Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 833
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.५२ जगत्याः पद्मवरवेदिकायाश्चवर्णनम् ८२१ 'सूईमुहेसु' सूचीमुखेषु यत्र प्रदेशे सूचिफलकं भित्त्या मध्ये प्रविशति तत्प्रत्यासन्नदेशाः सूचिमुखानि तेषु सूचीमुखेषु 'सूई फलएसु' सूचीफलके षु, सूची भिः संब. धिताः फलकप्रदेशाः तेऽपि उपचारात् सूचीफलकानि तेषु सूचीमध उपरिच वर्तमानेषु 'सूई पुडंतरेसु सूचीपुटान्तरेषु द्वे सूच्यौ सूचीपुटं तेषामन्तरेषु 'पक्खेसु' पक्षेषु 'पक्खबाहामु पक्षबाहासु-पक्षपार्वेषु पक्षाः पक्षबाहाः वेदिकैक देशारतेषु 'परखपुडंतरेसु' पक्षपुटान्तरेषु द्वौ पक्षौ पक्षपुटं, तेषामन्तरेषु 'बहूई उप्पलाइ" बहूनि उत्पलानि-कमलानि 'पउमाई' पद्मा नि-सूर्यविकासीनि 'जाव सयसहस्स पत्ताई यावत्-यावत्पदेन-'कुमुयनलिणसुमगसोगंधियपुंडरीयमहापुंडरीय' इति पदानां संग्रहः। कुमुदनलिनसुमगसौगन्धिकपुण्डरीकमहापुण्डरीशतपत्रसहस्र पत्राणि, तत्र कुमुदानि चन्द्रविकासीनि पद्मादारभ्य सहस्रपत्रान्तानां च विशेष: प्रागेवोपदर्शितः । कीदृशानि तानि ? तत्राह-सव्वरयणामयाई' इत्यादि, 'सव्वरयणामयाई' सर्वात्मना रत्नमयानि. 'अच्छाइ' अच्छ इत्यादि 'पडिरूव' इत्यसूईमुहेसु सूईफलएसु-सूईपुडतरेसु पक्खेसु पक्खवाहासु, पक्खपुडं. तरेसु' इसी तरह फलक के सम्बन्ध को विघटन नहीं होने देने में कारणभूत ऐसी पादुका के स्थानापन सूचियों के अग्रभाग के ऊपर - जहां कि सूचीफलक को भेदकर बीच में प्रविष्ट होती है वहां के प्रदेश सूचीमुख कहलाते हैं। सूचियों से संबंधित फलकों के ऊपर दो सूचियों के अन्तराल प्रदेश में इसी तरह से पक्षों के ऊपर पक्षों की आजू बाजू में और पक्षपुटान्तरों के ऊपर 'बहुई' उप्पलाई', पउमाई जाव सयसहस्स पत्ताइ सव्वरयणामयाई, अच्छाई' इत्यादि अनेक उत्पल अनेक सूर्यविकाशी कमल, यावतू नलिन सुभग सौगन्धिक पुण्डरीक महापुण्डरीक शतपत्र और सहस्रपत्र खिले रहते है ये सब उत्पल से में स्तम्लानी क्यमा 'सूईसु सूईमुहेसु सूई फलएसु सूईपुडंतरेसु पक्खेसु पक्ख वाहासु पक्खपुडतरेसु' से शत ३६ना संमंधने । न ५७वा हे ना કારણભૂત એવી પાદુકાના સ્થાના પન્ન સૂચિયાની ઉપર સૂચિયોના અગ્રભાગની ઉપર કે જયાં સુચી ફલકને ભેદીને વચમાં પ્રવેશે છે, ત્યાનો પ્રદેશ સૂર્યમુખ કહેવાય છે. સૂચિયાના સંબંધવાળા ફલકોની ઉપર બે સૂચિયાના અન્તરાલ મધ્ય પ્રદેશમાં એજ રીતે પક્ષોની ઉપર પક્ષેની આજુ બાજુમાં અને પક્ષ પુરાંતની 6५२ 'बहुई उप्पलाई पउसाइजाव सयसहस्सपत्ताईसव्वरयणामयाई , अच्छाई। ઈત્યાદિ અનેક ઉત્પલ અનેક સૂર્ય વિકાશી કમલ યાવત નલિન, સુભંગ, સૌગન્ધિક, પુંડરીક, મહાપુંડરીક, શતપત્ર અને સહસ્ત્રપ ખીલેલા રહે છે. ઉત્પલથી લઈને સહસ્ત્રપત્ર સુધી જેટલા પ્રકારના કમળ કહ્યા છે તે બધા જીવાભિગમસૂત્ર

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