Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ५३ वनपण्डादिकवर्णनम्
८२९
अंजणेइ वा खंजणेइ वा कज्जलेइ वा मसीइ वा गुलियाइ वा गवलेइ वा गवलगुलियाइ वा भमरेइ वा भमरावलियाइ वा भमरपत्तगयसारेइ वा जंबूफलेइ वा अद्दारिट्ठेइ वा परपुट्ठेइ वा गएइ वा गयकलभेइ वा कण्हसपेइ वा कण्हकेसरेइ वा आगासथिग्गलेइ वा कण्हासोएइ वा किण्हसप्पेइ वा किण्हकणवीरेइ वा कण्हबंधुजीवएइ वा भवे एयारूवे सिया, गोयमा ! णो इणट्टे समट्टे, तेसिं णं कण्हाणं तणाणं मणीण य इत्तो इट्ठयराए चेव कंतयराए चैव पियतराए चेव मण्णुण्णतराए चेव मणामतराए चैव वण्णेणं पन्नते । तत्थ णं जे ते णीलगा तणाय मणीय तेसिं णं इमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, से जहाणामए भिंगेइ वा भिंगपत्ते वा चासेइ वा चासपिच्छेइ वा सुएइ वा सुयपिच्छेइ वा णीलीइ वा णीलीभेएइ वा णीलीगुलियाइ वा सामाएइ वा उच्चंतएइ वा वणराईइ वा हलहरवसणेड़ वा मोरग्गीवाइ वा पारेवयग्गीवाइ वा अयसीकुसुमेइ वा अंजणके सिगाकुसुमेइ वा णीलुप्पलेइ वा णीलासोएइ वा णीलकणवीरेइ वा, णी बंधुजीवएइ वा भवेएयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्टे, तेसि णं णीलगाणं तणाणं मणीण य एतो इट्ठतराए चेव कंततराए चेव जाव वण्णेणं पन्नत्ते, तत्थ जे ते लोहियगा तणाय मणीय, तेसि णं अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नते, से जहा णामए ससगरुहिरेइ वा उरब्भरुहिरेइ वा णररुहिरेइ वा वराइरुहिरेइ वा महिसरुहिरेइ वा बालिंद गोवएइ वा बालदिवागरेइ वा संझन्भरागेइ वा, गुंजद्धराएइ वा, जच्चहिगुलएड वा सिलप्पवालेइ वा पवालंकुरेइ वा लोहितक्खमणीइ वा लक्खारसेइ वा किमिरागेइ वा रचकंबलेइ वा चीणपिटुरासीइ वा जायसुय
"
જીવાભિગમસૂત્ર