Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.८ सप्तपृ. घनोदध्यादीनां तिर्यग्बाहल्यम् ७९ प्रभायाः पृथिव्याः 'घनोदधिवलयस्स' छ जोयणबाहल्लस्स' पइयोजन बाहल्यस्य 'खेत्तच्छेएण छिज्जमाणस्स' क्षेत्र छेदेन छिद्यमानस्य 'अस्थि दवाई' सन्ति द्रव्याणि 'वण्णओ काल जाव' वर्णतः काल यावत् वर्णतः कालनीललोहित हारिद्र. शुक्लानि, गन्धतः सुरभिगन्धानि दुरभिगन्धानि, रसतःल तिक्तकटुकषायाम्ल मधुराणि, स्पर्शतः कर्कश मृदुकगुरुकलघुक शीतोष्णस्निग्धरूक्षाणि, संस्थानतः परिमण्डलवृत्तव्यस्र चतुरस्रायातसंस्थानपरिणतानि अन्योन्यबद्धानि अन्योन्य स्पृष्टानि अन्योन्यावगाढानि अन्योन्यस्नेहप्रतिबद्धानि, अन्योन्य घटतया द्रव्य है यह बात प्रकट करते हैं-'इमीसे णं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी का जो घनोदधि वलय है कि जिसकी छजोयण बाहल्लस्स' छ योजन की मोटाई है क्षेत्रच्छेद से विभाग करने पर तद्गत द्रव्य 'वण्णओ काल जाव' क्या वर्ण की अपेक्षा कृष्ण वर्ण वाले नील वर्ण वाले, लोहित-लाल वर्ण वाले, पीले वर्ण वाले और शुक्ल वर्ण वाले होते हैं ? गन्ध की अपेक्षा वे सुरभि दुरभिगन्ध वाले होते हैं ? रस की अपेक्षा तिक्त, कडु, कषाय, अम्ल एवं मधुर रस वाले होते हैं ? स्पर्श की अपेक्षा वे कर्कश, मृदुक, गुरुक, लघुक, शीत, उष्ण, स्निग्ध, और रूक्ष स्पर्श वाले होते हैं क्या ? तथा संस्थान की अपेक्षा वे परिमंडल वृत्त व्यस्र चतुरस्र आयत संस्थान वाले होते हैं क्या ? ये द्रव्य अन्योन्य बद्ध होते हैं क्या ? अन्योन्य स्पृष्ट होते हैं क्या ? अन्योन्य अवगाढ होते हैं ? स्नेह गुण से अन्योन्य बद्ध होते हैं क्या ? तथा वे अविभक्त होकर ये अन्योन्य घन-समुदाय रूप Raय छ, २ 'छजोयण बाहल्लस' छ यारानन। विशाण छ. तेना क्षेत्र छथी विमा ३२वामां आवे तो तमा हे द्रव्य 'वण्णओ काल जाव' વર્ણની અપેક્ષાથી કૃષ્ણવર્ણવાળું પીળાવર્ણવાળું અને શુકલનામ સફેદ વર્ણવાળું હોય છે ? ગંધની અપેક્ષાથી સુરભિ દુરભિ ગંધવાળું હોય છે ? રસની અપેક્ષાથી તે તીખુ, કડવું તુરૂ, ખાટું, અને મીઠારસવાળું હોય છે? સ્પર્શની અપેક્ષાથી તે કર્કશ, મૃદુ, ગુરૂ, લઘુ, શીત ઉષ્ણ, સ્નિગ્ધ અને રૂક્ષ સ્પર્શવાળું હેય છે ? તથા સંસ્થાનની અપેક્ષાથી તે પરિમંડલ ગોળ ઝાલરાકાર વ્યસ્ત્ર ચતુરસ્ત્ર, આયત સંસ્થાનવાળું હોય છે? આ દ્રવ્ય અન્ય બદ્ધ હોય છે ? અન્ય પૃષ્ટ હોય છે? અન્યૂન્ય અવગાઢ વાળું હોય છે ? સનેહગુણથી અન્ય બદ્ધ હોય છે? તથા પરસ્પરમાં અવિભક્ત થઈને આ અન્ય ઘન સમુદાયપણાથી મળેલું રહે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને
જીવાભિગમસૂત્ર