Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 110
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] सिहाराण ५४८॥ शिवधारण्योः पुत्रः। भग० ५१४। शिष्यः-स्वहस्तप्रवा-जित उपसम्पदागतः सिवभई-शिवभूतिः-रथवीरपरे सहस्रामल्लः, प्रातीच्छकश्च। आचा. २४९। बोटिकमूलपु-रुषः। उत्त० १७८। सिस्सिरिलि-वनस्पतिकायिक। जीवा० २७। सिवभूती-शिवभूतिः सहस्रमल्ल बोटिकमतप्ररूपकः। सिस्सिरिली-अनन्तकायः। भग० ३००। कन्दविशेषः। आव० ३२३ उत्त०६९१। सिवमह-महोत्सवविशेषः। ज्ञाता० ३९। शिवमहः- सिहंडिणो-छिडिणो-शिखावन्तः। ज्ञाता०५७। शिवस्य प्रतिनियतदिवसभावी उत्सवविशेषः। जीवा. सिह-शिखा। आव. २९५) ૨૮] सिहर-शिखर:-पर्वतोपरिवतिकटः। ज्ञाता०६३। श्रीधरः सिवरुव-शिवरूपं-भव्यरूपम्। आव० २१८१ शोभावान्। ज्ञाता०६५ शिखरःसिवलिंग-शिवलिङ्गम्। उत्त० २२१। समुद्रमध्यवर्तिगोस्तूपा-दिपर्वतः। प्रश्न० ९६। सिवसेण-जम्ब्वैरवते दशमतीर्थकृत्। सम० १५३। सिहरभूय-शिखरभूतः-शेखरकल्पः। प्रश्न. १५२ सिवा- शक्रदेवेन्द्रस्य द्वितीयाऽग्रमहिषी। भग० ५०५ | सिहरि-शिखरी-कूटविशेषः। स्था०७ शिखरी। स्था० चतुर्द-शतीर्थकर्तुः प्रथमा शिष्या। सम० १५२॥ ७०| नमिनाथस्य माता। सम० १५१| शिक्षायोगदृष्टान्ते सिहरिकुड-शिखरीवर्षधरनाम्नाकूटः। जम्बू० ३८१| हैहयकलसम्भूतवैशालिकचे-टकची पुत्री। आव. सिहरिणी-शिखरिणी-गुडमिश्रं दधिः। प्रश्न १५३। ६७६। शिवा-शृगाली। अनुयो० १४२। शिवा शिखरिणी-पानकविशेषः। आचा० ३३० मार्जिता। नेमिनाथमाता। आव० १६०| शिवा-धर्म-कथायां आचा० ३३६| निशी. ४० आ। नवमवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० २५३। शिवा-सदामङ्ग- सिहरिणि-चतुर्भिर्गन्धद्रव्यैराधिक्येनोपजनितवासा लोपेता। जम्बू०७६। शक्रदेवेन्द्राग्रमहिषीनां राजधानी। | कूरमध्ये प्रक्षिप्यमाणा शिखरं बध्नाति सा शिखरिणी। स्था० २३१। बृह. १७८1 सिवादवी- शिवादेवी-प्रयोतस्य चतर्थं रत्नं, देवी। आव० | सिहरी-शिखरी शिखरवान् गिरिः। भग० २३८1 शिखरीना६७३३ मवर्षधरपर्वतः। जम्बु. ३८११ शिखरी-शिखरसमन्वितः। शिवानन्दा-आनन्दश्राद्धस्य पत्नी। उपा० २। नन्दी. २८८ शिखरी-वृक्षस्तत्संस्था संस्थितानि सिवासद्द-शिवाशब्दः। आव० ४००० सर्वरत्न-मयानि सन्तीति तद्योगाच्छिखरी, कोऽर्थःसिविया-शिबिका-कूटाकाराच्छादितजन्पानरूपा। भग. अत्र वर्षधराद्रौ यानि ५४७ सिद्धायतनकूटादीन्येकादशकूटान्यक्तानि तेभ्योऽतिरिसिव्वे-सीवितम्। आव० ४२११ क्तानि बहनि शिखराणि वृक्षाकारपरिणतानि सन्तीति। सिसिर-शिशिरः-माघमासस्य लोकोत्तरीयनाम। जम्ब० जम्बू. ३८१। शिखरी-शिखरवान् पर्वता। अनुयो० १७१। ४९० शिशिरः-सप्तममासस्य लोकोत्तरनाम। सूर्य शिखरा-शिखरयुक्तः पर्वतः। प्रज्ञा० ७१] १५३। शिशिरः-शीतकालः। ओघ. १४५) सिहल-म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा. ५५ सिसुनाग-शिशुनागः-अलसः। व्यव० २८८ आ। सिहलि-सिंहलीः-धात्रिविशेषः। ज्ञाता० ३७, ४१। शिशुनागो-गण्डुपदोऽलसः। उत्त० २४६। सिहि- मयूरः-अग्निश्च। भग० ३०९। सिसुपाल-शिशुपालः-माद्रीसुतः। अवगतये दृष्टान्तम्। सी-सूत्रत्वेनाकारलोपात् असि-भवति। उत्त० ३३९। सूत्र० ७९। दमघोषपुत्रः। ज्ञाता० २०८। स्त्यायते-कठिनीभवत्यस्मिन जलादीति शीतम्। उत्त. सिस्स-शिष्यः-विनेयः। प्रश्न. ३८ शिष्यउपाध्यायस्यो-पासकः। जीवा० २८० शिष्यः सीअ-शीतः-अनकूलः परीषहः। स्था० ४४४। उपाध्यायस्योपासकः शिक्षणीय इत्यर्थः। जम्बू० १२२॥ | सीअधरं- शीतगृह-जलयन्त्रगृहम्। व्यव० ३९८ अ। ३८ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [110] "आगम-सागर-कोषः" [१]

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169