Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.४० ए० इन्द्रमहोत्सवादि वि. प्रश्नोत्तरा: ६५५ 'लिक्खाइ वा' लिक्षा इति वा ढकुणाइ वा ढंकुण इति वा ढंकुणो-मन्कुणः ? इति प्रश्ना, भगवानाह-'णो इणढे समढे' नायमर्थः समर्थः, यतः 'ववगय दंसमसगपिसुयजयलिक्खहंकुण एगोरुयदीवे पण्णत्ते समणाउसो'! व्यपगतदंशमशक पिशुकयूकाढंकुण एकोरुक द्वीपः प्रज्ञप्तः हे श्रमणायुष्मन् ! 'अथिणं भंते ! एगोरुय दीवे दीवे' अस्ति खलु भदन्त ! एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'अहीइ वा' अहि - सर्प इति वा 'अयगराइ वा' अजगराइ इति वा, अजगरः स्थूलकाय: सर्पः 'महोरगाइ वा महोरग इति वा, विशालकायः सर्प इति प्रश्नः, भगवानाह'हंता अस्थि' हन्त, गौतम ! सन्ति सर्पादयो जन्तव इति, किन्तु 'नोचेव णं ते वा जुयाइ वा लिक्खाइ वा ढंकुणाइ वा' हे भदन्त ! एकोरुक द्वीप में दंश, मशक, पिस्सू जू लीख, या मत्कुण-खटमल-होते हैं क्या ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'णो इणट्टे समझे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् यहां देश-विच्छ-आदि डंक से काटने वाले
और मशक-मच्छर वगैरह ये एक भी नहीं होते हैं। क्योंकि-'वदगयदंसमसकपिसुय जय लिक्खढिंकुणे णं एगोरुय दीवे पण्णत्ते' क्योंकि हे श्रमण आयुष्मन् ! यह एकोरुक द्वीप दंश मशक, पिस्सु, जू, लीख और मत्कुण इन से सर्वथा रहित कहा गया है 'अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे दीवे अहीइ वा, अयगराइ वा, महोरगाइ वा' हे भदन्त ! एकोरुक द्वीप में क्या सर्प होते हैं ? अजगर होते हैं ? या महोरग महाकाय वाले सर्प विशेष होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'हता, अत्थि' हां गौतम ! ये सर्प आदि जीव यहां एकोरुक द्वीप में होते हैं किन्तु 'नो चेवणं ते अन्न मन्नस्स तेसिवा मणुयाणं किंचि રૂક દ્વીપમાં દંશ, મશક મચ્છર, પિસૂ, જૂ, લીખ અથવા માકડ હોય છે ? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमवाभान छ ४ : 'णो इणटे समटे' के गौतम ! આ અર્થ બરાબર નથી. અર્થાત ત્યાં દંશ, મશકપિસ્ય જૂન લીખ વિછી વિગેરે ડંખથી કરડવાવાળા અને મચ્છર વિગેરે ઉપદ્રવ કરવાવાળા જ હતા નથી.
भो ‘ववगयद समाप्तकपिसुयजूय लिक्खढिंकुणेणं एगोरूयदीवे पण्णत्ते' हे श्रम આયુશ્મન્ આ એકેક દ્વીપમાં દંશ, મચ્છર પિસુ, જૂ, લીખ અને માકડ विनानाय छे. तेभ ४३वामां आवे छे. 'अस्थि णं भंते ! एगोरुय दोवे दीवे अहोईवा, अयगराइवा, महोरगाइवा' इसापन । ।३४ दीपभा सी હોય છે? અજગર હોય છે ? અથવા મહારગ હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गौतमस्वाभान ४ छ, 'हंता अत्थि' । गीतमा सासविगेरे वो महियां ॥ १३४ द्वीपमा इम्य छे. परंतु 'नो चेव गं ते अण्ण
જીવાભિગમસૂત્ર