Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 831
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.५२ जगत्याः पद्मवरवेदिकायाश्चवर्णनम् ८१९ नित्यं यमलिताः, यमलं नाम समानजातीयलतयोयुग्मं तत्संजातम् आस्विति यमलिताः 'णिच्चं जुलिया नित्यं युगलिताः युगलं सजातीय विजातीययोलतयोर्द्वन्द्वम्, 'णिच्चं विणमिया' नित्यं विनता:-सर्वकालं फलभारेण ईषन्नताः 'णिच्चं पणमिया' नित्यं प्रणताः-सर्वकालं महता फलभारेण दूरं नताः, तथा'सुविभत्त पडिमंजरिवडिंसगधरीओं' सुविभक्ति प्रतिमचर्यवतंसकधर्यः, तत्र सुविभक्तिकः-सुविच्छित्तिकः प्रतिविशिष्टो मञ्जरीरूपो योऽवतंसक, तद्धरास्तद्धारिण्यः एषः सर्वोऽपि कुसुमितत्वादिको धर्म एकैकस्या एकैकस्या लताया उक्तः सम्प्रति-कासाञ्चिल्लतानां सकल कुसुमितत्वादि धर्मप्रतिपादनार्थ पूर्वोक्त सकलविशेषणसंग्रहमा ह='णिच्चं कुसुमिय-मउलिय=लवइय-थवइय-गुम्मिय विमिय पणमिय-सुविभत्त परिमंजरिवळिसगधरीओ नित्यं कुसुमित-मुकुलित पल्लवित स्तबकित-गुल्मित-गुच्छित-विनमित-प्रणमित सुविभक्त प्रतिमञ्जर्यवतंसकधर्यः एतत्पदगतानां विशेषणानामर्थः पूर्वं व्याख्यात एवेति । पुनः किं रूपास्ता: ?इत्याह-'सव्वरयणा मइओ' सर्वात्मना रत्नमय्यः, 'सण्हा. ओ' इत्यारभ्य 'पडिरूवाओ' इति पर्यन्तानां विशेषणपदानामर्थाः पूर्ववदेव ज्ञातव्याः। अतः परं पद्मवरवेदिका शब्द प्रवृत्तिनिमित्तं जिज्ञासुः प्रश्नयनाह-'से केण टेणं भंते !' इत्यादि, ‘से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ पउमवरवेइया पउमवरवेइया' युग्मों से युक्त रहती है तथा 'सुविभक्त पडिमंजरिवडिंसगधरीओ' सुविभक्त प्रतिविशिष्ट मंजरी वही है एक वडिंसक-अवतंसक-मुकुट उसको धारण किये रहती है। 'सव्वरयणामईओ, सहाओ' ये सब लताएं भी सर्वात्मना रत्नमय है इलक्षण आदिविशेषणों वाली हैं इन इलक्षण आदि प्रतिरूप पर्यन्त पदों का अर्थ पहिले ही लिखा जा चूका है अतः उसी तरह से उसे जान लेना चाहिये अब पद्मवरवेदिका के शब्द प्रवृत्ति निमित्त को जानने के लिये पूछते है। ‘से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ पउमवरवेदिया२' हे भदन्त ? इस पद्मवरवेदिका का ऐसा रहेछ. तथा 'सुविहत्थ पडिम जरिवळिसगधरीओ' सुविन प्रतिविशिष्ट भारी એજ કહેવાય છે કે જે એક વડિસગ અવતસક મુકુટને ધારણ કરેલ રહે છે. 'सव्वरयणा मईओ सण्हाओ' मा मधी बताया ५९३ सर्वात्मना सारे રત્નમય છે. અને ક્ષણ વિગેરે વિશેષ વાળી છે. આ લક્ષણ વિગેરે પ્રતિરૂપ સુધીના પદને અર્થ પહેલાંજ લખવામાં આવી ગયેલ છે. તેથી એ રીતે અર્થ અહિયાં સમજી લે. હવે પદ્મવર વેદિકાના શબ્દ પ્રવૃત્તિ નિમિત્તને જાણવા માટે શ્રીગૌતમ. स्वामी प्रसुश्रीन पूछे छे 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ पउमवरवेश्या पउमवर જીવાભિગમસૂત્ર

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