Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 890
________________ जीवाभिगमसूत्रे 'णो इणढे सम?' नायमर्थः समर्थः, कि 'तेसि णं तणाणं मणीणय' तेषां खलु तृणानां मणीनां च, 'एत्तो इतराए चेव जाव मणामतराए चेव गंधे पन्नते' इतः कोष्ठपुटादिद्रव्येभ्य इष्टतरक एव, कान्ततरक एव, मनोज्ञतरक एव, मन आमतरक एव गन्धः प्रज्ञप्तः-कथित इति । वनषण्डान्तर्गत तृणमणीनां गन्धान निरूप्य तेषां स्पर्शान निरूपयितुमाह-अत्र श्रीगौतमः पृच्छति -'तेसि णं भंते' इत्यादि, 'तेसि णं भंते ! तणाण य मणीण य' तेषां खलु भदन्त! तृणानां च मणीनां च 'केरिसए फासे पन्नत्ते कीदृशः-किमाकारकः स्पर्श: प्रज्ञप्त:-कथितः किं वक्ष्यमाणवस्तु स्पर्शसशस्तेषां स्पर्शी भवति ? तदेव दर्शयति-'से जहाणामए' तद्यथानामकम् 'आइणेइ वा' आजिनकमिति वा, आजिनकं इलक्ष्णचर्ममयं वस्त्रम् 'रूएति वा' रूतमिति वा, रूतं इलक्षणकर्षास. विशेष: 'बूरेति वा बूर इति वा, बूरः इलक्ष्णवनस्पति विशेष. 'णवणीतेति वा' समर्थ नही है क्योंकि 'तेसि णं तणाण य मणीण य एत्तो इतराए चेव जाव मणामतराए चेव गंधे पन्नत्ते' इन मणियों का गंध कोष्ठ पुटादि द्रव्यों के गन्ध की अपेक्षा इष्टतर कान्ततर मनोज्ञतर ओर मन आमतर ही माना गया है अब श्रीगौतमस्वामी तृण और मणियों के स्पर्श के विषय में प्रभुश्री से पूछते है, 'तेसि णं भंते ! तणाणयमणीणयकेरिसए फासे पनत्ते' हे भदन्त ! उन तृणों और मणियों का स्पर्श कैसा कहा गया है क्या वक्ष्यमाण आजिनक आदि वस्तुओं के स्पर्श जैसा होता है ? वही दिखलाते है-'से जहा णामए आईणेइ वा रूएइ वा जैसा स्पर्श आजिनक चर्ममयवस्त्रका होता है जैसा स्पर्श रूईका होता है । 'बूरेति वा' जैसा स्पर्श-बूरनामकी वनस्पति का होता है। 'णवणीएति 'गोयमा ! णा इणद्वे समटे हे गौतम ! Al A समय नथी. भतेसि णं तणाणय मणीणय एत्तो इदुतराए चेव जाव मणामतराए चेव पण्णत्ते' मा મણિને ગંધ કેષ્ટપુટ વિગેરે દ્રવ્યોના કરતાં ઈષ્ટતર, કાંતતર, માતર, મન આમતર, માનવામાં આવે છે. હવે શ્રીગૌતમસ્વામી તૃણ અને મણિના સંબંધમાં પ્રભુશ્રીને પૂછે છે. 'तेसि णं भते ! तणाणय मणीणय केरिसए फासे पन्नते' हे लगवन से तृश। અને મણિને સ્પર્શ કે કહેલ છે ? શું આ કહેવામાં આવનાર અજીનક વિગેરે વસ્તુઓના સ્પર્શ જે હોય છે, એ એને સ્પર્શ હોય છે? એજ मताचे छ. 'से जहानामए आईणेइवा रूएइवा' व २५ मालन यम भय पस्सना हाय छे. वो २५३ ।। होय छे. 'बूरे इवा' व २५श २ नामनी वनपतिना हाय छ, 'णवणीएइवा' २२ २५ भामरान हाय छे. જીવાભિગમસૂત્ર

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