Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 85
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] सर्वावयवाश्चतुरस्रलक्षणाविसंवादिनो यस्योपरि च | साकेय- साकेतं नगरविशेषः। आव०६२। कुरूदत्तपुत्रप्रति यत्तदनुरूपंन भवित तत्सादिसंस्थानम्। सम० १५० मास्थितस्थानम्। उत्त. १०६। साइसंपओग-सहानिशयेन संप्रयोगः सातिशयेन द्रव्येण | साखा- शाखा। उत्त० ३०० शाखा-विडिमा। जीवा० ३६३। कस्तूरिकादिनाऽपरस्य द्रव्यस्य संप्रयोगः साखापारओ- शाखापारगः। आव० ३०० सातिसम्प्रयोगः। सूत्र० ३३०| सातिसम्प्रयोगः- साग-शाको-वस्तुलादिभर्जिका। स्था० ११०| शाकःविगुणद्रव्यस्य द्रव्यान्तरमी-लनेन तक्रसिद्धः। स्था० ११९। वृक्षविशेषः। उत्त०६५४| शाकः गुणोत्कर्षभ्रमोत्पादनम्। प्रश्न. ९७। वत्थुलभर्जिकादिः। पिण्ड० २२॥ वनस्पतिविशेषः। साई-स्वातिः। स्था० ७७ भग०८०२। शाकः-तक्रसिद्धः। भग. ३२६। शाकःभावीत्रयोविंशतितमतीर्थकृन्नाम। सम० १५स्वातिः- वस्तुलादि। उपा० ५। सौवस्तिकशाकः। उपा० ५। शाकःवायुभूतेर्जन्मनक्षत्रम्। आव० २५५ तक्रसिद्ध-शाकः। प्रश्न. १६३। शाकः-वस्तुलादिभर्जिका, साईकारावण-सत्यङ्कारः। आव०६८५) शाकः-तक्रसिद्धः। सूर्य० २९३। साउणिय- शकुनान् हन्तीति शाकुनिकः। प्रश्न. १३॥ सागओ-स्वागतः। आव० १८९। शकुनेन चरतीति शाकुनिकः। प्रश्न. १३। शकुनेन- सागड- शाकटं-गन्त्रीविशेषाणां समूहः। भग० ६७१। श्येनादिना मृगयां करोतीति शाकुनिकः। प्रश्न० ३७। सागतए-आलिङ्गनम्। आव० ३४९। शाकुनिकः शकुनेन चरति पापर्धिं करोति शकुनान् वा सागपत्त- शकपत्रम्। प्रज्ञा० ३६७ सर्गपत्रंघ्नन्तीति शाकुनिकः। अनुयो० १३०| वृक्षविशेषपर्णम्। प्रश्न 1 साए- हस्तविशेषः। प्रज्ञा० ३३। सागय-स्वागतम्। आव०६७। स्वागतसाएअ-साकेतं-चन्द्रावतंसकनगरम्। आव० ३६६। शोभनमागमनम्। भग० ११६| साएए-अनुत्तरोपपातिके पञ्चमवर्गे नगरम्। अनुत्त० सागयमणुरागयनगरविशेषः। अन्त०२३ शोभनत्वानुरूपत्वलक्षणधर्मद्वयोपेतमागमनम्। भग. साएय- साकेतं-नगरविशेषः। अनुयो० ८1 वारत्तते ११७ नगरम्। अन्त०२३। साकेतं-मूलगुणप्रत्याख्याने सागरंगमा- सागरं-समुद्रं गच्छतीति सागरङ्गमाशत्रुञ्जयरा-जधानी। आव०७१५। साकेतं समुद्रपातिनी। उत्त० ३५२। साकेतात्समकटकभ्रान्तः। उत्त० ३७९। साकेतं- सागर- सागरः-दत्तवासुदेवधर्माचार्यः। आव० १६३। बलदेअलोभोदाहरणे पुण्डरीकराजधानी। आव०७०१| ववासुदेवयोः पूर्वभवधर्माचार्यः। सम० १५३। दुरितविशेषः। प्रज्ञा० ३३। साकेतं-नगरं, यत्र अन्तकृद्दशानां प्रथमवर्गस्य तृतीयमध्ययनम्। अन्त० कुरूटोत्कुटौ दोषार्तेतरोपाध्यायौ कालं गतौ। आव. १। सागरः-इन्द्र-दत्तराजस्य दासचेटः। उत्त. १४८१ ४६५। केतं-चिह्न सह केतेन वर्तते सकेतं-सचिह्नम्। सागरः-अयं क्वचि-त्काले प्रचरसलिलो भवति भग. २९७। साकेतं-कोशलजनपदे आर्यक्षेत्रे नगरम्। क्वचित्पूनर्मर्यादावस्थ एव उप-माविषयः। ओघ०६९। प्रज्ञा० ५५ ईशानकल्पे सागरोपमस्थितिकं देवविमानम्। सम० २१ साकड्ढ़ते- समाकर्षयन्। भग० १७५१ द्वादशमं स्वप्नम्। ज्ञाता०२० सागरः-अन्तकृद्दशानां साकार- साकारत्वं द्वीतीयवर्गस्य द्वितीयमध्ययनम्। अन्त०३। विच्छिन्नवर्णपदवाक्यत्वेनाकारप्राप्तत्वम्। सम०६३। । सागरः-तितिक्षोदाहरणे चतुर्थो दासचेटः। आव० ७०२। साकारपस्सी-साकारपश्यत्ता। प्रज्ञा० ५३१| सागरः-दासचेटः। आव० ३४३| साकेअ-साकेअं-अभिनन्दनस्य प्रथमपारणकस्थानम्। सागरकंत-ईशानकल्पे सागरोपमस्थितिकं देवविमानम। आव. १४६ सम० २। साकेत- नगरविशेषः। दशवै. २८१। | सागरकूट- वक्षस्काराधिपतिवासकूटम्। जम्बू० ३३७। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [85] "आगम-सागर-कोषः" [१]

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