Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 868
________________ जीवाभिगमसूत्रे प्रसिद्धः, सौवस्तिक पुष्पमाणवौ लक्षणविशेषौ लोकादेवावगन्तव्यौ, वर्द्धमानक शरावसंपुटं, मत्स्याण्डकमकराण्डके लोकप्रसिद्ध एव, जारमारेति मणेर्लक्षणविशेषौ लोकज्ञाप्यौ, पुष्पावलि पद्मपत्रसागरतरङ्गवासन्तीलता पदमलताः प्रसिद्धा एव, तासां पुष्पावल्यादि पद्मलतान्तानां भक्तया विच्छित्त्या चित्र आवादि लक्षणो. पेतैः, तथा-'सच्छाएहि सच्छायैः-विलक्षणच्छायायुक्तैः 'समरीएहि समरीचिकैः वहिर्गतकिरणजालसहितैः, स उज्जोइएहि' सोद्योत्तैः-बहिर्व्यवस्थित समीपवर्ति वस्तुस्तोमप्रकाशकरोद्योतसहितैः, एवम्भूतैः 'नाणाविह पंचवण्णेहि नानाविधपञ्चवर्णैर्विभिन्नजातीयपञ्चवणोपेतैः-तृणैर्मणिभिचोपशोभितो वनषण्डः, तानेव पञ्चवर्णान् दर्श यतुमाह-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा 'किण्हे हि जाव सुक्किलेहि' कृष्णवर्णैर्यावच्छुक्लवर्णैः, यावत्पदेन नीललोहितपीतयर्णानां संग्रहो भवति । एतान् पञ्चवर्णान् पृथक पृथक् वर्णयति-तत्र प्रथमं गौतमः कृष्णवर्णविषये पृच्छति श्रेणि निकली हुई होती है वह प्रश्रेणि है साथिये का नाम सवस्तिक है, सौवस्तिक और पुष्यमाण ये दो लक्षणविशेष लोक से जानने योग्य है शरावसंपुट का नाम वर्द्धमानक है मत्स्याण्डक और मकरा. ण्डक भी मणिलक्षण विशेष है । और ये भी रत्नपरिक्षकों से जानने योग्य है । जार मार भी इसी प्रकार के मणिलक्षणविशेष है और ये भी जो हरियो से जानने योग्य है । 'सच्छाएहिं' समिरीएहिं सउ. ज्जोएहि नाणाविहपंचवण्णेहि' तथा ये तृण मणियां सुन्दर कांति से युक्त है । बाहर निकलती हुई किरण जालां से सहित है तथा बाहर रही हुई निकट की वस्तुओं के समूह के प्रकाश करने वाले उद्योत से युक्त है जिन पांचवर्ण वाले तृण और नानाविधमणियों से यह भूमि भाग युक्त है वे मणियां कृष्णवर्ण, यावत् शुल्कवर्ण इनवर्णों से सुशोभित है यहां यावत्पद से नील लोहित और पीतवर्णों का ग्रहण યાને સ્વસ્તિક કહે છે. સૌવસ્તિક અને પુષ્યમાણવા એ બે શબ્દોનો અર્થ લોક સમૂહથી જાણી લેવો. શરાવસંપુટને વાદ્ધ માનક કહે છે. મયંડક અને મકરાંડક એ મણિના લક્ષણે વિશેષ છે. અને એ રત્નની પરીક્ષા કરવાવાળા पांसथा सभोवा. 'सच्छाएहिं समरीएहिं सउज्जोएहिं णाणाविह पंच वण्णेहिं' तथा मातृ भने मणिय सुं२ तिथी युत छे. महा२ नीती કિરણ જાળેથી યુકત છે તથા બહાર રહેલ સમીપની વસ્તુઓના સમૂહને પ્રકાશિત કરવાવાળા ઉદ્યોત તેજથી યુકત છે. જે પાંચ વર્ણના તૃણ અને નાના પ્રકારના મણિથી એ ભૂમિભાગ યુકત છે, તે મણિયે કૃષ્ણવર્ણ યાવત્ શુકલ વર્ણથી સુશોભિત છે. અહીયાં યાવત્પદથી નીલ, લેહિત, અને પીતવર્ણ જીવાભિગમસૂત્ર

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