Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 834
________________ ८२२ जीवाभिगमसूत्रे न्तानां विशेषणपदानामर्थाः पूर्वोक्तरीत्यैव द्रष्टव्या इति । पुनः कथंभूतानि पद्मादो नि तत्राह-'महया' इत्यादि, 'महया महया वासिक्कच्छत्त समयाइ' महन्महद्वार्षिकच्छत्र समानानि, महान्ति महान्ति-महत्प्रमाणकानि वार्षिकाणि वर्षाकाले यानि पानीयरक्षणार्थंकृतानि वार्षिकाणि तानि च छत्राणि च तत्समानानि -तत् तुल्यानि 'पण्णत्ताईसमणाउसो' प्रज्ञप्तानि-कथितानि, हे श्रमण ! हे आयुष्मन् ! 'से तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चइ पउमवरवेइया, पउमवरवेइया' तत् तेनार्थेन, यस्मात पद्मबाहल्यं विद्यते तस्यां वेदिकायां तस्मादेव कारणात हे गौतम ! एवमुच्यते यदियं पद्मवरवेदिका पद्मवरवेदिकेति । अथास्याः शाश्वताशाश्वत विषये पृच्छति भगवान् गौतम :-'पउमवरवेइया णं भंते !' पद्मवरवेदिका खलु भदन्त । किं सासया असासया' किं शाश्वती-सर्व कालभाविनी, अथवा अशाश्वती न सर्वकालस्थाथिनीति पद्मवरवेदिकायाः शाश्वताशाश्वतत्व विषयक प्रश्नः, भगवानाह -'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय लेकर सहस्रपत्र तक के जितने भी कमल है, वे सब सर्वात्मना रत्नमय है अच्छे है। इन अच्छादिपदों का अर्थ पूर्वोक्त जैसा ही है 'महयार वासिक्कच्छत्त समयाई' ये सब उत्पलादि वर्षाकाल में उत्पन्न हुए छत्रक- छत्ता के आकार जैसी वनस्पति विशेष के आकार जैसे ही 'समणाउसो पण्णताई' हे क्षमण-आयुष्मन् ! कहे गये है। ‘से तेणटेणं गोयमा ! 'एवं वुच्चइ पउमवरवेदिया' इसी कारण हे गौतम ! इसे पद्मवरवेदिका इस नाम से कहा गया है । अर्थात् इस पद्मवरवेदिका में पद्मका बाहल्य है, अतः इसका नाम पद्मवरवेदिका हुआ है 'पउमवरवेदिया णं भंते' ! किं सासया असासया' हे भदन्त ? यह पद्मवरवेदिका क्या शाश्वत है या अशाश्वत है ? ऐसा यह प्रश्न સર્વાત્મના રત્નમય છે, અને અચ્છ કહેતાં સુંદર છે, આ અચ્છાદિ પદોનો અર્થ पूतिशत सभ७ वा. 'महया महया वासिक्कच्छत समयाइ' भL Gala બધા પ્રકારના કમળ વર્ષાકાળમાં ઉત્પન્ન થયેલા છત્રક છત્રીના આકાર જેવી वनस्पति विशेषना मा२२वा 'समणाउओ पण्णत्ताई' श्रमण मायुष्मन् કહેવામાં આવેલ છે. से तेणट्रेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ पउमवरवेइया' मा ४।२५५था : गौतम ! તેને પદ્મવર વેદિકા એ નામથી કહેવામાં આવેલ છે. અર્થાત્ આ પદ્મવર વેદિકામાં પદ્દમોનું અતિશય પડ્યું છે. તેથી તેનું નામ પદ્મવર વેદિકા એ शतनुं ये छे. 'पउमवरवेइयाणं भंते ! कि सासया असासया' 3 भगवन् આ પદ્મવર વેદિકા શાશ્વત છે કે અશાશ્વત છે? આ પ્રમાણેને આ પ્રશ્ન પદ્મવર વેદિકાના નિત્યપણું અને અનિત્યપણાના સંબંધમાં કરવામાં આવેલ જીવાભિગમસૂત્ર

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