Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 851
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ५३ वनषण्डादिकवर्णनम् ८३९ कथ्यते किन्तु तथा प्रतिभासनात् तथोक्तं नीलावभासः नीलोऽवभासो यस्य स तथा, तदा-'हरिए हरिओभासे' यौवने तान्येव पत्राणि किशलयत्वं रक्तत्वञ्चाति क्रान्तानि ईषद्धरितानि पाण्डूनि सन्ति हरितानि इत्युपदिश्यन्ते ततस्तद्योगाद् वनषण्डोऽपि हरितः, न चैतदुपचारमात्रं किन्तु तथा प्रतिभासोऽप्यस्ति, अतएवाह - हरितावभासः - हरितोऽवभासो यस्य स तथा, तथा - ' सीए सीओ भासे' बाल्यादतिक्रा तानि वृक्षाणां पत्राणि शीतानि भवन्ति ततस्तद्योगाद् वनषण्डोऽपिशीतः, न चासौ उपचारमात्रात् किन्तु गुणत एव, तथा चाह- शीतावभासः, अधोभागवर्त्तिनां व्यन्तरदेवानां च तद्द्योगे शीतवातस्पर्शः ततः सशीत वनषण्डोऽवभासते इति । तथाकरके कृष्ण अवस्था को नहीं प्राप्त हुए पत्र नीले कहे जाते है इस पत्र संबंधी नीलिमा के योग से वन को भी नील कहा गया है । पत्ते अपने युवावस्था में किसलय अवस्था को और अपनी लालिमा को छोड देते है- तब वे उरित अवस्था में आजाते है-अतः इसके लिये कहा गया है कि यह वनखण्ड किसी २ भाग में हरा है, और हरे रूप से ही इसका प्रतिभास होता है । यह वनखण्ड कहीं कृष्ण है कहीं नील है कहीं हरित है इत्यादि रूप से जो कहा गया है उसका कारण उस २ रूप से वहीं २ वह प्रतिभासित होता है यही बात 'किहो किन्हो भासे' आदि पदों द्वारा पुष्ट की गई है जब पत्र अपनी प्रौढावस्था में आते है तब उनमें से हरीतिभाग का घीरे २ अभाव होकर शुभ्रता आने लगती है शुभ्रता में शीतलता का अर्थात् शीत वातका वास हो जाता है अतः यह वनषण्ड भी उसके योग से कहीं २ 'शीतः शीता वभासः' शीतवात स्पर्शवाली है और शीतवात स्पर्शरूप से यह प्रतिયુવાવસ્થામાં કિસલય કુંપળ અવસ્થાને અને પેાતાની લાલિમાને છેાડીદે છે. ત્યારે તે હરિત અવસ્થામાં આવી જાય છે. તેથીજ એ પ્રમાણે કહેલ છે. કે આ વનખંડ કાઈ કાઈ ભાગમાં લીલાશ વાળા છે, અને લીલાપણાથીજ તેને પ્રતિભાસ થાય છે. આ વનખંડ કયાંક કયાંક કૃષ્ણવર્ણ વાળા છે. કયાંક કયાંક નીલવર્ણ વાળા છે. કયાંક કયાંક હરિત હાય ઇત્યાદિ રૂપે જે કથન કરવામાં આવેલ છે, તેનું કારણ એ એ રૂપે ત્યાં ત્યાં તે પ્રતિભાસિત થાય છે. मेवात 'किहो किन्होभासे' विगेरेथी पुष्ट कुरवामां आवे छे न्यारे पान પેાતાની પ્રૌઢાવસ્થામાં આવે છે, ત્યારે હરિતપણાના ધીરે ધીરે અભાવ થઈને શ્વેતપણું આવવા લાગે છે. શ્વેતપણામાં શીતળતાનેા અર્થાત્ શીત વાયુને વાસ થઇ જાય છે. તેથી એ વનખંડ પણ તેના ચૈાગથી કયાંક કયાંક શીતઃ शीतावभासः' शीतवायुना स्पर्श वाजो छे भने शीतवायुना स्पर्श ३ये ते જીવાભિગમસૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918