Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 825
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.५२ जगत्याः पद्मवरवेदिकायाश्चवर्णनम् ८१३ 'एगमेगेणं कणयजालेणं' एकैकेन कनकजालेन कनकं पीत सुवर्ण विशेष : तन्मयेन दामसमूहेन 'एगमेगेणं रयणजालेणं' एकैकेन रत्नजालेन ‘एगमेगेणं पउमजालेणं सव्वरयणामएणं' एकैकेन पद्मजालेन सर्वरत्नमयेन सर्वरत्नमय पद्मात्मकदामसमूहेन 'सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' सर्वतः-सर्वासु दिक्षु समन्तात् सर्वासुविदिक्षु परिक्षिप्ता-सम्यक्परिवेष्टिता । 'ते णं जाला तवणिज्जलंबूसगा' तानि खलु जालानि दामसमूहरूपाणि हेमजालादीनि तपनीयलंबूसकानि, तपनीयमारक्त सुवर्ण तन्मयो लंबूसको दाम्नामग्रिमभागे मण्डनविशेषो येषां तानि तपनीयलम्बूसकानि 'सुवण्णपयरगमंडिया' सुवर्णप्रतरकमण्डितानि, पार्श्वतः सामस्त्येन लेणं एगमेगेणं रययजालेणं एगमेगेणं पउमवरजालेणं सव्वरयणामएणं सवतो समंता संपरिक्खित्ता' वह पद्मवरवेदिका भिन्न भिन्न स्थानों में एक एक हेमजाल से लटकते हुए सुवर्णमय मालासमूह से एक एक गवाक्ष जाल से लटकते हुए गवाक्ष की आकृति वाले रत्नविशेष की मालासमूह से एक एक लटकते हुए क्षुद्रघंटिका जाल से एक एक लट. कते हुए वडेर घंटिका जाल से लटकते हुए मुक्ताफलमय दामसमूह से, एकएक लटकते हुए कनकजाल से पीत सुवर्णमय दामसमूह से एकएक लटकते हुए रत्नजाल से-रत्नमयदामसमूह से एक एक सर्वरत्नमय कमलों की माला के समूह से सर्वदिशाओं में और विदिशाओं में व्याप्त हो रही है। परिवेष्टित बनी हुई है । तेणं जाला नवणिज्जलं बसगा' ये सब दामसमूहरूप जाल तपनीय सुवर्ण के लंबसक वाले है। अर्थात् ये हिमादि के जाल अग्रभाग में तपनीय आरक्त-सुवर्ण के जालेणं एगमेगेणं रथयजालेणं एगमेगेणं पउमवरजालेणं सव्वरयणामएणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' 2. ५१२ वह गुहा ॥ स्थानामा मेरो और એક બાજુ હમજાલથી લટકતા સુવર્ણ મય માળા સમૂહથી કઈ બાજ ગવાક્ષ. જાલથી લટકતા ગવાક્ષના આકારવાળા ૨ત્ન વિશેષની માલા સમૂહથી કઈ બાજ એક એક લટકતી ક્ષુદ્ર નાની નાની ઘંટિકાજાલથી ઇંટડિયાના સમૂહથી કઈ આજ એક એક લટકતા મોટી મોટી ઘંટિકાજાળથી, લટકતા મૂકતાફળમય મોતી વાળા દામ સમૂહની માળાએથી એક એક લટકતા કમળ જાલથી કમળાના સમૂહથી પીત સુવર્ણમય માળાઓના સમૂહથી એક એક લટકતા રત્નજાળથી રત્નમય માળાઓના સમૂહથી એક એક સર્વે રતનમય કમળની માળાના સમૂહથી સર્વ દિશાએથી અને વિદિશાઓથી વ્યાપ્ત થઈ રહી છે. પરિવેષ્ટિત વીંટળાયેલી રહે છે. __ 'ते णं जाला नवणिज्जलंबू सगा' मा प्रथा हम सभूए ३५ on तपा જીવાભિગમસૂત્ર

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