Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.४४ हयकर्णद्वीपनिरूपणम् षट्पञ्चाशत् सन्ति तेषु एकोरुकादयोऽष्टाविंशतिर्दक्षिणस्यां दिशि तत्र अष्टाविंशतिः रेव, उत्तरस्यां दिशीत्यत्र दक्षिणा दिकस्थितान्तरद्वीपानां प्रकरण मित्यतो दाक्षिणा त्याना मित्युक्तम्, हयकर्णमनुष्याणाम्, 'हयकण्ण दीवे नामं दीवे पण्णत्ते' हयकर्णद्वीपो नाम द्वीपः प्रज्ञप्तः, हे भदन्त ! हयकर्णमनुष्याणां हयकर्णद्वीपो नाम निवासस्थानं कुत्र कथित , इति प्रश्नः, भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगोरूयदीवस्स' एकोरुकनामक द्वीपस्य 'उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ' उत्तरपौरस्त्यात्-उत्तरपूर्वे-ईशानकोणे विद्यमानात् चरमान्तात् 'लवणसमुई चत्तारि जोयणसयाई ओगाहिता' लवणसमुद्रं चत्वारि योजनशतानि अवगाह्य-व्यतिक्रम्य 'एत्थ णं दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणुस्साणं' अत्र खलु दाक्षिणात्यानां हयकर्णमनुध्याणाम् हयकण्ण दीवे णामं दीवे पण्णत्ते' 'हयकर्णद्वीपोनाम द्वीपः प्रज्ञप्तः कथितः, दक्षिण दिशा में और वैसे ही अठाईस उत्तर दिशा में होते है यहां दक्षिण दिशा के अन्तर द्वीपो का प्रकरण होने से 'दाहिणिल्लाणं' ऐसा कहा है। इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! एग्गोरुय दीवस्स उत्तर पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुदं चत्तारि जोयण सयाई ओगा. हित्ता एत्थणं दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणुस्साणं हथकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते' एकोरुक द्वीप के ईशान कोने में विद्यमान चरमान्त से लवण समुद्र में चार सौ योजन तक चलने पर इसी स्थान में दक्षिण दिशा के हयकर्ण मनुष्यों का हयकर्ण नामका द्वीप है। तात्पर्य इस कथन का ऐसा है कि एकोरुक द्वीप के पूर्व चरमान्त से ईशान दिशा में लवण समुद्र में चार सौ योजन जाने पर यहां क्षुल्ल हिमंवत पर्वत की दाढा आती है सो इस दाढा के ऊपर जम्बुद्धीप की वेदिका के अन्त भाग से चार सौ योजन के अन्तर में दाक्षिणात्य हयकर्ण मनुष्यों का यह हयकर्ण नामका द्वीप कहा गया है। यह द्वीप की 'चत्तारि जोयणसयाई દક્ષિણ દિશામાં અને બીજા ૨૮ અઠયાવીસ ઉત્તર દિશામાં હોય છે. અહિયાં दक्षिण हिशाना त२ द्वीपोनु ४२६४ पाथी 'दाहिणिल्लाणं' से प्रभारी अडेस छ. २मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमत्वामीन ४३ छे 'गोयमा ! एगोरुय दीवस्स उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुदं च तारि जोयणसया ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणुस्साण हयकण्ण दीवे णामं दीवे पण्णत्ते' थे।३४ द्वीपना शान भूशामा मावस य२मान्तथी व समुद्रमा ચાર જન સુધી જવાથી એજ સ્થાનપર દક્ષિણ દિશાને યકર્ણ મનુખ્યાને હયકર્ણ નામને દ્વીપ આવેલ છે.
આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે એકરૂક દ્વીપના પૂર્વ ચરમાન્સથી ઈશાન દિશામાં લવણ સમુદ્રમાં ચારસો જન જવાથી ત્યાં સુલ હિમવંત
जी० ८७
જીવાભિગમસૂત્ર