Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 891
________________ ८७९ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.५३ वनषण्डादिकवर्णनम् नवनीतमिति वा, नवनीतं 'मवखन' इति लोकप्रसिद्धमेव, 'हंसगम्भतूलीति वा' हंसगर्भतुलीति वा, "सिरीसकुसुमणिचएति वा' शिरीषकुसुमनिचय इति वा, 'बालकुमुदपत्तरासीति वा' बालकुमुदपत्रराशिरिति वा, बालानि-अचिरकाल जातानि यानि कुमुदपत्राणि तेषां राशि:-समुदाय इति बालकुमुदपत्रराशिरिति । गौतमः प्राह-'भवेएयारूवे सिया' भवेत किं तेषां तृणानां मणीनां चैतावद्रुप आनिनकादिरपर्शतुल्यः स्पर्शरतृणानां मणीनां चेति भगवानाह-हे गौतम ! णो इणढे समट्टे' नायमर्थः समर्थः-नहि तेषां तृणानां मणीनांच आजिनकादि स्पर्शतुल्यःस्पर्श किन्तु तेसि णं तणाणय मणीणय एत्तोइट्टतराए चेव जाव फासेण पन्नत्ते' तेषां तृणानां च मणीनां च इत:-आजिनकादि स्पर्शापेक्षया इष्टतरक-एव, प्रियतरक एव, कान्ततरक एव, मनोज्ञतरक एव, मन आमरक एव स्पर्शः प्रज्ञप्त इति । तृणामणीनां स्पर्शान् निरूप्य शब्दान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह-'तेसि णं भंते !! इत्यादि, 'तेसि णं भंते ! तणाणं' तेषां खलु भदन्त ! तृणानाम्, 'पुष्वावरवा' जैसा स्पर्श नवनीत-मक्खन-का होता है 'हंसगब्भतूली ति वा' जैसा स्पर्श हंसगर्भतूलिका होता है 'सिरीसकुसुमणिचएति वा' जैसा स्पर्श शिरीशपुष्पसमूह का होता है 'वालकुमुदपत्तरासीइ वा जैसा स्पर्श नवजात कुमुद पत्रों की राशिका होता है तो क्या 'भवेएयारूवे सिया' इसी प्रकार का स्पर्श उन तृणों और मणियों का होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'णो इणढे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है क्योंकि 'तेसि णं तणाण य मणीण य एत्तो इठ्ठतराए चेव जाव फासेणं पनत्ते' उन तणों का और मणियों का स्पर्श इन आजिनक आदि पदार्थों के स्पर्श से भी अधिक इष्टतर यावत् अधिक मनोऽम कहा गया है इन तृण और मणियों के स्पर्शका वर्णन 'हंसगम्भतूलीतिवा' स ग तुलना व २५ हाय छे. 'सिरीस कुसम णिचएतिवा' शिरीष ५०५ समूडनाव २५ उय छे. 'बालकुमुद पत्तरासी इवा' । २५ नवा पन थये मुह पत्रोना सपना डाय छे तो 'भवेएयारूवे सिया' से शतने १५ मे तृभने मशियाना हाय छ ? या प्रशन उत्तरमा प्रभुश्री ४१ छ णो इणट्रे सम' है गौतम ! मा मथ समर्थ नथी. भ. 'तेसि णं तणाणय मणीणय एत्तो इटुतराए चेब जाव फासेणं पण्णत्ते' से तो। मन मशियाना २५ । न विशेष पहा ના સ્પર્શ કરતાં પણ વધારે ઠષ્ઠતર યાવત્ વધારે મનેમ કહેવામાં આવેલ છે. આ તૃણે અને મણિના સ્પર્શનું વર્ણન કરીને હવે તેને શબ્દોના સ્વરૂપનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. આ વિષયમાં શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રભુશ્રીને જીવાભિગમસૂત્ર

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