Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 836
________________ ८२४ जीवाभिगमसूत्रे इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'दवढयाए सासया' द्रव्यार्थतया-द्रव्याथिकनयमतेन शाश्वती, द्रव्यार्थिकनयो हि द्रव्यमेव तात्विकमभिमन्येते नतु पर्यायान् द्रव्यं चान्वयिपरिणामित्वात् अन्यथा-द्रव्यत्वमेव न स्यात् अन्वयित्वाच्च गङ्गासिन्धु प्रवाहन्त् सकलकालभावी ति भवति द्रव्यार्थतया पद्मवरवेदिका शाश्वतीति । 'वण्णपज्जवेहि गंधपज्जवेहि रसपज्जवेहि फासपज्ज वेहि वर्णपर्याय :-तदन्य समुत्पद्यमानवर्णविशेषरूपैः एवं गन्धपर्यायैः रसपर्याय : स्पर्शपर्यायैः, उपलक्षणमेतत् तदन्यपुद्गल विचटनोच्चटनैश्वाशाश्वती-अनित्या, अयं भावः-पर्याया. कता ही नष्ट हो जावेगी। इस श्रीगौतमस्वामी की बात को सुनकर दो विरोधी धर्मों का एकत्र समावेश अनेकान्त मान्यता में हो जाता है इस बात को लक्ष में रखकर प्रभुश्री उत्तर में कहते है 'गोयमा' 'दव्व ट्ठयाए सासया' हे गौतम ! जो मैने ऐसा कहा है कि वह पद्मवरवेदिका कथंचित् शाश्वत है सो यह कथन द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से किया है पर्यायार्थिकनय से नहीं । वस्तु द्रव्यपर्यायात्मक है द्रव्यको अपेक्षा वह द्रव्यात्मक है और पर्याय की अपेक्षा पर्यायात्मक है, द्रव्यार्थिकनय वस्तु में पर्याय को गौणकर के केवल द्रव्य को ही विषय करता है। द्रव्यत्रिकालवर्ती अन्वयी परिणामवाला होता है। अन्यथा उस में द्रव्यत्व ही नहीं रहे । अन्वयी होने से ही वह अपने मौलिकरूपको नहीं छोडता है जैसा कि गंगासिन्धुका प्रवाह अपने मौलिकरूप वो नहीं छोडता है अतः द्रव्यार्थिकनय के मत से पद्मवरवेदिका शाश्वती है और 'वष्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहि' वर्ण पर्यायों की अपेक्षा, गंधपर्यायों की अपेक्षा, रसपपर्यायोंकी अपेक्षा और स्पर्श IS Mय छ. मेवात क्षमा रामी छ है 'गोयमा ! व्वयाए सासया' है ગૌતમ! મેં જે એવું કહ્યું છે કે એ પદ્મવરવેદિક કથંચિત શાશ્વત છે આ કથન દ્રવ્યાર્થિક નયની અપેક્ષાએ કરવામાં આવેલ છે. પર્યાયાર્થિક નયથી નહી. વસ્તુ દ્રવ્ય પર્યાયાત્મક છે. દ્રવ્યની અપેક્ષાથી તે દ્રવ્યાર્થિક છે, અને પર્યાયાર્થિક નયની અપેક્ષાએ પર્યાયાત્મક છે. દ્રવ્યાર્થિક નયવસ્તુમાં પર્યાયને ગૌણ કરીને કેવળ દ્રવ્યનેજ વિષય કરે છે. દ્રવ્ય ત્રિકાલવતી અન્વયી પરિણામ વાળું હોય છે. નહીતર તેમાં દ્રવ્ય પણું જ ન રહે અન્વયી હોવાથી તે પિતાના ભૌલિપણાને છેડતું નથી. જેમકે ગંગા સિંધુને પ્રવાહ પિતાના મૌલિક પણાને છેડતું નથી. તેથી દ્રવ્યાર્થિક નયના મતથી પદ્મવર વેદિકા શાશ્વતી छ भने 'वण्णपज्जवेहिं गधपज्जवेहिं रसपज्जवेहि' पर्यायानी अपेक्षा ગંધપર્યાયોની અપેક્ષાએ રસપર્યાયની અપેક્ષાએ તથા સ્પર્શ પર્યાયની અપેક્ષાએ જીવાભિગમસૂત્ર

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