Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 105
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] ९८० ३४७ सिद्धिवरा-सकलकर्मक्षयलभ्या भवसिद्धिरिति। प्रश्न. सिद्धार्थ- महावीरपिता। ज्ञाता० १२८१ सिद्धार्थकम्मञ्जरी-सर्षपनालिका। दशवे. १८५। सिद्धिविग्गहगई-सिद्धावविग्रहेण-अवक्रेण गमनं सिद्धालए-सिद्धक्षेत्रस्य प्रत्यासन्नतयोपचारतः सिद्ध्यविग्र-हगतिः। स्था०४९७। सिद्धानामा-लयः, सिद्धालयः, प्रारभारायाः पञ्चमं नाम। | सिद्धी-सिद्धिः-सिध्यन्ति-कृतार्था भवन्ति यस्यां सा प्रज्ञा० १०७। इसत्प्राग्भारयाः षष्ठनाम। सम० २२॥ सिद्धिः, सा च यदयपि लोकाग्रं, सिद्धालत-सिद्धानामाश्रयत्वात् सिद्धाययः। स्था० ४४०। तत्प्रत्यासत्त्येषत्प्राग्भाराऽपि। सिद्धिः-कृतकृत्यः, सिद्धावास-सिद्ध्यावासः मोक्षवासनिबन्धनत्वम्। लोकाग्रमणिमादिका वा। स्था० २४१ सिद्ध्यन्ति अहिंसा-याश्चतुस्त्रिंशत्तमं नाम। प्रश्न. ९९। तस्यामिति सिद्धिः। स्था० ४४०। प्रसिद्धिः विपक्षे सिद्धि-सिद्धिः अशेषसंसारिकप्रपञ्चरहितस्वभावं दोषदर्शनं सिद्धिः। व्यव. १२८ आ। सिद्धिः-यदयपि अशेषद्वन्द्वो -परमलक्षणा वा। परमार्थतः सकलकर्मक्षयरूपा सिद्धाधाराssकाशरूपा वा अणिमालघिमामहिमाप्राकाम्याभीशित्वं वशित्वं तथाऽपि सिद्धाधाराकाशदेशप्रत्यासन्नत्वेनेषत्प्रारभारा प्रतिघातित्वं कामावसायित्वमैश्वर्यलक्षणा। सूत्र० ४६। पृथिवी सिद्धिरुक्ता। भग० ११९। सिद्धिः-सिद्धक्षेत्रस्य प्रत्यासन्नत्वात्। सिध्मः- अष्टम क्षुद्रकृष्टः। प्रश्न० १६६। क्षुद्रकुष्टः। ईषत्प्राग्भारायश्चतुर्थं नाम। प्रज्ञा० १०७। सिद्ध्यन्ति- आचा० २३५ निष्ठितार्था भवन्त्यस्यां प्राणिन इति सिद्धिः सिनाय-स्नातकः, निग्रन्थपञ्चके चतुर्थः। व्यव० ४०२। लोकान्तक्षेत्रलक्षणा। आव० ४०६। लोकाग्रक्षेत्रलक्षणा। | सिन्धु-महानदी। स्था० ७५] कूटविशेषः। स्था०७१। दशवै०१। सिद्धः-सम्बन्धवाचकः इष्टा-र्थसम्बन्धः। | सिन्धुराज- गर्भाधानपरिसाटनरूपमूलदवारविवरणे दशवै०६३। सिद्धः-लोकान्तक्षेत्रलक्षणा। जीव० २५६) राजा। पिण्ड० ४५ सिद्धिः-अशेषकर्मांशापगमेनात्मनः स्वरूपऽवस्था-नता। | सिन्धुविषय-अभिन्नवस्त्रप्रावरणे दृष्टान्तः। बृह० २५३ प्रज्ञा०६०४१ सिद्धिः-अणिमाद्यष्टप्रकाराः। सूत्र. २९९।। | । सिद्धिः-परलोकः। सूत्र. १६० सिद्धिः-अशेष सिन्धुसौवीर-उदायनराज्ञोः जनपदः। प्रश्न०८९। कर्मच्युतिलक्षणा। सूत्र० ३८१। सिद्धिकृतकृत्यता। प्रश्न | सिन्न-विश्रन्तः। ओघ० ९६। १३३। सेधनं सिद्धिः-हितार्थप्राप्तिः। आव०७६० सिप्प-स्थावरकायः। स्था० २९२। शिल्पं-तूर्णनादि इसत्प्राग्भारायाः पञ्चमं नाम। सम० २२॥ साचार्यकं वा। स्था० ३०४। शिल्पं-रथकारकर्मप्रभृतिः। सिद्धिगंडिया- सिद्धिस्वरूपप्रतिपादनपरावाक्यपद्धतिरौप- बह० ९२आ। शिल्प-यदाचार्योपदेशजं पातिकप्रसिद्धाः। भग० ५२११ ग्रन्थनिबन्धादवो-पजायते सातिशयं कर्मापि सिद्धिगइनामधेयं-सिध्यन्ति-निष्ठितार्था भवन्ति तच्छिल्पम्। आव०४०८ शिल्पं -आचार्योपदेशप्राप्यं यस्यां सा सिद्धिः सा चासौ गमनत्वाद् गतिश्च चित्रादि। प्रश्न. ९६। शिल्पं-आवर्जक, प्रीत्युत्पादकम्। सिद्धिगतिस्तदेव नामधेयं-प्रशस्तं नाम यस्य तत्तया पिण्ड० १२९। शिल्पं-कुम्भकारक्रियादि। दशवै. २४९। सिद्धिगतिनामधेयः, महावीरः। भग०७ शिल्पः तूर्णनसीवनप्रभृतिः। पिण्ड० १२९। सिद्धिगती- सिद्धश्चासौ गतिश्चेति वा सिद्धिगतिः। स्था० आचार्योपदेशजं शिल्पम्। जम्बू. १३६) ३३४॥ रहगारचुन्नगारादि। निशी. ४४ अ। शिल्पंसिद्धिमग्ग-सेधनं सिद्धिः-हितार्थप्राप्तिस्तत्मार्गः। चित्रपत्रच्छेदादिविज्ञानम्। उत्त०४२०| शिल्पंसिद्धिमार्गः। ज्ञाता०४९। हितार्थप्राप्त्युपायः। भग० अगमईनादि। औप०६५। शिल्पं चित्रादि। प्रश्न०६४। ४७१। शिल्पं-साचार्यकं चित्रकर्मादि। प्रश्न. ११७। शिल्पंसिद्धिमूल-चरणकरणम्। आव० ५३३। क्रियासु कौशलम्। जीवा० १२२ मनि दीपरत्नसागरजी रचित [105] "आगम-सागर-कोषः" [१]

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