Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-५)
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१२६।
यविशेषः। प्रश्न. १३४। गोशालकशतके गोशालकेन | सरजस्क- मतविशेषः। आचा० ३२११ मतविशेषः। आचा. प्ररू-पितकालविशेषः। भग०६७४। केवलं पुष्पावकीर्ण ४०३। शैवाः। आव० ५९। सरः। प्रज्ञा०७२। सरः-स्वयं सम्भूतजलाशयविशेषः। सरजस्कपीणिपादत्व- चतुर्दशममसमाधिस्थानम्। प्रश्न भग० २३८। सरः। प्रश्न०८ सरः-केवलं
१४४ पुष्पप्रकरवद्विप्रकीर्णं सरः। प्रज्ञा० २६७। सरः
सरड-सरटः-जन्तुविशेषः। आव०४१८ सरटोदाहरणंस्वयंसम्भूतो जलाशयविशेषः। अन्यो० १५९। सरः- औपपातिकीबुद्धौ दृष्टान्तः। नन्दी० १५२। शरटः। आव० स्वभावजो जलाशयविशेषः। प्रश्न. १६०| सरः
७११। सरदः-कृकलाशः। प्रश्न० ८। सरटः। आव० ६४९। स्वभावनिष्पन्नम्। उपा०१० स्था० ८६| स्वर:
भुजपरिसर्पविशेषः। प्रज्ञा० ४६। सरटः-कृकलाशः। ओघ. सकलजनादेयत्वप्रकृतिगम्भीरतादिगुणालङ्कृतो ध्वनिः। अनुयो० १५८१ पर्वगविशेषः। प्रज्ञा० ३३। स्वरः- सरडीभूतं- आमम्। निशी. १२६ अ। शब्दः षड्जदिर्वा। प्रश्न० ८२॥ सरकः गुडधातकीसिद्धं । सरडु- सलादुः कोमलम्। पिण्ड. १९ मद्यम्। प्रश्न. १६३। स्वरं-स्वरविषयम्। आव०६६। । सरडुफल- अबद्धास्थिकफलम्। बृह. १७९ आ। एगं महापमाणं सरं। निशी० ७०आ। सरः-स्वयंसम्भू- | सरडूय- अरटअबद्धास्थिकफलम्। बृह. १७९ अ। तजलाशयविशेषः। भग० ३७३। जलाशयविशेषः। ज्ञाता० | सरणं-उवस्सए ठाणं। दशवै. ५१। शरणं-त्राणमज्ञानोप६३| शरः-बाणः। ज्ञाता०२३७)
द्रवोपहतानां तद्रक्षास्थानं, तच्च परमार्थतो निर्वाणम्। सरअ-शरकः निर्मन्थनकाष्टः। भग० ५२०
सम०४॥ शरणंसरऊ- महानदी। स्था०४७७।
संसारकान्तारगतानामतिप्रबलरागादिपीडितानां सरओ- अविणासिदव्वं, चिरमवि अच्छइन विणस्सइ समाश्वासनस्थानकल्पं तत्त्वचिन्तारूपमध्यवसानम्। सो। निशी० २६९ आ।
राज० १०९। गमनम्। ज्ञाता०७१। शरणंसरकंचुओ- सरकञ्चुकः। नन्दी० ८९।
तणमयावसरिकादि। अन्यो०१५९। शरणंसरक-वंशमयच्छिक्का शिक्काकृतिः। जीवा० २६६। संसारकान्तारगतानामतिप्रबलरागादि-पीडितानां सरक्ख- सरजस्कः-कापालिकः। ओघ० १३५
समाश्वसनस्थानकल्पं, तत्त्वचिन्तारूपमध्यवसासरजस्कलिङ्गः भौतलिङ्गः। आव० ६२८भस्म। नम्। जीवा० २५५। शरणम्। जीवा. २६९। शरणं तृणमऔघ०१३३। सरजस्कं-पृथ्वीरजोऽवण्ठितम्। दशवै. यम्। जम्बू. १०७। शरणं-आश्रयः। आव० ५७१। शर२२८। सरजस्कं-भस्म। पिण्ड० १९। सरजस्कः -क्षारः। णम्। प्रश्न ८ शरणं-आश्रयः। उत्त०६५। शरणं-स्मरबृह. २७३ अ। पंसू। दशवै ६८। सरजस्कं
णम्। औप० २२। शरणं-तृणमयावसरिकादिकम्। भग. अतिश्लक्ष्णतया भस्मकल्पम्। पिण्ड० १४९। सरक्खखरंडिय-स्वभस्मखरण्टितम्। आव. ३२१| सरणद-सरणंसरक्खग- सरजस्कः भौताः। औघ०८९।
संसारकान्तारगतानामतिप्रबलरागादिपीडि-तानां सरक्खसूई- सरक्षासूची, रक्षा सूची चेत्यर्थः। पिण्ड० १७। समाश्वसनस्थानकल्पं तत्त्वचिन्तारूपमध्यवसानं सरक्खा- कापालिकादयः। बृह. २५४ आ। रक्खा। निशी. ददा-तीति शरणदः। जीवा० २५६। ३५७ आ।
सरणदए- शरणं-त्राणमज्ञानोपद्रवोपहतानां तद्रक्षास्थानं, सरक्खि-सरजस्कः-सरक्षाको वा। पिण्ड० २११
तच्च परमार्थतो निर्वाणं, तद्दयत इति शरणदयः। सम० सरग-सरगं-शरकाभिः कृतं सर्यादि। आचा० ३५७। शरकः। ४॥ शरणं-त्राणं नानाविधोपद्रवोपद्रतानां तद्रक्षास्थानं, ज्ञाता० २४२। शरकं-शरप्रतिप्रकृतितीक्ष्ण
तच्च परमार्थतो शरणदयः-निर्वाणदायकः महावीरः। मुखमग्न्युत्पा-दकं काष्ठविशेषम्। जम्ब० ३९२। निर० भग०७ २७। सरकः-मदिरापात्रम्। जम्बू०१०१।
| सरणाए- शरणाय-निर्भयस्थित्यर्थम्। आचा० १०८।
शा
૨૨૮.
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [१]

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