Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 864
________________ ८५२ जीवाभिगमसूत्रे अथास्य वनषण्डस्य भूमिभागो वर्ण्यते-'तस्स णं' इत्यादि, 'तस्स णं वणसंडस्स' तस्य खलु वनषण्डस्य 'अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' अन्तर्मध्ये बहुसम सन् रमणीयो मनोज्ञ इति बहुसमरमणीयो भूमिभागः प्रज्ञप्तः-कथितः किं विशिष्टः सः ? इत्याह-'से जहाणामए' इत्यादि, ‘से जहाणामए' तद्यथा नामकः 'आलिगपुक्खरेइ वा' आलिङ्ग पुष्करमिति वा, आलिङ्गो मुरजो वाय. विशेषस्तस्य पुष्करचर्मपुटकं तत्किलात्यन्तसमं भवतीति तेनोपमा क्रियते -सर्वत्रसर्वेऽपि इति शब्दा: समुच्चये । 'मुइंगपुक्खरेइ वा' मृदङ्गपुष्करमिति वा, मृदङ्गो लोकप्रसिद्धी वाद्यविशेषस्तस्य पुष्करं मृदङ्गपुष्करमिति । 'सरतलेइ प्रतिरूप है इन पदो का अर्थ पहले आचूका है। अब इस वनखण्डकेभूमिभागका वर्णन करते है 'तस्स णं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' इस वनखण्डका जो भीतरका भूमिभाग है वह बहु सम है बिलकुल बराबर एकता है ऊंचा नीचा नहीं है किस प्रकार का वह सम भूमिभाग है इसको अलिङ्ग पुष्कर आदि उपमाओं से बताते है 'से जहानामए अलिंगपुक्खरे ति वा' इत्यादि । वह भूमिभाग ऐसा प्रतीत होता है कि जैसा, आलिङ्ग पुष्कर होता है आलिङ्ग नाम मुरज वाद्यविशेषका हैं तथा इसके उपर जो चमडा मडा रहता है उसका नाम पुष्कर है । यह आलिङ्ग पुष्कर अत्यन्त सम होता है इसी तरह वहां का वह भूमिभाग मृदङ्ग के पुष्कर जैसा अत्यन्तसम है मृदङ्ग लोकप्रसिद्ध एक प्रकार का वाचविशेष है, इसका भी पुष्कर बिलकुल सम होता है ऊंचा नीचा नहीं होता है इसी प्रकार परिपूर्ण દર્શનીય, અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ છે. આ પદોને અર્થ પહેલા આવી ગયેલ છે. वे ा वनमंडन भूमिलातुं वर्णन ४२वामां आवे छे. 'तस्स गं वणखंडस्स अंतो बहु समरमणिज्जे भूमिभागे पण्णते' । वनमंडन करना જે ભૂમિભાગ છે, તે ઘણે સમ છે, બિલકુલ બરાબર એક સરખો છે, ઉચે નીચો નથી કેવા પ્રકારનો એ સમભાગ છે તે આલિંગ પુષ્કર વિગેરેની ઉપમાઓ द्वारा मताव छे. 'से जहा नामए आलिंगपुक्खरेति वा' त्याहि भूमिलाप એવું જણાય છે કે જેવું આલિંગ પુષ્કર હોય છે, આ આલિંગ નામ મુરજ વાઘવિશેષનું છે, તથા તેના ઉપર જે ચામડું મઢેલું હોય છે, તેનું નામ પુષ્કર છે. આ આલિંગપુષ્કર ઘણોજ સમ–સર હોય છે. એ જ રીતને ત્યાંને તે ભૂમિભાગ મૃદંગના પુષ્કર જે સમ-સરખે છે. મૃદંગએ લેક પ્રસિદ્ધ એક પ્રકારનું વાઘ વિશેષ છે, તેનું પુષ્કર પણ બિલકુલ સરખુ હોય છે, ઉચું નીચું હોતું નથી. એજ રીતે પરિપૂર્ણ પાણીથી ભરેલ તળાવની ઉપરનો ભાગ જીવાભિગમસૂત્ર

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