५ सहस्स- सहस्रं अनंतसङ्ख्यायाम्। आव० ४०७। सहायकिच्च-सहायकृत्यम्। आव. ३४६) सहस्सकार- पूर्वमदृष्ट्वा क्षिप्ते पादे यत्पुनः पश्येत् न च | सहायत्तं- सहायत्व साधूनां नमस्कारार्हत्वे हेतुः। आव० शक्नोति निवतितुं पादं तत् सहसात्कारः, ३८३। सहायत्वं अर्हदादीनां नमस्कारार्हत्वे हेतुः। आव० अतिचारविशेषः। आव० १६४। ३७३। सहस्सक्ख-सहस्रमणां यस्यासाविन्द्रः सहस्राक्षः। भग. | सहायपच्चक्खाण-सहायाः-साहाय्यकारिणो यतयस्तत्प्र १७४। पञ्चानां मन्त्रिशतानां सहस्रमणां भवतीति त्याख्याने तथाविधयोग्यताभाविनाऽभिग्रहविशेषरूपः। तद्यो-गादसौ सहस्राक्षः उपा० २६। उत्त० ५८१ सहस्राक्षःसहस्रलोचनः। उत्त०५।। सहावो- स्वभावः यद् मगादीनां राद्विस्वभावमितरद्वा सहस्सपत्त- सहस्रपत्रम्। प्रज्ञा० ३७। जलरुहविशेषः। स। प्रश्न. ३५॥ स्वभावः। प्रश्न ३५ स्वभावः-स्वरूपः। प्रज्ञा०३३ उत्त०६८५ सहस्सपाग- सहस्रेणौषधीनां सहस्रं वा वाराः पक्कम्। बृह. | सहावफुल्ल-स्वाभावफल्लं प्रकृतिविकसितम्। दशवै. २०९ अ। सहस्रपाकैः-शतकत्वोऽपरापरौषधिरसेन ७३ कार्षापणानां शतेन वा तच्छतपाकमेवं सहस्रपाकमपि। | सहावसिद्ध-स्वभावसिद्धं-आत्मार्थं कृतम्। उदगमादिदोष मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [83] "आगम-सागर-कोषः" [५]

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