Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३. सू. ४० ए० इन्द्रमहोत्सवादि वि. प्रश्नोत्तराः
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'रेणूइ वा' रेणुरिति - रजो वा, 'पंकेइ वा' पङ्क इति वा जलाबिल कर्दमः 'चलणी वा' चलनीति वा, चलनी चरणमात्रस्पर्शीकदम एव, भगवानाह - 'णो इणट्टे समट्ठे' नायमर्थः समर्थः यतः एगोरुय दीवे णं दीवे' एकोरुक द्वीपे खलु द्वीपे ' बहुमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते समणा उसो' बहुसमरमणीयः भूमिभागः प्रज्ञप्तः हे श्रमणायुष्मन् ! 'अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे' अस्ति खलु भदन्त ! एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'खाणूइ वा' स्थाणुरिति वा स्थाणुः - उत्कातितधान्यमूल मूर्ध्वकाष्ठं वा 'कंटएइ वा' कण्टक इति वा, 'हीरएइ वा' होरकमिति वा, सूची मुखकाष्ठविशेषः, 'सक्कराइ वा' शर्करा इति वा शर्करा लघु प्रस्तर खण्डरूपा 'तणकयवराइ वा' तृणकचवर इति वा 'पत्तकयवराइ वा' पत्र कचवर होते हैं क्या ? कि जहां पर थोडे पानी का कीचड़ हो ? क्या ऐसे भी स्थान होते हैं जो धूलिवाले रेणुवाले एवं एङ्क - कीचड वाले हों तथा विजल - क्या ऐसे भी स्थान होते हैं कि जिन में पैरमात्र लिप्त हों ऐसे विना पानी का कीचड - कादव रहता हो ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'णो इणट्टे समट्टे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है- अर्थात् वहां पर गर्त आदि वाले स्थान नहीं हैं क्योंकि - 'बहु समरमणिज्जे भूमि भागे पण्णत्ते समणाउसो' हे श्रमण आयुष्मन् ! वहां का भूमिभाग बहुसम - समतल और रमणीय कहा गया है । 'अत्थि णं भंते! एगोरु दीवे दीवे' हे भदन्त ! एकोरुक नाम के द्वीप में 'खाणूइ वा' क्या स्थाणु-उखाडे गये धान्य का मूल टूठ होता है ? 'कंटएइ वा ' कंटक होते हैं ? 'हीरएति वा' हीरक - जिसका मुख शुचि के मुख के जैसा तीक्ष्ण होता है ऐसा काष्ठ विशेष होता है क्या ? 'सक्कराति वा'
પાણી વાળા કાદવ હેાય એવા સ્થાનેા હોય છે? જે મૂળ વાળા રતવાળા અને કાદવવાળા હાય એવા સ્થાને હાય છે ? અને જેમાં પગ મૂકવાથી ખગડે એવા પાણી વિનાના કાદવ હોય તેવા સ્થાનેા હાય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमां प्रभुश्री गौतमस्वामीने उडे छे } 'णो इणट्टे समट्टे' हे गौतम! मा अर्थ समर्थ नथी अर्थात् त्यां यावा स्थान होता नथी. भ} 'बहु समरमणिज्जे भूमिभागे पण ते समाउसो' डे श्रमण आयुष्मन् | त्यांना भूमिभाग महुसभ थोड सरयो भने रमणीय सुंदर होय छे. 'अत्थि णं भंते ! एगोरुअ दीवे दीवे' हे भगवन् ! थे हैं।३४ नामना द्वीपमा 'खाणूइवा' उखाडवामां आवेस धान्यना भूज हूँडी होय छे ? 'क'टएइवा' अंटा होय छे ? fetegar' glas-21 242ભાગ સેઇની અણી જેવા તીક્ષ્ણ હાય એવુ એક જાતનું કાષ્ઠ વિશેષ હાય છે ? 'सक्कराइवा' नाना पथ्थरोना डाडे ३५ सा४२ होय छे ? 'तण कयवराइवा'
જીવાભિગમસૂત્ર