Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 94
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] जिकापुत्रिका। ज्ञाता० १२, ३८1 शालभजिका-स्तम्भ- | सालिभंजिका- शालभजिका-पुत्तलिका। राज० २८१ पुत्तलिका। आव. २३१। शालभम्जिका-पञ्चाली। | सालिभद्द- शालिभद्रः-पूर्वभवे सबहमानं साधवे पायस जम्बू. ५१। शालभजिका पुत्रिका। ज्ञाता० ३८1 | दाता। स्था० ५१० बृह. २६७ अ। शालिभद्रः-वैश्रमणस्य सालवण- शालदनं-उद्यानविशेषः। आव० २१०| जीवा० पुत्रस्थानीयो देवः। भग. २००। शालिभद्रः-श्रावस्त्यां १४५ इभ्यविशेषः। उत्त. २८६) सालवाहण- शातवाहनः, यस्य पृथिवीनामाग्रमहिषी। सालिभसेल्लसरसा-व्रीहिकणिशशूकसमाः। उपा०२१। व्यव० १६८अ। प्रतिष्ठानपुरे राजा। बृह. २७ आ। शाल- | सालिम-शालिम-शालिमयम्। उत्त० ३६९। वाहनः-द्रव्यप्रणिधिविषये सालिवाहण- शालिवाहनः प्रतिष्ठानपूरे राजा। आव०८९) प्रतिष्ठानपराधिपतिर्बलकमृद्धः। आव०७१२। सालिसंपया- शालीसम्पत्। आव. १७७) सालहीपिया- महावीरस्य दशमश्राद्धः। उपा०१| सालिसए-सदृशकमतिनम्रत्वात्। ज्ञाता० १३। सालिस, साला- शाला-गृहविशेषः। ज्ञाता० ३४१ शाखा-मध्यभाग- सदृशकम्। जम्बू० २८५। सदृशकम्। जीवा० २३२। प्रभवा ऊर्ध्वगता शाखा। जम्बू. ३३२ शाला-शाखा। सालिसत्थियामच्छ-मत्स्यविशेषः। प्रज्ञा० ४४। जीवा० १८७। शाला-शाखा। ओघ० १६६। शाला- सालिसीसय- शालिशीर्षः-ग्रामविशेषः। आव २०९। गृहविशेषः। निर० २२। जत्थ विक्कड़ सा साला, अहवा साली- शालीः-लोहितशाल्यादिः। उत्त० ३१७ शालिःअक्कुडा साला। निशी० ६९ अ। जे खंधओ निग्गया ते धान्यविशेषः, तृणपञ्चके प्रथमो भेदः। आव०६५२| साला। दशवै० १११। शाला। बृह. ६२ | निशी० २६५ वलय-विशेषः। प्रज्ञा० ३३। औषधिविशेषः। प्रज्ञा० ३३ अ। शाखा। जीवा. २०७१ अटवी चोरप-ल्लीविशेषः। तृण-विशेषः। स्था० २३४। कलमादिकः। भग० २७४। विपा. ५५ शाला-शाखा। जीवा. २९४। शाला-शाखा। धान्य-विशेषः। सूत्र० ३०९। औप०७। शाला-भाण्डशालादिका। प्रश्न० १३८१ शाखा।। सालीपिहरासी- शालिपिष्टराशिः-शालिक्षोदपुञ्जः। प्रज्ञा० ३१। शाला-गृहम्। सूत्र० ३२४। शाखा जीवा० १९१| मूलशाखाविनिर्गतशाखा। जम्बू० ३२४। शाखा सालीवन्न-शालिवर्णः शक्लम्। ज्ञाता० २३०| विडिमाऽपरपर्याया दिक्प्रसृता सालु- शालकः-उत्पलकन्दः भगवत्यां एकादशशतके शाखामध्यभागप्रभवाऊर्ध्व-गता। जम्बू० ३३२ शाला- द्विती-योद्देशकः। भग० ५१११ शाखा। जीवा० २२८१ सालुअ-शालूकः-उत्पलकन्दः। दशवै०१८५ सालकंसालाग- शालाक्यं शलाकायाः कर्म शालक्यं कन्दकौजलजः। जाला० ३४८। तत्प्रतिपादकं तन्त्रमपि शालक्यं। आयुर्वेदस्य सालुग-सालकम्। आव०४०५। उप्पलकन्दः। दशवै. द्वितीयाङ्गम्। विपा० ७५ ८६| सालगिह-विक्केयं भंडं जत्थ छढं चिट्ठति सा। निशी. | सालुगा- शालियवादीनां तुषाः। बृह. १५८ आ। २६५। सावइज्ज-स्वापतेयं, द्रव्यम्। जम्बू० १४२। स्वापतेयंसालाती- शलाकायाः कर्म शालक्यं तत्प्रतिपादकं तन्त्रं रजतसुवर्णादिद्रव्यम्। ज० १२२ शालक्यम्। स्था० ४२७ सावए- श्रावकः-प्रतिपन्नाव्रतः। बृह. १२७ अ। श्रावकः सालि-शालि-औषधिः। भग० ३०६। शालिः-व्रीहिभेदः। -व्याख्यानविधौ दृष्टान्तः। आव० ९६। दशवै० १९३। शाली। आव० १८१। शालिः-कालमादिका- सावएज्ज-स्वापतेयं द्रव्यम्। भग० १६३। स्वापतेयं नामिति विशेषः शेषाणां व्रीहीणामिति। स्था० १२४ द्रव्यम्। अनुयो० २५४। सालिउद्देसए– षष्ठमशतस्य सप्तमोद्देशकः। भग० ५३४। | सावकंखा-सहावकाङ्क्षया-घटिकाद्वयाद्युत्तरकालं सालिणी- शालन्ते-शोभन्ते। प्रश्न. १४० भोजना-भिलाषरूपया वर्तत इति सावकाङ्क्षम्। उत्त० सालिपिहरासी-सालिपिष्टराशिः। प्रज्ञा० ३६१। ६०० मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [94] "आगम-सागर-कोषः" [५]

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