Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे यासां तास्तथा जराजन्य शरीरकेशवरूप्यरहिता इत्यर्थः, 'वंगदुव्वण्ण वाही दोभग्गसोगमुकाओ' व्यंगदुर्वर्ण व्याधिदौर्भाग्य शोकमुक्ताः, तत्र विरद्धमङ्गं व्यङ्गम् विकारवानवयवः दुर्वर्णों विकृतशरीरच्छविः, व्याधिः-ज्वरादिः दौर्भाग्यं शोकश्च एतैर्मुक्ता रहिता स्तास्तथा, तेषां व्यङ्गादेः स्वप्नेप्यसंभवात् 'उच्चत्तेणय नराण थोवृणमूसियाओ' उच्चत्वेन च नराणां स्तोकेनोच्छ्रिताः, उच्चत्वेन च नराणां स्तोकमनं यथा स्यात्तथा उच्छ्रिताः किश्चिन्यूनाष्ट धनुः शतोच्छ्रया इत्यर्थः 'सभाव सिंगारा गारचारुवेसा' स्वभाव जन्य एव शृङ्गारः स्वभावशृङ्गारः प्रमाणो. पेत यथावस्थितसुन्दर शरीरावयवजन्यसौन्दर्यवान् नतु बाह्यवस्त्रभृषणादि जन्यः, प्रासाद २६, गिरि-वर-श्रेष्ठ पर्वत २७, दर्पण २८, ललित गज श्रेष्ठ २९, वृषभ ३०, सिंह ३१, एवं चमर ३२, इन सामुद्रिक शास्त्र प्रसिद्ध श्रेष्ठ बत्तीस लक्षणों को ये धारण करती हैं 'हंससरिसगइओ' हंस के जैसी इनकी गति-चाल होती है 'कोइलमधुर गिरसुस्सराओ' कोयल की मधुरवाणी के जैसा इनका सुन्दर मधुर स्वर होता है-'सव्वस्स अणुनयाओ ववगयवलिपलिया, वंगदुव्वण वाही दोभग्गसोगमुक्काओ' ये बहुत ही अनुपम सुन्दर होती हैं ये सबके लिये अनुनयविनयवाली होती है इनके शरीर में किंचित् भी शैथिल्य समुद्भव चर्म विकार नहीं होता अर्थात् शरीर में इनके खाल का कुकर-संकोच जाना रूप विकार नहीं होता। बाल इनके सफेद नहीं होते हैं-इन के अंग विकृत नहीं होते हैं अर्थात् हीनाधिक होने रूप विकार से रहित होते हैं-शरीर की छवि में किसी भी प्रकार की विकृति नहीं आती है व्याधि से ज्वरादि रोग से ये सदा मुक्त रहती हैं दुर्भाग्य का इनके लेशमात्र भी नहीं होता है शोक का इनके नामो निशान भी नहीं होता है अर्थात् ये सदा हर्षित પ્રાસાદ ૨૯, ગિરિવર શ્રેષ્ઠ પર્વત ૨૭, દર્પણ ૨૮, લલિતગજ-શ્રેષ્ઠ હાથી ૨૯ વૃષભ ૩૦, સિંહ ૩૧, અને ચમાર ૩૨, આ સામુદ્રિક શાસ્ત્રમાં પ્રસિદ્ધ શ્રેષ્ઠ सेवा मत्रीसे सक्षन तमे। धा२६५ ३२ छ. 'हंस सरिसगइओ' सना २वी तमानी गति-यास हाय छे. 'कोइल मधुरगिरसुस्सराओ' यसनी भ५२ पाएन । सु४२ मन भ७२ तमानी २१२-४ हाय छे. 'सव्वस्स अणुनयाओ ववगयवलिपलिया, वंग दुवण वाही दोभग्गसोगमुक्काओ' તેઓ ઘણીજ અનુપમ સુંદર હોય છે. તેઓ બધા પ્રત્યે વિનયવાળી હોય છે. તેઓના શરીરમાં જરાય શિથિલતા યુકત ચર્મવિકારે હોતા નથી. અર્થાત્ તેમના શરીરમાં ચામડી સંકોચાઈ જવારૂપ વિકાર હોતે નથી. તેઓના વાળ સફેદ હોતા નથી, તેઓના અંગ વિકૃત હોતા નથી. અર્થાત્ જૂનાધિક હેવારૂપ
જીવાભિગમસૂત્ર