Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 900
________________ ८८८ ___ जीवाभिगमसूत्रे कुशलनरनारी सुसंपरिगृहीतायाः, कुशलेन-वीणावादननिपुणेन नरेण-पुरुषेण नार्या-स्त्रिया वा सु-मुष्टु सम्यक् परिगृहीतायाः 'पदोसपच्चूसकालसमयंसि' प्रदोषप्रत्यूषकालसमये, प्रदोषे-सायङ्काले प्रत्यूषे-प्रभातवेलायाम्, 'मंद मंदं एइयाए' मन्दं मन्द-शनैः शनैः एजितायाः चन्दनसारकोणेन ईषत कम्पितायाः 'वेइयाए' व्ये जितायाः-विशेषतः कम्पनयुक्तायाः कम्पिताया:-वारं वारं कम्पनयुक्तायाः एतावदेव पर्यायेण व्याचष्टे-'खोभियाए चालियाए फंदियाए घटियाए उदीरियाए' क्षोभितायाः चालितायाः स्पन्दितायः घट्टिताया उदीरिताया तत्र क्षोभिताया:- मूर्छा प्राप्तायाः, चालितायाः-प्रेरिताया:, स्पन्दिताया:नखाग्रेण स्वरविशेषोत्पादनार्थमीषच्चालितायाः घट्टिताया :. ऊर्ध्वाधोगच्छता के ढंग से रगड रगड कर चलाता है बजाने वाले पुरुषको या स्त्री को बजाने की क्रिया में विशेष निपुण होना चाहिये ऐसा वैसा व्यक्ति वीणा को ढंग से नहीं बजा सकता है और न वह उसे अपने अङ्कगोद में सुव्यवस्थितरूप से रख ही सकता है इन्ही सब वातों को समझाने के लिये 'अंके सुपइट्टियाए चंदणसारकोण परिघट्टियाए कुसलनर नारि सुसंपग्गहियाए पदोसपच्चूसकालसमयंसि मंदं २ एइयाए वेइयाए खोभियाए चालियाए फंदियाए घट्टियाए उदीरियाए ओराला मणुण्णा कण्णमणणिव्बुहकरा सवओ समंता सदा अभिणिस्सर्वति' ऐसा पाठ यहां लिखा गया है वीणाका वादन या तो प्रातः काल होता है या सायंकाल के समय में होता है जब वह वीणा चन्दन सार निर्मित दण्डकोण से धीरे धीरे बजायी जाती है या विशेषरूप से जोर २ से बजायी जाती है तब उससे जैसा कर्ण और मनमोहित करने बाला વાદન દંડથી વગાડે છે, તાર પર તેને બજાવવા માટે ઢંગથી ઘસી ઘસીને ચલાવે છે. વગાડનાર પુરૂષ અથવા સ્ત્રી વગાડવાની ક્રિયામાં વિશેષ પ્રવીણ હોવી જોઈએ જેવી તેવી વ્યકિત વીણને ઢંગપૂર્વક વગાડી શકતી નથી તેમ તે વીણાને પિતાના ખોળામાં સુવ્યવસ્થિત રીતે રાખી પણ શકતા નથી. આ બાબત सम०44। भाटे 'अंके सुपइट्टियाए चंदणसारकोणपरिघट्टियाए कुसलनरनारि सुसंप गाहियाए पदोसपच्चूसकालसमयंसि मंदं २ एइयाए वेइयाए खोभियाए चलियाए फदियाए घट्टियाए उदीरियाए ओराला मणुण्णा कण्णमणणिव्वुतिकरा सव्वओ समंता सहा अभिणिस्सवंति' । प्रभारी ना ५४ वामां भाव छ. વીણાનું વાદન કાંતા પ્રાત:કાળ સવારના સમયમાં અથવા સાયંકાળ સાંજના સમયમાં થાય છે. તે વીણાને જ્યારે ચંદનસારથી બનાવેલા દંડાના ખૂણથી ધીરે ધીરે વગાડવામાં આવે અથવા વિશેષ પ્રકારથી જોર જોરથી વગાડવામાં જીવાભિગમસૂત્ર

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