Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 840
________________ ८२८ जीवाभिगमसूत्रे पर्वतात् बहिः स्थितसमुद्रवत् स्वप्रमाणे एव स्थिता, एवं स्वप्रमाणे सदाऽवस्थानेन स्थितत्वादेव 'णिच्चा' नित्या सर्वदा विनाशाभावात् धर्मा स्तिकायादि वदिति । एवम्भूतेयम् 'पउमवरवेइया' पद्मवरवेदिका वर्त्तते इति ।।सू०५२।। पद्मवरवेदिका शब्दस्य प्रवृत्तिनिमित्तं दर्शयित्वा तत्सम्बन्धिवनषण्डादिकं दर्शयितुमाह-'तीसे णं जगतीए' इत्यादि । __ मूलम्-तीसे णं जगतीए उप्पि बाहिं पउमवरवेइयाए एत्थ णं एगे महं वणसंडे पन्नत्ते, देसोणाइं दो जोयणाई चकवालविक्खंभेणं जगती समए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे जाव अणेग सगडरहजाणजुग्गसिबिय संदमाणिय परिमोयणा सुरम्मा पासा. ईया ।४, तस्स णं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमणिजे भूमिभागे पन्नत्ते, से जहा णामए आलिंगपुक्खरेइ वा, मुइंगपुक्खरेइ वा, सरतलेइ वा, करतलेइ वा, आयंसमंडलेइ वा, चंदमंडलेइ वा, सूरमंडलेइ वा, उरब्भचम्मेइ वा, उसभचम्मेइ वा, वराहचम्मेइ वा, सीहचम्मेइ वा, वग्घचम्मेइ वा, दीवियचम्मेइ वा, अणेगसंकु कीलगसहस्सवितते आवडपञ्चावड सेडी पसेढी सोत्थिय सोवस्थिय पूसमाणव वद्धमाणग मच्छंडकमकरंडकजालमार फुल्लावलि पउमपत्तसागरतरंग वासंतिलय पउमलय भत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं समरीएहिं सउज्जोएहिं णाणाविह पंचवण्णेहिं तणेहिय मणिहिय उवसोभिए, तं जहा-किण्हेहिं जाव सुकिल्लेहि ॥ तत्थ णं जे ते किण्हा तणा य मणि य तेसिं गं अयमेयारवे वण्णावासे पन्नत्ते, से जहा णामए जीमूतेइ वा यह अपने प्रमाण में 'अवट्ठिया' मानुषोत्तर पर्वत से वहिः स्थित समुद्र की तरह अवस्थित है इस तरह अपने प्रमाण में सदा अवस्थानवाली होने से यह पद्मवरवेदिका धर्मास्तिकायादिक की तरह नित्य है ।। सू०-५२॥ પ્રમાણે તે અવસ્થિત છે. આ રીતે પિતાના પ્રમાણ માં તે અવસ્થાન વાળી હોવાથી પદ્મવર વેદિકા ધમસ્તિકાયાદિની જેમ તે નિત્ય છે. . પર છે જીવાભિગમસૂત્ર

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