Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 92
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] सायागारव- सातगौरवं संयमानु-ष्ठाने रतः स्वारतः। आचा० १९३। सारकः। सुखप्राप्त्यभिमानाप्रात्तप्रार्थनद्वारेणा अध्यापनद्वारेण प्रवर्तकः स्मारको वा, अन्येषां त्मनोऽशुभावगौरवम्। आव० ५७९। विस्मृतस्य स्मारणात्। ज्ञाता० ११०| सायासुक्खपडिबद्ध- सातसौख्यप्रतिबद्धः-सातत्-पुण्य- सारकंता- संध्याग्रामस्य पञ्चमी मुर्छना। स्था० ३९३। प्रकृतेः सकाशान्यत्सौख्यं-सुखं गन्धरसस्पर्शलक्षणं सारकत्ताल- वलयविशेषः। प्रज्ञा० ३३ विषयसम्पादयं तत्र प्रतिबद्धः तत्परो ब्रह्मचारी। स्था० | सारक्खति- उचितोपचारकरणतः। संरक्षितः। जम्बू. ४४५ १२६| सायासोक्ख- सातात्-सातवेदनीयोदयात् सौख्यं सुखम्। | सारक्खण-संरक्षणा। आव०४०५। ज्ञाता० १८०| सातसौख्यं- आह्लादरूपं सौख्यम्। जीवा० | सारक्खणानुबंधि- संरक्षणानुबन्धिः-संरक्षणे-सर्वोपायैः ४०३ परि-त्राणे विषयसाधनधनस्यानबन्धो यत्र तत्। स्था. सायि-सातिः-विश्रामः। राज० ११५ १८९। सायिसंपओ- सातिसम्प्रयोगः-यः सातिशयेन द्रव्येण सारक्खणिज-संरक्षणीयम्। आव. ९३। कस्तू-रिकादिना अपरस्य सम्प्रयोगः। राज० ११५ सारक्खमाणी-संरक्षयन्ती पालयन्ती। ज्ञाता०९१| सायेय-साकेत नगरं, मित्रनन्दिराजधानी। विपा. ९५ सारक्खह- संरक्षय। आव० ३७३। संरक्षत। आव २०१। सारंग- सारङ्गं प्रधानदलम्, सारङ्गमदः-कस्तूरी। जम्बू सारक्खामि-संरक्षामि। भग० ६७३। १८३। चतुरिन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा० ४२। चतुरिन्द्रियजन्तु- | सारक्खेत्ता-उपायेन चौरादिभ्यः संरक्षयिता। स्था० ३८६। विशेषः। जीवा० ३२ सारगल्ल- वनपस्तिविशेषः। भग०८०३। सारंभ-सरम्भः-वधसङ्कल्पः। भग० ३३५। सारण- यादवविशेषः। ज्ञाता०२१३। सारणः-यादवापत्यः। सारंभइ-संरभते-विनाशसड़कल्पं करोति। भग० १८३। प्रश्न०७३/कृत्यं प्रति प्रवर्तनः। उत्त०५३५/सारणः सार-सारः-सफलः। सम० १२२। सारः-परमार्थः। नन्दी. अन्तकृद्दशानां तृतीयवर्गस्य सप्तममध्ययनम्। अन्त० १५७, १६४। सारः काष्ठमध्यम्। स्था० १८६। सारः- फलं ३। पश्न०७३। कृत्यं प्रति प्रवर्तनः। उत्त० ५३५) सारणः प्रधानतरं वा। आव०६९। सारः-प्रधान्यम्। ओघ. २२२१ प्रसर्पणं स्मारणम्। ओघ० १५८१ सारः-गर्भः। जम्बू० ३८। सारः-शुभपुद्गलोप-चयजः, | सारणा- चोदना। आव० २७१। शिक्षणा। बृह. ११३। आ। शारीरः शक्तिविशेषः। अनुयो० १५८ अक्षय्यम्। प्रश्न | स्मारणा-विस्तृतेऽर्थे स्मारणा। व्यव० ७२।। ९। सारं-सामर्थ्यम्। आव० ७८८1 सारः-सन्दोहः। आव० | सारणि- सारिणी। आव० ५८१। ६१९। सारः-शुभपुद्गलोपचयजन्यो धातुविशेषः। जम्बू | सारदबलाहए- शाबदबलाहकः शरत्कालभावी बलाहकः। १८२। सारं-अभेद्यत्वेनाभगुरम्। जम्बू. २०१। प्रज्ञा० ३६३| भ्रमरपत्रान्तर्गतो विशिष्टश्यामतोपचितः प्रदेशः। सारइं- सार्द्र-यबदिः शुष्काकारमप्यन्तर्मध्ये सार्द्रमास्ते। जम्बू. ३२ सारः-समूर्छिमभजपरिसर्पतिर्यग्योनिकः। सूत्र० ३८६ जीवा०४० सारः-विवक्षितकर्मणः परमार्थः। आव. सारभंड- सारभाण्ड-महामूल्यवस्त्रादिः। उत्त० ४५५। ४२६। सारः- सामर्थ्य विभवो वा। सूत्र. २७८। कहूँ। सारमंत- सारवत्-विशिष्टार्थयुक्तम्। अनुयो० १३३। निशी० १४१ अ। प्रधानः। ज्ञाता०६। अर्थम्। बृह० ४० सारवं- सारवत् बहुपर्यायं सूत्रगुणः। आव० ३७६) आ। | सारवंत- सारवत् बहुपर्यायं सूत्रगुणविशेषः। आव० ३७६) सारइए-शारदिकः-शरदकालजातः। ज्ञाता० १०१। | सारवद-अर्थेन युक्तम्। स्था० ३९७। सारवत-गोशब्दवसारइयं- शरदि भवं शारदम्। उत्त० ३३८1 बहुपर्यायम्। अनुयो० २६२१ सारए- सारकः स्मारको वा प्रवर्तकः विस्मृतस्य सूत्रादेः | सारवए- सारपके-साराकारके व्यव० २०० स्मारणात्। भग० ११४। सुष्ठ्वा जीवनमर्यादया | सारवणं- निष्क्रिय, संमार्जितं वा। ओघ० ४१। प्रमार्जनम्। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [92] "आगम-सागर-कोषः" [५]

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