Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ३४ एकोरुकद्वीपस्याकारादिनिरूपणम्
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पगारा' बहुप्रकाराः एकैकस्मिन् विधौ अवान्तरानेकभेदसद्भावादिति । 'तहेव ते भिंगंगया विदुमगणा' तथैव ते भृताङ्गा अपि द्रुमगणाः 'अणेग बहुविविहवीससा परिणयाए' अनेकं बहुविविधप्रकारेण विस्त्रसापरिणतेन - स्वभावत एव परिणतेन विसापरिणामेनानेकप्रकारतया परिणतेन न तु केनचित्तथा संपादिता इति । 'भायणविधी ए उववेया' भाजनविधिनोप पेताः - युक्ताः, 'फलेर्हि पुण्णा विसति' फलैः पूर्णां दलन्ति - विकसन्ति कुसविकुस जाव चिह्नंति' कुसविकुस विशुद्ध वृक्षमूला: मूलकन्दादि मन्तो यावत् प्रासादनीया अभिरूपाः प्रतिरुयास्तिाउन्तीति २ ।
के चित्रों की रचना की गई होती है भाजन विधि अनेक प्रकार की होती है - अर्थात् भाजन अनेक प्रकार के होते हैं-क्योंकि इनके अवान्तर भेदों की गिनती नही है - इसलिये 'मिंगंगया वि दुमगया तहेव' ये जो भृताङ्ग जाति के कल्पवृक्ष हैं वे भी एक प्रकार के न हो कर अनेक प्रकार के ही होते हैं। तभी तो ये भिन्न २, जाति के रूप में परिणत होते रहते हैं । 'अणेग बहु विविहवीससा परिणयाए ' इनका जो इस प्रकार से विविध पात्रों के देने रूप परिणाम है स्वा भाविक हैं किसी के द्वारा किया गया नहीं होते हैं 'भायणविहीए उववेया' इस तरह भाजन प्रदान करने की विधि से युक्त हुए ये भृताङ्ग जाति के कल्पवृक्ष 'फलेहिं पुण्णा विसद्धति' फलों से भरे हुए विकसित होते रहते हैं और भिन्न २, प्रकार के पात्रों को प्रदान करते रहते हैं । 'कुस विकुस जाव चिट्टेति' इनकी भी नीचे की जमीन पर कुश आदि नही होते है ये प्रशस्त मूल आदि विशेषणों वाले होते हैं ॥२॥
હાય છે. ભાજન વિધિ અનેક પ્રકારની હોય છે. અર્થાત્ અનેક પ્રકારના ભાજન વાંસણા હોય છે. કેમકે તેના અવાન્તર ભેદેાની ગણત્રી થઈ શકે તેમ નથી તેથી " भिंगंगा वि दुमगया तहेव' मा भूतांग लतीना उदय वृक्षों छे, ते प એક પ્રકારના ન હોઈ અનેક પ્રકારનાજ હોય છે. ત્યારેજ તે જુદી જુદી लतना पात्रोना ३५मा परिणत थता रहे हे. 'अणेगबहु विविहवीससा परि णयाए, या प्रमाणे विविध पात्राने भायवा ३५ भानुं ने परिणाम छे, ते स्वालाविपुल छे. अर्धना द्वारा वामां आवेस होता नथी. 'भायणविहींए उववेया' આ રીતે ભાજન પ્રદાન કરવાની વિધિથી યુક્ત એવા આ ભૂતાંગ જાતિના
वृक्ष। 'फलेहिं पुण्णा विसÇति' इणेोथी लरेसा थर्धने विउसित थता रहे छे, अने भूहा नहा प्रहारना यात्री याच्या २ छे. 'कुसविकुस जाव चिट्टेति' તેની નીચેની જમીન પર પણ કુશ વિગેરે હાતા નથી, અને તે બધા પ્રશસ્ત મૂળ વિગેરે વિશેષણાવાળા હેાય છે. ॥ ૨ ॥
જીવાભિગમસૂત્ર