Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३उ.३सू.४२ डिंबडमर- कलहादि निरूपणम् ६७३ याइ वा' उदकोमेद इति वा पर्वतात्पत्तितमुद्भेदजनकं जलवहनम् भूमिमुद्भिद्य. जलनिस्सरणं वा 'दगुप्पीलाइ वा' उदकोत्पीडेति वा जलस्योचैः प्लवनम् ‘गामवाहाइ वा' ग्रामवाहा इति वा, ग्रामस्य जलपूरेण वहनम् 'जाव संनिवेसवाहाइ वा' यावत् सन्निवेशवाह इति वा, यावत्पदेन-आकरनगरखेटकर्बटमडम्बद्रोणमुखपत्त. नाश्रमसंबाहानां ग्रहणं भवति, तत्र ग्रामादीनां जलपूरेण वहन मिति वा 'पाणक्खय० जाव वसणभूयमणारियाइ वा' प्राणक्षय यावत् जनक्षय कुलक्षयधनक्षयच्यसनभूतानार्या इति वा प्राणक्षयादयो लोकानां व्यसनभूताः आपदभूता अनार्या:-पापा. त्मकाः ते एते एकोरुकनिवासिनां भवन्ति किमिति प्रश्ना, भगवानाह-'णो इणट्टे समटे' नायमर्थः समर्थः एते अतिवर्षादयोऽनार्याः एकोरुकवासिनां न भवन्ति क्या ? 'पवाहाइ वा जिस वृष्टि से ऐसा प्रवाह-जल का पूर-आ जावे ऐसी वृष्टि होती है क्या ? 'दगुल्मेयाइ वा' क्या ऐसी वृष्टि होती है कि पर्वत से पड़ने के कारण जमीन के भीतर खड्डे पड जावे, अथवा जमीन के भीतर से भी पानी बाहर निकलने लग जावे 'दगुप्पीलाइ वा' क्या ? ऐसी वृष्टि होती है कि जिससे पानी का प्रवाह टक्कर खाकर इधर उधर फैल जावे 'गामवाहाइ वा' क्या ऐसी वहाँ वृष्टि होती है जो ग्राम को वहा ले जावे ? 'जाव संनिवेसवाहाइ वा' यावत् सन्निवेश को वहा ले जावे! यहां यावत्पद से आकर वाह नगरवाह खेदवाह इत्यादि पदों का ग्रहण हुआ है ऐसे जल के उपद्रव से 'पाणक्खयजाव वसणभूत मणारियाइ वा' क्या वहां जो प्राणियों का विनाश हो ? यहां यावत् शब्द से 'जनक्षय धनक्षय कुलक्षय' इन पदों का संग्रह हुआ है इस तरह कैसे हे भदन्त ! क्या वहां एकोरुक द्वीप निवासियों को कष्टों का सामना करना पड़ता है ! इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं 'णो इणहे सम?' हे
___ 'दगुब्भेयाइवा' अव १२साह थाय छ, ५ त५२थी ५वान २२ જમીનમાં ખાડા પડી જાય? અથવા જમીનની અંદરથી પણ પાણી બહાર नीजी साव १ 'दगुप्पीलाइवा' शु मेवा १२सा थाय छे पाणीना प्रवाह ७२ माधन मामतेम ३सा 1य ? 'गामवाहाइवा' त्यां मेवा १२सा थाय छ रे मामा गाभने तपाणी य. 'जाव संनिवेसवाहाइवा' यावत् सनिवेशने वडीने स (ગામને તાણી) જાય? અહીંયાં યાવત્પદથી આકરવાહ, નગરવાહ, ખેટવાહ વિગેરે पहानी संग्रह थय। छे. माशतना पाशीना पद्रवथा 'पाणक्खय जाव वसणभूतमणारियाइवा' त्यांचे प्राणियोन। विनाश थाययावत् नक्षय धनक्षय थाय हुस ક્ષય થાય આવા પ્રકારના ઉપદ્રને એકરૂક દ્વીપ વાસિયોને સામનો કર ५९ छ ? 41 प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४९ छ 'णो इणद्वे समटे गौतम !
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જીવાભિગમસૂત્ર