Book Title: Agam Sagar Kosh Part 05
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 53
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-५) [Type text] आव० ७६७। सद्भावः। आव० ३५७। सद्भावः-तत्त्वं सभा-स्थानम्। आचा० ४१३। आस्थायिका। भग० ४८३। सम्यग्दर्शनम्। ओघ०४७। तद्भावः तत्त्वं, सभा। भग० २३७ भारतादिकथाविनोदेन यत्र लोकस्तिसम्यग्दर्शनम्। ओघ०४७ ष्ठति सा सभा। अनुयो० २४। सभा। आव० ३८९। सब्भावगिहंतर-सद्भावगृहान्तरं-गृहद्वयमध्यम्। बृह. आगम-नगृहम्। स्था० १५७। सभा-महाजनस्थानम्। २३ प्रश्न. १२६। भगवत्यां दशमशतके सब्भावठवणा- यत्र पुनस्त एवाक्षास्त्रिप्रभृत एकत्र सुधर्भसभाप्रतिपादकी षष्ठोद्दे-शकः। भग०४९२ स्थाप्यन्ते तदा सद्भावस्थापना। ओघ. १२९। सभा-जनोपवेशनस्थानम्। ज्ञाता०७९। कोष्टकसभा। सब्भावदायणा-सद्भावदायणा। ओघ. २२५ ओप०८२ ग्रामजनसमवायस्थानम्। व्यव० ३६२ आ। सब्भावपच्चक्खाण- सद्भावेन-सर्वथा सभा-पुस्तकवाचनभूमिबहूजनसमा-गमस्थानं वा। पुनःकरणासम्भवात्प-मार्थेन प्रत्याख्यानं अनुयो० १५९। ग्रामप्रधानानां नगरप्रधानां सद्भावप्रत्याख्यानं सर्वसंवररूपा शैले-शीति। उत्त. यथासुखमवस्थानहेतुर्मण्डपिका। राज० २३ ५८९। बहुजनोपवे-शनस्थानं शाला वा। बृह. १०७ आ। सब्भावपयत्थ- सद्भावेन-परमार्थेनानुपचारेणेत्यर्थः सभ्यस्थानम्। निशी० ६९ आ। भग०६१७ पदार्था-वस्तूनि सद्भावपदार्थः। स्था० ४४६। एकत्रोपविष्टपुरुष-समुदायः। बृह. १२४ आ। सब्भावसावओ-सद्भावश्रावकः। आव० ८१३। प्रतिभवनविमानभाविनीस-धर्मसभादिका। प्रश्न. १३५। सब्भाविय-साद्भाविकः-पारमार्थिकः निरुपचरितोऽर्थः, सभाओवासा- सभावकाशा। आव०६३। अहिंसादिः। दशवै०६३। सभाव-स्वो भावः-स्वभावः। आव० ५९२। सहजभावः। सभिंतरबाहिर-सर्वाभ्यन्तरान्मण्डलात्परतः निशी. ५४ आ। तावन्मण्डलेषु सक्रमणं यावत् सर्वबाह्य मण्डलं सभावहीणं-स्वभावहीनं यदवस्तुनः स्वभावतोऽन्यथा सर्वबाह्याच्च मण्डलाद-र्वाक तावन्मण्डलेषु सङ्क्रमणं वचनम्। सूत्रे एकोनविंशतितमो दोषः। आव० ३७४। यावत् सर्वाभ्यन्तरमिति साभ्यन्तरबाह्यम्। सूर्य | सभाविय- स्वस्मिन् भावे भवः स्वभाविकः। सूत्र०७। | सभिक्खु- उत्तराध्ययनेषु पञ्चदशममध्ययनम्। उत्त० सभिंतरबाहिरियं-सहाभ्यन्तरेण मध्यभागेन बाहिरिकया च प्राकाराबहिर्निगरदेशेन या सा। ज्ञाता० | सभिक्खुगं- उत्तराध्ययनेषु पञ्चदशममध्ययनम्। सम० ६४१ सब्भूत- सद्भूतः-सत्ता प्रकारेण भूतः-यतः सद्भूतः। ज्ञाता० | सभिन्नश्रोतृत्वं- युगपत्सर्वशब्दश्रावितेत्यर्थः। १७५ ऋद्विविशेषः। स्था० ३३२ सब्भूयमसब्भूय- सद्भूते-परमाणौ असद्भूतं-अर्धादि १, | सभूमिभाग- शतद्वारनगरस्य वायव्यकोणे उद्यानम्। असद्भूते-सर्वगात्मनि सद्भूतं चैतन्यं २, सद्भूते-परमाणौ भग०६८९ सद्भूतं निष्प्रदेशत्वं ३, असद्भूते सर्वगात्मनि असद्भूतं सभूयं- समीपे भूमौ। आव० ३९८१ कर्तु-त्वमिति ४, सद्भूतमसद्भूतम्। भग० १०५। सभोइआ- स्वाधीनभर्तुका। बृह० ५७ आ। सभए-नास्तिकादिसमयप्रतिपादनपरमध्ययनं समयः, | समं- यत्र लुठनं न भवति। ओघ. १२२ तालवंशस्वरा सकतांगे प्रथममध्ययनम। सम० ३१। जीवतस्स वि दिसभानुगतम्। जम्बू०४०। पूर्णम्। सूर्य. १०४। रण्णो बीहिगेहिं समंततो अभियं जंजच्चिरं सभयं। तालवंशस्वरादिसमनगतं सम्मम्। स्था० २९६। समंनिशी० ७१ । पादैरक्षरैश्च समम्। स्था० ३९६। सम-पादैरक्षरैश्च सभणय- अचलपुरीयः कौटुम्बिः । मरण | समम्। स्था० ३९७। परिपूर्णः। जीवा० ३२२। सभयं- चोराकूलेत्पर्यः। निशी० ४६ आ। समंजरीपल्लवपुप्फचित्त-सह मजरीभिः प्रतीताभिः २७६। १०१ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [53] "आगम-सागर-कोषः" [१]

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