Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 824
________________ ८१२ जीवाभिगमसूत्रे कंबास्थानीयाः, 'जायख्वमईओ ओहाडणीओ' जातरूपं - सुवर्णविशेषः तन्मय्यः घाटिन्यः आच्छादन हेतु कंबोपरि स्थाप्यमान महाप्रमाण किलिंच स्थानीयाः 'वरामईओ उवरिं पुंछणीओ' वज्रमय्यो वजरत्नात्मिका अवघाटनीनामुपरि पुंछन्यः निविडतरच्छादन हेतुश्लक्ष्णतरतृणविशेषस्थानीयाः, तत्र - अवघाटनी महती, क्षुल्लिकातु पुच्छनी, इत्येव उभयोर्भेदः 'सव्वसेए रययामए छायणे' सर्वश्वेतं रजतमयं छादनम् सर्वश्वेतं रजतमयं पुंछनीनामुपरि कवेल्लुकानामध आच्छादनमिति || ' साणं पउमवर वेइया' सा खलु उपर्युक्ता पद्मवरवेदिका 'एगमेगेण हेमजालेणं' एकैकेन हेमजालेन सर्वात्मना हेममयेन लम्बमानेन लम्बमानेन दामसमूहेनेत्यर्थः 'एगमेगेणं गवक्खजालेण' एकैकेन गवाक्षजालेन - गवाक्षाकृति रत्न विशेष दाम समूहेन 'एगमेगेणं खिखिणी जालेणं' एकैकेन किंकिणी जालेन, किंकिण्यः - क्षुद्रघण्टिकाः, तथा चैकैकेन क्षुद्रघण्टिका जालेनेत्यर्थः ' एगमेगेण मुखाजालेणं' एकैकेन मुक्ताजालेन मुक्ताफलमयेन दामसमूहेन ' एगमेगेणं मणिजालेणं' एकैकेन मणिजालेन मणिमयेन दामसमूहेन हैं । ढक्कन है वे जातरूप की बनी हुई है 'वइरामइओ उवरि पुंछणीओ' इन ढक्कनों के ऊपर जो पुञ्छनी है - ढक्कनों के छेदों को बंद करने के लिये जो उनके ऊपर इलक्ष्णतर तृणविशेष के स्थानापन्न और ढक्कन है । जैसा कि घास के छापराओं के ऊपर बने रहते है-वे वज्ररत्न की है अबघाटनी वडी होती है औ पुंछनी इसी प्रकार की छोटी होती है यही इन दोनों में अन्तर है । 'सव्वसेए रय्यामए छायणे' पुंछनयों के ऊपर और कवेल्लुओं के नीचे जो आच्छादन है वह रजतमय-चांदी का बना हुआ है। ऐसी वह वेदिका हैं 'सा णं परमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गवक्ख जालेणं एगमेगेणं खिखिणिजा लेणं एगमेगेणं मुत्ताजालेणं, एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कणयजा • 'जातरूपमयीओ ओहा उणीओ' माओने ढांडवा भाटे तेना उपर ने व्यवघटिनि ढांड छे ते ३५ रत्नानी भनेसी छे. 'वइरामइओ उवरि पुंछणीओ' એ ઢાંકણની ઉપર જે પુચ્છની ઢાંકણના છિદ્રોને બંધ કરવા માટે તેના ઉપર જે ઋણતર તૃણ વિશેષના સ્થાને ખીજા ઢાંકણુ છે જેમ ઘાસના છાપરાએ ઉપર ખનાવેલા હોય છે. તે વજા રાના છે. અવઘાટણી મેાટી હોય છે, અને પુચ્છણી તેનાજ જેવી નાની હોય છે. એટલુ એ ખન્નેમાં અંતર-જુદાઇ छे. 'सव्वसेए रययामए छायणे' पुंछलीयोनी उपर आने वेदलुनी नीचे ने આચ્છાદન ઢાંકણુ છે તે રજતમય ચાંદીના બનેલા છે. એવી તે વેદિકા છે. 'सा णं पउमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं खिंखिणिजालेणं एगमेगेणं मुत्ताजालेणं एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कणय જીવાભિગમસૂત્ર

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