Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 877
________________ ८६५ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.५३ वनषण्डादिकवर्णनम् ___ उदये सविता रक्तो, रक्तश्चास्तमयेऽपि चेति । 'संझब्भरागेइ वा सन्ध्या भ्रराग इति वा वर्षाकाले सन्ध्यासमयभावी अभ्ररागः 'गुंजद्धराएइ वा' गुञ्जा. ईराग इति वा, तत्र गुञ्जा लोकप्रसिद्धा तस्या अर्द्धरागो यो रक्तो भागः गुञ्जा. ईरागा, गुञ्जाया उपरितनार्द्धभागः कृष्णो भवति, निम्नभागस्तु अतिरक्तो भवति, ततो गुञ्जार्द्धग्रहणम् 'जाति हिगुलएइ वा' जात्यहिगुलुक इति वा 'सिल पवालेइ वा' शिलाप्रवालमिति वा, शिलाप्रवालनामा रक्तरत्नविशेषः, 'प्रवालं कुरेइ वा प्रवालाङ्कुर इति वा तस्यैव प्रवालनामक रत्नविशेषस्याङ्कुरः प्रवालाङ्कुरः, स खलु प्रथमोद्तत्वेनात्यन्तरक्तो भवति तत स्तदुपादानमिति । 'लोहितक्ख. मणीति वा' लोहिताक्ष मणि रिति वा, रक्तवर्णों मणिविशेषो लोहिताक्षमणिरिति । 'लाक्खारसएइ वा लाक्षारस इति वा, लाक्षा खलु लोकप्रसिद्धा, तस्या रसा, 'किमिरागेइ वा' कृमिराग इति वा 'रत्तकंबलेइ वा' रक्तकम्बल इति वा, 'चीनरेइवा' जैसा लाल बाल दिवाकर होता है जैसे कहा है 'उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमयेऽपिच' सूर्य उदय समय में तथा अस्त के समय में भी लाल ही होता है 'सजभरागेइ वा' जैसा लाल वर्षाकाल में संन्ध्यासमय का अनुराग होता है 'गुंजद्धराएइ वा' जैसा लाल गुंजा का-रत्तीका-अर्द्धभाग का रंग होता है। 'जातिहिंगुलेइ वा' जैसा लाल शिलाप्रवाल-मवाल नामका रत्न विशेष होता है-'पवालं कुरेइवा' जैसा लाल प्रवालाङ्कर होता है प्रवाल कोंपलका अङ्कर प्रथमो. द्गत होने से अत्यन्त लाल होता है इसीलिये यहां उसे दृष्टान्त कोटि में रखा गया है 'लोहितक्खमणीइ वा जैसा लाल लोहिताक्ष. मणि होता है 'लक्खारसेइवा' जैसा लाल लाक्षारस होता है । 'किमिरागेइ वा' जैसा लाल कृमिराग होता है 'रत्तकंबलेइ वा' जैसा लाल रक्त रेइवा' 24 ele मार द्विवा४२-सूर्य हाय छे. २ ४ह्यु छ , 'उदये सविता रतो रत श्वास्तमयेऽपिच' सूर्य न यना समये अने अरतना समये ५५ रंश antr डाय छे. संजभरागेइवा' वर्षासनी सध्या समय। वो सास हाय छे. 'गुंजद्धरागेइवा' jan-२तिना मधं लागने । सार हाय छ, जाति हिंगुलेइवा' गत्य होने का दाहाय छे. 'सिलपवालेइवा' शिक्षाप्रवास प्रवासी नामना २त्नविशेष रंग सास हाय छ, 'पवालंकुरेइवा' प्रवासना अंकन वर्ण व सरस હોય છે, પ્રવાલની કુંપળને અંકુર પહેલા જ નીકળેલ હોવાથી ઘણોજ લાલ हाय छे. तेथी माहियां तेष्टांत तरी अड ४२८ छ. 'लोहितक्खमणी इवा' alsक्षमणि janाय छ, 'लक्खारसेइवा' साक्षारस वो सास जी० १०९ જીવાભિગમસૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918