Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.४२ एको० डिबडमर-कलहादि निरूपणम् ६६३ वा कच्छइ वा खसराइ वा कुटाइ वा कुडाइ वा दगोयराइ वा अरिसाइ वा अजीरगाइ वा भगंदराइ वा इंदग्गहाइ वा खंदग्गहाइ वा कुमारग्गहाइ वा जागरगहाइ वा जक्खग्गहाइ वा भूतग्गहाइ वा उव्वेयग्गहाइ वा धणुग्गहाइ वा एगाहियग्गहाइ वा बेयाहियगहियाइ वा तेयाहियगहियाइ वा चाउत्थगाहियाइ वा हिययसूलाइ वा मत्थगसूलाइ वा पाससूलाइ वा कुक्षिसूलाइ वा जोणिसूलाइ वा गाममारीइ वा जाव सन्निवेस. मारीइ वा पाणक्खय जाव वसणभूयमणारियाइ वा?णो इणटे समटे, ववगयरोगायंका गं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!। अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे दीवे अतिवासाइ वा मंदवासाइ वा सुवुट्टीइ वा दुवुट्ठीइ वा उव्वाहाइ वा पवाहाइ वा दगुब्भेयाइ वा दगुप्पीलाइ वा गामवाहाइ वा जाव सन्निवेसवाहाइ वा पाणक्खय० जाव वसणभूयमणारियाइ वा ? णो इणटे समटे, ववगयदगोवद्दवाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!। अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे दीवे अयागराइ वा तंबागराइ सीसागराइ वा सुवण्णागराइ वा रयणागराइ वा वइरागराइ वा वसुहाराइ वा हिरण्णवासाइ वा सुवण्णवासाइ वा रयणवासाइ वा वइरवासाइ वा आभरणवासाइ वा पत्तवासाइ वा फलवासाइ वा बीयवासाइ वा मल्लवासाइ वा गंधवासाइ वा वण्णवासाइ वा चुण्णवासाइ वा खीरवुट्टीइ वा रयणवुट्टीइ वा हिरण्णवुट्रीइ वा सुवण्णवुट्रीइ वा तहेव जाव चुण्णवुट्टीइ वा सुकालाइ वा दुका. लाइवा सुभिक्खाइ वा दुभिक्खाइ वा अप्परघाइ वा महग्याइ वा कयाइ वा महाविक्कयाइ वा सण्णिहाइ वा संचयाइ वा निधीइ वा चिरपोराणाइ वा पहीणसामियाइ वा पहीणसेउयाइ वा
જીવાભિગમસૂત્ર