Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 853
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ५३ वनषण्डादिकवर्णनम् ८४१ , 'किहे कि हच्छाए ' इत्यादि, कृष्णवनपण्डः कस्मादित्यत आह- कृष्णच्छायः निमित्तकारणहेतुषु सर्वासां विभक्तीनां प्रायोदर्शनमिति वचनाद् हेत्वर्थे प्रथमा, तदयमर्थः यस्मात् कृष्णा छाया - आकारः सर्वाविसंवादितया तस्य वनषण्डस्य, तस्मात् कृष्णो वनषण्डः, अयं भावः - सर्वाविसंवादितया तत्र वनषण्डे कृष्ण आकार उपलभ्यते, न च भ्रान्तावभास संपादितसत्ताकः सर्वाविसंवादी भवति तस्मात् तत्ववृत्त्या स वनषण्डः कृष्णो न तु भ्रान्तावभासमात्र व्यवस्थापित इति । एवम् 'नीले नीलच्छाए, हरिए हरियच्छाए, सीए सीयच्छाए' नीलो नीलतथा स्वरूपप्रतिपादित हो जाता है ' किन्हे किण्हच्छाए' वह वनषण्ड कृष्ण इसलिये है कि उसकी छाया - आकार कृष्ण है, यहां 'कृष्ण च्छाय:' पद में यह प्रथमा विभक्ति हेत्वर्थ में हुई है 'निमित्तकारण हेतुषु सर्वासां विभक्तीनां प्रायो दर्शनात्' इस वचन के अनुसार पञ्चम्यन्त हेतु के अर्थ में प्रथमा विभक्ति भी हो जाती है । अतः इस से सूत्रकार ने यह पुष्ट किया है कि जिसकारण सर्वाविसंवादी रूप से उसकी छाया आकार - कृष्ण है, इसी कारण वह वनखण्ड कृष्ण है जब सर्वाविसंवादीरूप से वहां कृष्ण आकार उपलब्ध हो रहा है तो नियम से वहां कृष्णता है जिसकी सत्ता भ्रान्त अवभास से स्थापित होता है - वह सर्वाविसंवादी नहीं हुआ करता है - यहां कृष्णाकार की सत्ता सर्वाविसंवादी रूप से स्थापित है अतः वह अपन साध्य कृष्णता का अवश्य अवश्य ही साधक होता है इसी प्रकार से वह वनखण्ड किसी २ भाग में नील इसलिये है कि उसकी छाया- - आकार- नील छे. तेनाथी त्यां तेनुं तेवा प्रारनुं प्रतिपादन थ लय छे 'किण्हे किण्हच्छाए ' એ વનખંડ કૃષ્ણ એ માટે કહેવાય છે કે તેની છાયા આકાર કૃષ્ણ છે. અહી'યા 'कृष्णच्छायः' से यहां या प्रथमां विलति हेत्वर्थमां थयेस छे. 'निमित्त कारणहेतुषु सर्वासां विभक्तीनाँ प्रायो दर्शनात्' भ વચન પ્રમાણે પંચમ્યન્ત હેતુના અર્થમાં પ્રથમાં વિભકિત થઈ જાય છે, તેથી સૂત્રકારે આ વચનથી એ સમર્થિત કર્યું છે કે જે કારણથી સર્વે અવિસંવાદિપણાથી તેની છાયા આકાર કૃષ્ણ છે, એજ કારણથી એ વનખંડ પણ કૃષ્ણ છે, જ્યારે સર્વ પ્રકારે અવિસંવાદિપણાથી ત્યાં કૃષ્ણ આકાર પ્રાપ્ત થાય છે, તે ત્યાં નિશ્ચયરીતે કૃષ્ણપણું કાળાશ છે જ કે જેની સત્તા ભ્રાન્ત અવભાસથી સ્થાપિત થાય છે. તે સર્વ પ્રકારે અવિસંવાદિ હાઈ શકતી નથી અહીયાં કૃષ્ણપાની સત્તા સર્વાવિસંવાદિ પણાથી સ્થાપિત થયેલ છે. તેથી તે પેાતાના સાધ્ય કૃષ્ણપણાના જરૂર જરૂર સાધક થઈ જાય છે. તેથીજ એ વનખંડ કોઈ કોઈ ભાગમાં નીલ जी० १०६ જીવાભિગમસૂત્ર

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