Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 87
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] रिकम्। दशवै० ५७। सागारिकः-स्थानदाता। सम०४०। | साडुअ- अबद्धास्थिफलम्। आव० ६८४। सहागारेण-गेहेन वर्तत इति सागरः स एव सागारिकः। | साडेतूण- शाटयित्वा। आव० ८३१| भग०७००| सागारिकः- आव० ८५३| अंगादाणं| निशी० | साडोल्लए- उत्तरीयवस्त्रम्। ज्ञाता०२३५ ३३ अ। उत्प्रावाजनभयं। बृह. ४४ अ। मेहणं। निशी साडूढी- श्रद्धा-धर्मेच्छा सा विदयते यस्यऽसौ श्रद्धावान्। २१७ । सागारिकम्। आव०७३९| आचा० २२३ सागारियपसंग-मैथुनम्। बृह. २०८ अ। साणं-स्वेषां आत्मीयानाम्। प्रज्ञा० ८९। श्वानं-मण्डलम्। सागारियपिंड-सागारिकपिण्डं सागारिकः दशवै. १६७१ श्वानः-कौलेयकः। प्रश्न. ७ ज्ञाता०९४। शय्यातरस्तस्य- पिण्डं-आहारं, यदि वा सूतकगृहपिण्डं दिशाचरविशेषः। भग०६५९। जुगुप्सितं वर्णापस-पिण्डं वा। सूत्र० १८१। साणए- सणसूत्रमयं वस्त्रं सानकम्। बृह. २०१। सागारिया-सागारिकाः सज्ञातकाः। बृह० ३८ अ। साणत- सणसूत्रमयं सानकम्। स्था० ३३८1 सागारियागार-सागारिकाकारः। आव० ८५३। साणवणीमत- वणीमगे चतुर्थो भेदः। स्था० ३४१। सागारोवउत्त-आकारः-प्रतिनियतोऽर्थग्रहणपरिणामः, साणावच्छादारासंघट्टणा- श्वानवत्सदारकसंघट्टना। आव. सह आकारेण वर्तते इति साकारः स चासावुपयोगश्च १७५ साकारोप-योगः। प्रज्ञा० ५२६। साणिय-साणयं-साणवत्कलनिष्पन्नम्। आचा० ३९३। सागेय- कौशलाजनपदे राजा, साकेतः। ज्ञाता० १३०| साणी-सवणक्केहिं विज्जइ। दशवै. ७७। शाणीअतनगरविशेषः। अन्त० २३। साकेतं-यत्र सम्यक्त्ववान् सीवल्कजा पटी। दशवै. १६६। चन्द्रावतंसको नाम राजा। उत्त. ३७५ सिद्धौ नगरम्। । साणुक्कोस-सानुकोशः सदयः। प्रश्न०७४| सान्क्रोशःअन्त० २३। साकेतं नगरं, यत्र अशोगदत्तेभ्यस्य पूत्रौ सकरुणः। उत्त०४९१| जातौ। आव० ३९४। साणुक्कोसया- सानुकोशता। आव०६५ सानुकम्पता। सागेयनगर- महाकालिन्दायाः पूर्वभववास्तव्या नगरी। भग०४१२॥ ज्ञाता०२५२। साणुणाति- आरामे गंभीरे जत्थ वा खेत्ते पडिसद्दो भवति सागेयनयर- नगरविशेषः। आव. २५३। तं साणुणाति। निशी० ९९ आ। साङ्ख्य-शास्त्रविशेषः। आव० ३७५ साणुप्पओ- चउभागावसेसचरिमाए साचि- शाल्मलीतरुः। जीवा०४३। उच्चारपासवणभूमीओ पडिलेहेयव्वाउत्ति ततो साचिव्य- प्राधान्यम्। नन्दी. ९०| कालस्स पडिक्कमति ततो पडिले-हेति एस साणप्पओ। साची- शाल्मलीतरूः। प्रश्न०४१२। निशी० २१९। साडग- एगदेशखंडस्स पढणं| निशी० २३२ अ। साणुप्पग-प्रत्यूषवेलायां सान्प्रगः। बृह० ३०१ अ। साडगग्गहणा- परिहाणं जवलं वासं। निशी. ३२९ आ। | साणुवीय- अविध्वस्तयोनिबीजम्। आचा० ३४८। साडण- सातनं-उदराबहिःकरणम्। निर०११। शातनं साणुलट्ठिय- सानुलष्ठं-ग्रामविशेषः। आव० २१५१ शातनकरणं यस्य शङ्खोदाहरणम्। आव० ४६२। साणेति- मंदपादो शुक्लपादो वा। निशी. प्रव ३२४ आ। साडणा- शातना-गर्भस्य खण्डशो भवनेन पतनहेत्ः। साण्णि-सावगं| निशी० २११ अ। विपा०४२ सात-आलादः। जीवा० १२३। साडय- शाटकं-वस्त्रमात्रम्। भग० ४७६। शाटकम्। आव. सातवाहण- शातवाहनः प्रतिष्ठाननगरे राजा। व्यव. ३०६। शाटकं-वस्त्रमात्रम्। जम्बू० १६१। शाटिकः। आव. १९३ ३९४१ सातसोक्ख- सातसौख्यं अभिमानमात्रजनितमाहलादम्। साडीकम्म-शाटककर्म शाकटिकत्वेन जीवति। आव. जीवा० १२३ ८१९| | सातागारव- सातागौरवं-सुखशीलता। सूत्र० १७३। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [87] "आगम-सागर-कोषः" [५]

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