Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-५)
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सुब्भी-जं भोयणं वण्णगंधरसफासेहिं सुभेहिं उववेतं तं द्वितीयबल-देवमाता। सम० १५२। प्रथमचक्रिणो सुब्भि। निशी. १५० आ।
हस्त्रीरत्नम्। सम० १५२कालवालस्य सुभ-सुभवडेंसगे सींहासनम्। ज्ञाता० २५१। शुभं-निर- द्वितीयाऽग्रमहिषी। स्था० २०४। शुभद्रा-इहलोके पायम्। पिण्ड० २११ शुभं-मङ्गलभूतम्। जीवा० १८८५ कायोत्सर्गफलदृष्टान्ते जिनदत्तश्रेष्ठिस्ता। आव. शुभफलम्। जीवा० २०१। शुभं-सामायिकस्य
७९९। प्रतिमाविशेषः, तपविशेषः। औप. ३१| षष्ठपर्यायः। आव० ४७४। सुभगः-सौभाग्ययुक्तः। सूर्य अन्तकृद्दशानां सप्तमवर्गस्य दशममध्ययनम्। अन्त० २९२। शुभं-पुण्यम्। आव० ५९२। शुभं-अर्थावहम्। भग० २५। शुभद्रा-वणिग्ग्रामे विजयमित्रसार्थवाहभार्या । १६३। जलरुहविशेषः। प्रज्ञा० ३३
विपा० ४६। सुभद्रा-बलराज्ञी। विपा० ९५। सुभद्रादवीसागरोपमस्थितिकं देववि-मानम्। सम० ८1 विजयबलदेवमाता। आव० १६२। सुभद्रा-भद्रस्य नमिनाथस्य प्रथमशिष्यः। सम० १५२
भारिया। निर०२९। सुभद्रासुभकंत-द्वीसागरोपमस्थितिकं देवविमानम्। सम०८1 योगसंग्रहेऽनिश्रितोपधानविषये उज्जयिन्यां सुभगंध-दवीसागरोपमस्थितिकं देवविमानम्। सम०८1 श्रेष्ठिभार्या। आव०६७०| सुभद्रासुभग-सुभगम्। प्रज्ञा० ३७। पद्मविशेषः। राज०८। यद्द- भद्राप्रतिमासमाप्रतिमा। स्था०६५। शुभद्रायवशादनुपकृदपि सर्वस्य मनःप्रियो भवति
भद्राप्रतिमासमाप्रतिमा, द्वितीया प्रतिमा। स्था० १९५१ तत्सुभगनाम। प्रज्ञा० ४७४। सभगं-पद्मविशेषः। जीवा० सुभद्रा। उत्त० ३५४| पञ्चप्रतिमायां द्वितीया। स्था० १७७ज्ञाता०९६|
२९२। सुभद्रा-इहलोके कायोत्सर्गफलमितिदृष्टान्ते सुभगा-वल्लीविशेषः। प्रज्ञा० ३ त्रीन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा. कायो-त्सर्गकारिणीजिनदत्तश्रेष्ठिस्ता परमश्राविका। ४२। भूतेन्द्रस्य चतुर्थाऽग्रमहिषी। स्था० २०४। सुरूपभूते- आव०७९९। सुभद्रा-प्रियचन्दराज्ञी। विपा. ९५ न्द्रस्य चतुर्थाऽग्रमहिषी। भग० ५०४। सुभगं-पद्मविशेषः। जिनदत्तसुश्रावकस्य पुत्री सुभद्रा। दशवै०४७। जम्ब्वाःजम्बू. २६। धर्मकथायां पञ्चमवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० सुदर्शनायाः पञ्चमं नाम। जीवा. २९९। सुभद्रा२५२
सत्योदाहरणे शौर्यरे धनञ्जयश्रे-ष्ठिभार्या। आव. सुभगाकर- दुर्भगमपि सुभगमाकरोतीति विद्याविशेषः। ७०५ वैरोचनेन्द्रस्य दवितीयाऽग्रमहिषी। स्था० २०४। सूत्र० ३१९।
अन्तकृद्दशानां सप्तमवर्गस्य दशममध्ययनम्। अन्त० सुभजोग- शुभयोगः-उपयुक्ततया प्रत्युपेक्षादिकरणम्। २५ भग० ३२
सुभद्दाव-मण्डयेत्। गणि। सुभणाम- शुभनाम-यदुदयाद्नाभेरुपरितना अवयवाः सुभद्र- यक्षभेदविशेषः। प्रज्ञा०७० शुभा जायन्ते तत्शुभनाम। प्रज्ञा० ४७४।
सुभद्रा-वापीविशेषः। जम्बू० ३७०| कृष्णवासुदेवभागिनी सुभद्द- द्वितीयवासुदेवधर्माचार्यः। सम० १५३| सुभद्रः- अर्जुनपत्नी। प्रश्न० ८९। भरतचक्र स्त्रीरत्नम्। जम्बू. सहजनीनगर्यां सार्थवाहः। विपा०६५
२५२, २७२। अनुशिष्ट्यामुदाहरणम्। व्यव० ११७ अ। द्वितीयौवेयकप्रत-स्तटः। स्था०४५३। अरुणोदे सम्द्रे | सुभफास-विसागरोपमस्थितिकं देवविमानम्। सम० ८। देवविशेषः। जीवा० ३६७। षोडशमसागरोपमस्थितिकं । सुभर-कुव्वासहेत्यर्थः। निशी. ३३२आ। देवविमानम्। सम० ३२। शुभद्रः
सुभलेस-विसागरोपमस्थितिकं देवविमानम्। सम०८1 द्विपृष्ठवासुदेवधर्माचार्यः। आव० १६३। निर-यावल्यां सुभवण्ण-विसागरोपमस्थितिकं देवविमानम्। सम. द्वितीयवर्गे चतुर्थममध्ययनम्। निरया० १९। अचलपुरीयः कौटुम्बिकः। मरणः |
सभा– रमणिज्झविजये राजधानी। जम्बू. ३५२। शुभासुभद्दा-वतिरोयणेन्द्रस्य दवितीयाऽग्रमहिषी। भग. वैरोचनेन्द्रस्य प्रथमाऽग्रमहिषी। भग. ५०३। शुभा-| ५०४। नागवित्रस्य द्वितीयाऽग्रमहिषी। भग० ५०४ स्था० ८०| शुभफला। जम्बू०४६।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [५]

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