Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-५)
[Type text]
दवात्रिंशन्नाट्यविधयो भाविताः। जीवा. २४६।
१४५। तस्य। दशवै० १५६। असौ-परिप्रश्नार्थः। भग. सूर्यावसिप्रविभक्तिः - पञ्चमनाट्ये भेदः। जम्बू. ४१६। बहुवचनार्थः ते। जम्बू. ३७) तत्। भग०१४। सल-शूलं-शस्त्रविशेषः। आव०६५१। शूलम्। जम्बू. तस्य। आव० ४३८ अथ-वाक्योपन्या-सार्थः परिप्रश्नार्थो २०६। शूलं-एकशूलम्। जम्बू० २६६। शूलम्। जीवा० वा। भग०१४। तस्य। अनुयो० २५६। सोऽथशब्दार्थो वा। ११७। शूलम्। आव० ५८५। शूलं-एकशूलम्। औप०७१। उत्त० २८४। तच्छब्दार्थे। आचा० ३८१ निशी. १४८ अ। शूलम्। आव० ५१३।
सेशब्दोऽथशब्दार्थः। प्रज्ञा० ८। तस्यै। आव० ४२० सूलग्ग-शूलाग्रम्। जीवा. १०६|
सेशब्दो मागधदेशीप्रसिद्धो निपातः तत्रशब्दार्थे, अथवा सूलपाणो- शूलपाणिः-यक्षविशेषः। आव. १९०|
अयशब्दार्थे, स च वाक्योपन्यासार्थः। प्रज्ञा०७ सेशब्दोशूलपाणिः। जीवा० ३९१
ऽथार्थः। स्था०४९५। एषाम्। भग० १७४। तस्य। भग० सूलाइतयं- शूलिकाभिन्नम्। ज्ञाता० १६३
९३। अथशब्दार्थे प्रश्नार्थश्च। प्रज्ञा०६०१। सुलाइत्त-सूलायमानः। ज्ञाता०१५९।
प्रतिवचनवाचि-नोऽथशब्दार्थस्यार्थे। उत्त. १२६। ससूलाइय-शूलाप्रोतः। ज्ञाता० १५७। शूलायितः-आचरित- सावशेषकुशलकर्मा तेषाम्। उत्त. १८७। अथः। प्रज्ञा० शूलारूपः। ज्ञाता० १५७। शूलायामतिशयेन गत शूलाति- २४६। मगधदेशप्रसिद्धो निपातोऽथशब्दार्थे, अथ शब्दश्च गम्। राज० १३४१
प्रक्रियाद्यर्थाभिधायी “अथ सूलाइयग-शूलाचितकः-शूलिकाप्रोतः। औप० ८७ प्रक्रियाप्रश्नान्तर्यमङ्गलोपन्यासूलिय-शूलकः-कीलकविशेषः। प्रश्न० ८
सप्रतिवचनसमुच्ययेष"। जीवा०४। सेशब्दः मागधदेशीसूलिया- शूलिका-वध्यप्रोतनकाष्ठम्। प्रश्न.1
प्रसिद्धो निपातस्तच्छब्दार्थः। आव० ८२२तस्यारम्भासूव-सूपम्। ओघ० २१५। सूपः-पत्रशाकः। सूत्र. ११७) सोर्यः। आचा० १३०| तस्य। आव० १२८ से तस्यतदीसूपः-राद्धमुगदाल्यादिः। पिण्ड १६८१
यस्य। ज्ञाता०१०२ सूवकारा-श्रेणिविशेषः। जम्बू० १९३
सेअंस-श्रेयांस-पञ्चमो लोकोत्तरमासः। जम्बू० ४९० सूवपुरिस-सूपपुरुषः-सूपकारः। जम्बू. १०५
सेअ-स्वेदः। आव०८४५ सूवियग-पायसो। दशवै० ७५)
सेअमाला- श्वेतमाला-द्रुमजातिविशेषः। जम्बू० ९८१ सूवोदण-सूप ओदनश्च सूपोदनः। ओघ० २१५ | सेअवड- श्वेतपटः-श्वेताम्बरः साधुः। दशवै० ४७। सूसमदुसमा-तृतीयारकः। स्था० ७६|
सेअवि- श्वेतवी-भारदवाजब्राह्मणोत्पत्तिनगरी। आव० सूसरनाम- यदुदयवशात् जीवस्य स्वरः श्रोतृणां प्रीतिहेतु- | १७२।। रूपजायते तत् सुस्वरनाम। प्रज्ञा० ४७४।
सेइंगाला- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२॥ सूसरपरिवादिणि-सूसरपरिवादिनी-वीणाविशेषः। प्रश्न | सेइआ- वे प्रमृति सेतिका। मगधदेशप्रसिद्धो १५९|
मानविशेषः। जम्बू० २४४। सूसुमा-रागतो चिलातिपुत्रेण वर्धिता। व्यव० १२ अ। सेइया-वे प्रसृती सेविका। ज्ञाता० ११९। सेतिका। आव. सेंधणा- ग्रहणम्। निशी. ९८ अ।
६९२२ सेंधव- सिंधवलोणपव्वए लोणं। दशवै० ५१।
सेउ-सेतूः-तदभिज्ञानभूतः पाली तन्मार्गो वा। स्था० सेंवली-सिंगा। दशवै. ८१।।
२९४। अरहट्टजलेन सिच्यते तत्शेत्ः। बृह. ५० । सेतसे-त्वाम्। आचा०४४। स-कश्चित्-अथार्थो वा वाक्यो- मार्गमपङ्गतानां निस्तरणोपायः। स्था० ४६२। कद्दमपक्षेपे। स्था० २४७। तत्शब्दार्थे। आचा० २३४ असौ। बहुलं पाणीयं। निशी. १९२ अ। सेतुः-मार्गः। औप० २। भग० ५४२। निद्देसे। दशवै० ६५ ११८३। असौ। आव. सेदुः-कुल्याजलसेकक्षेत्रम्। औप० २। सेत्ः पालि-बन्धः। २१४। तत्। प्रज्ञा० ५९१। सेशब्दोऽथशब्दार्थः। दशवै. औप०८सेतः-मार्गः, आलवालपाली वा। जीवा. १८९। १४१। सेशब्दः मागधदेशीप्रसिद्धः अथशब्दार्थः। दशवै.
र्गः आलवालपाली वा। जम्बू. ३०
1:-मा
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[140]
"आगम-सागर-कोषः" [१]

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169