Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. २ सू.२३ नरकेषु पृथिव्यादि स्पर्शस्वरूपम् स्वभावजाया अपि वेदनायाः अति दुःसहत्वादिति प्रश्नः, भगवानाह - 'हंता' इत्यादि, 'हंता गोयमा' हन्त गौतम ! 'इमी से णं भंते ! रयणध्वमाए पुढवीए' एतस्यां खलु भदन्त ! रत्नप्रभायां पृथिव्याम् 'निरयपरिसामंतेसु' नरकपरि सामंतेसु' नरकपरिसामन्तेषु नरकावासपर्यन्तवर्त्तिषु प्रदेशेषु 'तं चैव जाव महावेणतरगा चैव' बादर पृथिवीकायिकाः, बादरा कायिकाः, बादरतेजस्कायिकाः बादर वनस्पतिकायिका जीवाः महाकर्मतरा महाक्रियतरा महाश्रवतरा महावेदनतरा एवेति । ' एवं जाव अहे सत्तमाए' एवम् अनेनैव प्रकारेण यावद् अधः सप्तम्याम् शर्कराप्रभात आरभ्य अधः सप्तम्या मपि सर्वे विज्ञेयम् । भी वें इसी प्रकार के जीवन से जीते है तो क्या वे उन नरकों के महा वेदनतर क्षेत्र स्वभाव जन्य वेदना के भोक्ता होते हैं ? इसके उत्तर मे प्रभु गौतम से कहते हैं- 'हंता गोयमा !' हां गौतम ! 'इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए' इस रत्नप्रभा पृथिवी में जो 'निरयपरिसामंतेसु' नरकावास तक के प्रदेशों में पृथिवीकायिक आदि जीव है वे 'तं चैव जाव महा वेयणतरका चेव' उसी प्रकार के है - जैसा कि प्रश्न में पूछा गया है - अर्थात् महा कर्म तर हैं-क्योंकि वे पूर्व में महा क्रिया तर थे, महास्रवतर थे और वहाँ पहुंच कर भी वे ऐसे ही हैं-अतः वे वर्तमान में वहाँ महा वेदना वाले ही हैं ।
अब सूत्रकार इस तृतीय प्रतिपत्ति के इस द्वितीय उद्देशक में जितने पदार्थ - जितना वषय कहे गये हैं उन सब को संग्रह करके प्रकट करने वाली ये गाथाएं कहते हैं
પ્રમાણેના જીવનથી જીવે છે. તા શુ તેઓ એ નરકામાં મહાવેદનતર ક્ષેત્રના સ્વભાવથી થવા વાળી વેદનાને ભાગવવા વાળા મને છે ?
या प्रश्नना उत्तरमां अनुश्री गौतमस्वामीने उहे छे
'हंता गोयमा ।' गौतम ! 'इमीसे णं भंते ! रयणप्पभार पुढवीए' मा रत्नप्रलाभां ने 'निरयपरिसाम तेसु' नरावास सुधीना प्रदेशमां पृथ्वीमाथि विगेरे को छे, तेथे 'तं' चेव जाव महा वेयणतरका चेव' सेवा अझरना छेप्रमाणे प्रश्न સૂત્રમાં કહ્યા છે. અર્થાત્ મહાકતર છે. કેમકે તેએ પૂમાં મહાક્રિયાવાળા હતા. મહા આસવવાળા હતા, અને ત્યાં પહોંચીને પણ તે એવાજ છે. તેથી તેએ વમાનમાં ત્યાં મહાવેદના વાળાજ છે.
હવે સૂત્રકાર આ ત્રીજી પ્રતિપત્તિના આ બીજા ઉદ્દેશામાં જેટલા પદાર્થોં અર્થાત્ જે જે વિષયે કહ્યા છે, તે બધાને સંગ્રહ કરીને ખતાવવા વાળી આ गथाओ हे छे. 'पुढवी ओगाहित्ता' इत्याहि
જીવાભિગમસૂત્ર