Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
'अस्थि णं एगोरुयदीवे दीवे' अस्ति खलु एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'मित्ताइ वा' मित्रमिति वा, 'वयंसाई वा' वयस्य इति वा वयस्यः समानवयाः गाढतरप्रेमयुक्तः 'घडिआइ वा' घडिआ इति वा 'घडिओ' इति देशी शब्दः गोष्ठीवासी, तेन घडिआ गोष्ठी 'सहीति वा' सखा इति वा, तत्र सखा-समानखादनपानादौ सहचारी 'सुहियाइ वा' सुहृद इति वा सतत सहचारी हितोपदेशदायी च 'महाभागाइ वा' महाभाग इति वा 'संगइयाइ वा' सांगतिक इति वा, तत्र साङ्गतिकः सङ्गतिमात्रघटितः संगतिशीलः परिचित इत्यर्थः, भगवानाह - 'णो इण समट्टे' नायमर्थः समर्थः यतः 'ववगयपेम्मा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणा उसो' व्यपगत- प्रेमास्ते मनुजगणाः प्रज्ञप्ताः हे श्रमणायुष्मन् ! न च खलु तेषामेको रुकमनुजानां रागरूपं बन्धनं समुत्पद्यते इति । ' अस्थि णं भंते! एगोरुयदीवे२' अस्ति खलु भदन्त ! एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'आवाहाइ वा ' नहीं होता है 'अस्थि णं भंते एगोरुय दीवे २, मित्ताइ वा वयंसाइ वा, घडियाई वा, सही वा, सुहियाइ वा' हे भदन्त ! एकोरुक द्वीप में 'यह मित्र है यह वयस्य है - समान अवस्था वाला और गाढतर प्रेम से युक्त है यह घटित है यह देशी शब्द है गोष्ठी वाची वहां गोष्ठी-मित्र मण्डली है यह सखा है - खान पान आदि में साथ रहने वाला है यह सुहृद हैंनिरन्तर साथ रहने वाला है और हित का उपदेश दाता है- 'महाभा गाति वा, संगतियाति वा,' यह महा भाग्यशाली है, यह सांगतिक हैसंगति करने मात्र से जो मित्र बन गया है वह है 'ऐसा व्यवहार होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - हे श्रमण आयुष्मन् ! 'णो इण्डे समट्ठे ववगयपेम्मा ते मणुयगणा पण्णत्ता' यह अर्थ समर्थ नहीं है वहां कोई किसी का न मित्र है न वयस्य आदि हैं- क्योंकि वे मनुष्य प्रेमानुबन्ध रहित होते हैं । ' अस्थि णं भंते! एगोरुय दीवे २, आवाहाति
अंध होतो नथी. 'अत्थि णं भंते! एगोरुयदीवे दीवे, मित्ताइ वा, वयं साइ वा घडियाइवा, सहीवा, सुहियाइवा' हे भगवन् ! ते ३ द्वीपमा 'आा भित्र છે. આ વયસ્ય સમાન ઉમ્મરવાળા અને ગાઢ પ્રેમથી યુક્ત છે, આ ઘટિક છે, आ देशी शब्द छे, ते गोष्ठिवायी छे. गोष्ठी मित्र मंडलीने हे छे. मा સખા છે. અર્થાત્ કાયમ સાથે રહેવાવાળા છે. અને હિતના ઉપદેશ કરનાર છે. 'महाभागातिवा, संगतियाति वा' मा महा लाग्यशाली छे, म सांगति छे, अर्थात् સંગતિ કરવા માત્રથી જે મિત્ર બની જાય છે તે સાંગતિક કહેવાય છે. આ प्रश्नना उत्तरभां अलुश्री गौतम स्वामीने हे छे 'णो इणट्टे समट्ठे ववगयपेम्मा ते मणुयगणा पण्णत्ता' आ अर्थ मरोजर नथी. भडे ते मनुष्यो प्रेमानुबंध विनाना होय छे, 'अस्थि णं भंते ! एगोरुय दीवे दीवे अबाहातिवा, विवाहाति
જીવાભિગમસૂત્ર