Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.५३ वनषण्डादिकवर्णनम्
८६३ स्पतिविशेष स्तस्याः कुसुमम् अञ्जनकेशिकाकुसुमम् ‘णीलुप्प लेइ वा' नीलोत्पलमिति वा, ‘णीलासोएइ वा नीलाशोक इति वा, ‘णोलकणवीरेइ वा' नीलकणबीर इति वा, 'णीलबंधुजीवेएइ वा' नीलबन्धुजीवक इति वा, 'भवेएयारूवे सिया' भवेत् तृणानां मणीनां च एतावद्रूपो नीलो वर्णावास: कि स्यादिति गौतम वाक्यम् भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! ‘णो इणढे समढे' नायमर्थः, समर्थः. 'तेसिणं नीलगाणं तणाण मणीण य' तेषां खलु नीलानां तृणानां मणीनां च 'एत्तो इतराए चेव' इतः-भृङ्गादेः इष्टतरक एव 'कंततराए चेव' कान्ततरक एव 'मणुनतराए चेव' मनोज्ञतरक एव 'मणामयराए चेव' मन आमतरक एव, 'वण्णेणं पन्नत्तो' वर्णेन नीलो वर्णावास: प्रज्ञप्त:-कथित इति ।। इसका कुसुमनीलवर्ण का होता है 'णीलुप्पलेइ वा' जैसा नीला नीलो. त्पल नील कमल होता है। 'णीलासोएइ वा' जैसा नीला नील अशोक वृक्ष होता है 'णीलकणवीरेइ वा' जैसी नीली नीलकनेर होती है 'णीलबंधुजीवेइ वा' जैसा नीला नील बन्धुजीवक होता है तो क्या, हे भदन्त ! वहां के तृण और मणियों का ऐसा ही नीलवर्ण होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं । गोयमा! णो इणढे समटे हे 'गौतम ! ऐसा अर्थ समर्थ नहीं है क्योंकि 'तेसि णं णीलगाणं तणाणं मणीण य' उन नीले तृणों को और मणियों का 'एत्तो इतराए चेव कंततराए चेव वण्णेणं पन्नत्तो' जो नीलावर्ण है वह इन भृङ्गादिको की अपेक्षा से बहुत अधिक इष्टतरक कान्ततरक और मनोज्ञतरक तथा मन आमतरक होता है अतः ये नीले तृण और मणि इस रंग से उन भृङ्गादिको की अपेक्षा बहुत अधिक इष्ट तरक आदि विशेषणों वाले होते है।
से वनस्पति विशेषतुं नाम छ. सन ५०५ नासवर्णन हाय छे. 'नीलुप्पले इवा' नीता५८ नीसम सीडं हाय छ, ‘णीलासोएइवा' नीद अशी वृक्ष २ सीjाय छ, 'णील कणवीरे इवा' रवीनीस, ना रेय हाय छ. 'णीलबं धुजीवेइवा' नीस धु७१ २j नास गर्नु हाय छे. तोडे ભગવન શું તે તૃણ અને મણિએ એવા નીલ વર્ણના હોય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री गौतभाभीन ४६ छ , 'गोयमा ! जो इणद्वे समझे' हे गौतम ! म अर्थ थन मस२ नथी म तेसिं णं णीलगाणं तणाणं मणीण य' से बीसात। मने मशियाना 'एत्तोइतराएचेव चण्णेणं पण्णत्ता'ने લીલો વધ્યું છે તે આ ભૂંગ-ભમરા વિગેરેના કરતાં ઘણું વધારે ઈષ્ટતર, કાંતતરક, અને મને જ્ઞતરક તથા મન આમતરક હોય છે, તેથી આ નીલ વર્ણના તૃણ અને મણિયે આ ભૂંગ-ભમરા વિગેરેના રંગ કરતાં પણ ઘણાજ વધારે ઈષ્ટતર કાંતતરક, વિગેરે વિશેષણવાળા હોય છે.
જીવાભિગમસૂત્ર