Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 902
________________ जीवाभिगमसूत्रे नन्दनवनगतानां वा 'सोमणसवणगयाण वा' सौमनसवनगतानां वा, 'पंडगवण गयाण वा' पण्डकवनगतानां वा तत्र मेरोः समन्ततः समभूमौ भद्रशालवनं, प्रथममेखलायां नन्दनवनम् द्वितीयमेखलायां सौमनसवनम् शिरसि चूलिकायाः पार्श्वेषु सर्वतः पण्डकवनम् तत्र स्थिताना मित्यर्थः पुनश्च - 'हिमवंत मलय मंदर गिरिगुहा समण्णागयाण वा' हिमवन्मलयमन्दरगिरिगुहा समन्वागतानां वा, हिमवान् हिमवत् क्षेत्रस्योत्तरतः सीमाकारी वर्षधरपर्वतः उपलक्षणम्, शेषवर्षधरपर्वतानां मलयपर्वतस्य मन्दरगिरेश्व मेरुपर्वतस्य च गुहा = गुफा तत्र समन्वागतानाम्आगत्य स्थितानाम्, किन्नरादयः प्राय एतेषु मुदिततरा भवन्तीत्यत एव तेषां ग्रहणम् 'एगओ संहियाणं' एकतः संहितानाम् संमिलितानाम्, 'संमुहागयाणं' णवा 'भद्दसालवणगयाण वा सोमणसवणगयाण वा पंडगवणगयाण वा हिमवंत मलय मंदगिरिगुह समण्णागयाणवा' यहां से लेकर सूत्र समाप्ति पर्यन्त के शब्दों का विस्तृत अर्थ सूत्र के अन्त में कहा जायगा यह सामान्यरूप से अर्थ किया जाता है, है भदन्त ! जैसा किन्नरों का अथवा किंपुरुषों का महोरगों का या गंधर्वों का जो कि भद्रसाल वन में या सोमनसवन में या पण्डकवन में बैठे हों या हिमवान पर्वत की या मलय पर्वत की या मन्दर पर्वत की गुफा में बैठे हो 'एगओ संहियाणं' एकस्थान पर एकत्रित हुए हों 'संमुहागयाणं' या एक दूसरे के आमने सामने आए हुए हों, या एक दूसरे के समक्ष बैठे हुए हों । कोई किसी को पीठ देकर न बैठा हो 'समुवविद्वाणं' बैठी हुई अवस्था में भी इस ढंग से बैठे हों कि जिससे किसी को आपस की रगड से या संघर्ष से बाधा न हो रही हो 'संनिविद्वाणं' ८९० गंघव्वाणवा भद्दसालवणगयाणवा सोमणसवणगयाणवा पंडगवणगयाणवा हिमवंतवलय मंदरगिरिगुहसमण्णागयाण वा ' આ સૂત્રપાઠથી આરંભ કરીને સૂત્ર સમાપ્તિ સુધિના શબ્દોના અર્થ સૂત્રના અંતમા કહેવામાં આવશે. આ અ સામાન્ય રીતે કરવામાં આવે છે. તે આ પ્રમાણે છે. હે ભગવન્ કિન્નરોના કિ પુરૂષોના મહેારગેાના, અથવા ગંધર્વોના સમૂહેા કે જે ભદ્રસાલ વનમાં અથવા સૌમનસવનમાં અથવા પડકવનમાં બેઠેલા હાય જો હિમવાન્ પર્યંતની અથવા भायपर्वतनी अथवा भंडर पर्वर्तनी गुशमां मेठेला होय 'एमओ संहियाणं' थोडे स्थान पर गोठा थयेला होय 'संमूहागया णं' भने भेड जीलनी સામે આવેલા હાય અથવા એક બીજાની સન્મુખ બેઠેલા હાય ફાઇની પીઠ કેાઈની સામે પડતી ન હેાય અર્થાત્ કાઇ પીડ દઇને એસેલ ન होय 'समुवट्ठियाणं' 'मेठेसी व्यवस्थाभां पशु खेवी रीते मेठेसा होय ! भेथी જીવાભિગમસૂત્ર

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