Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-५)
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सौर्यपुरे मत्स्यबन्धः। विपा० ७९।
समुद्देसो- समुद्देशः- व्याख्या अर्थप्रदानम्। व्यव० २६ अ। समुद्ददत्ता- समुद्रदत्ता सौर्यपुरे ।
निशी० २५६ आ। सामण्णेणं पासहीणं| निशी पह० समुद्रदत्तमत्स्यबन्धभार्या। विपा.७९।
२३० आ। विसेसओ समुद्देसो, जहा अमुगगणिस्स समुद्दनाम-समुद्रनाम नारायणवासुदेवधर्माचार्यः। आव. दाहामो वायगस्स वा। निशी० १०८ अ। स्थिरपरि-चितं
१६३। अष्टमवासुदेवस्य धर्माचार्यः। सम० १५३। कुर्विदमिति गुरुवचनविशेषः एव समुद्देशः। अनुयो० ४। समुद्दपालिज्ज- समुद्दपालीयं-उत्तराध्ययनेषु
समुद्देसणायरिय- सूत्रस्य समुद्देशनाचार्यः। दशवै० ३१| एकविंशतितम-मध्ययनम्। सम०६४। उत्त० ९०९। समुद्देसिय- समुद्देशिकं विभागौद्देशिके द्वितीयो भेदः। समुद्दलिक्खा- समुद्रलिक्षा-समुद्रोद्भवा लिक्षा। जीवा० ३१| पिण्ड० ७९ द्वीन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा०४१।
| समुदायमाणक- उद्वावनं-प्रहाराय मसुत्तिष्ठन्। प्रश्न समुद्दवायस- चर्मपक्षीविशेषः। प्रज्ञा०४९। भग०६२७। समुद्रवायसः चर्मपक्षिविशेषः। जीवा० ४१।
समुद्धारो- अण्णुण्णा। निशी० ८९ अ। समुद्दविजए- चतुर्थचक्रीपिता। सम० १५२। समुद्रविजयः- समुद्रः- सह मुद्रया-मर्यादया वर्तत इति समुद्रः मघवपिता। आव० १६२रा नेमिनाथपिता। सम० १५१| प्रचुरजलोप-लक्षितः क्षेत्रविशेषो वा। अनुयो० ९० समुद्रविजयः-नेमिनाथपिता। आव० १६१।
समुद्रविजयः- वसुदेवज्येष्ठभ्राता। प्रश्न. ९०| समुद्रविजयः-सौर्यपुरनृपतिः। उत्त० ४८९।
अन्धकवृष्णिः । दशवै. ९७। समुद्दविजओ- समुद्रविजयः शौचोदाहरणे शौर्यपुरे राजा। समुन्नइओ- माणाभिभूतो। निशी० १०० आ। आव० ७०५
समुपस्थान- भूयस्तत्र वासनम्। नन्दी. २०७१ समुद्दविजय-द्वारवत्यां दसाईः। ज्ञाता० २०७।
समुपेहिआ- संप्रेक्ष्य सम्यग्दृष्टया। दशवै० २२३। दशाहमुख्यः। ज्ञाता०९९। समुद्रविजयः दशार्हविशेषः। | समुप्पण्ण- समुत्पन्नं-लब्धसत्ताकं जातम्। जम्बू. २७७। अन्त०
समुप्पेहमाण- सम्यगुत्प्रेक्षमाणं पश्यतो समुद्दा- समुद्राः। अनुयो० १७१।
अनित्यताघ्रातमिदं शरीरमित्येवमनवधारयन्। आचा. समुद्दिह- समुद्दिष्टम्। आ० ८५७। समुद्दिष्टः-भक्तः। २०६।
उत्त० १०८। समुद्दिष्टः भुक्तः। आव० ५३६। समुब्भूय- सम्मुखभूतां एकहेलोत्पन्नम्। स्था० १८७। समुद्दिट्टा- सिद्धाः। आव० ७२७)
समुयाण- समुदानं-भक्षम्। ज्ञाता० १८८। समुदानंसमुद्दिसण- समुददीशनम्। ओघ० ८१]
भिक्षाम्। ओघ० ७९। समुद्दिसिउं- समुद्देष्टुम्। आव० ८५९। समुद्देष्टुं-अत्तुम्। समुयाणकिरिया- समदानक्रिया-विंशतिक्रियामध्ये आव० ११५
सप्तदशम। समुदायोऽष्टकर्माणि, तेषां यथोपादानं समुद्दिस्स- समुद्दिश्य-आश्रित्य। उत्त० २७२। समुद्दिश्य- क्रियते सा समुदान-क्रिया। आव० ६१२॥ आश्रित्य। आचा० २७१।
समयाणिअ-भिक्षातिचारः। ओघ. १७५ समुद्देस- समयप्रसिद्ध साङ्केतिकं नाम। पिण्ड०६। प्रज्ञा० | समुल्लासिया- प्रहरणविशेषः। ज्ञाता० २३९। ४४७
समुवट्ठिया- समुपस्थिता-उभयत्र पद्यता। उत्त० ५१२। समुद्देशकम्म- द्वादशविधे विभागोद्देशके यः चरमत्रिकं समुर्विति- समुपयान्ति प्राप्नुवन्ति, उत्पद्यन्ते। दशवैः तत्र प्रथमः। बृह. ८३।
२४७ समद्देशनाचार्यः- सूत्रस्य समद्देशनाचार्यः। स्था० २९९।। | समुविठ्ठ- सम्यक्-परस्परानाबाधया उपविष्टः समुद्देशिक- पाषंडिन उद्दिश्य क्रियमाणं समुद्देशम्। उद्दिष्टं | समुपविष्टः। जीवा. १९४। कृतं कर्म च-उद्दिष्टचतुर्विधमौदेशिकं समुद्देशिकम्। | समुवेक्खमाण- समुत्प्रेक्षमाणो-निरूपयन्-व्यापारयन्।
ज्ञाता०११॥
बृह. ८३
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[66]
"आगम-सागर-कोषः" [१]

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