Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.३९ एकोषकस्थानामाहारादिकम् __६२३ उववेए' वर्णेन उपवेतं युक्तम् 'जाव फासेणं' यावत्स्पर्शेन, अत्र यावत्पदेन गन्धेन युक्तं, गौतमः पृच्छति 'भवेयारूवे सिया' भवेदेतद्रूपः पृथिव्या आस्वादः स्यात् कदाचित् किमिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम! 'नो इणढे समढे' नायमर्थः समर्थः, नहि गुडादि रससदृशो रसः पृथिव्याः किन्तु 'तीसे णं पुढवीए' तस्याः खलु पृथिव्याः 'एत्तो इट्ठयराए चेव जाव मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्ते' इतो गुडादिभ्य इष्टतर एव यावत् कान्ततर एव प्रियतर एव मनोज्ञतर एव मनोऽमतर एव आस्वादः खलु प्रज्ञप्तः । तेसि णं भंते ! पुष्पफलाणं केरिसए आसाए पण्णत्ते' तेषां खलु भदन्त ! पुष्पफलानां कीदृशः आस्वादो रसः प्रज्ञप्त:-कथित इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'से जहा णामए' है और इस गोक्षीर का जैसा अनुपम स्वाद होता है श्रीगौतमस्वामी प्रमुश्री से पूछते हैं तो क्या हे भदन्त! 'इमेयारवे सिया' इसप्रकार का स्वाद वहां की पृथिवी का होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं'णो इणटे समडे हे गौतम! इस कथन का ऐसा अर्थ समर्थ नहीं होता है-अर्थात् गुड आदि के रस जैसास्वाद वहां की पृथिवी का नहीं होता है-'तीसेणं पुढवीए एत्तो इतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्ते' किन्तु उस उस पृथिवी का स्वाद तो-इनके रम की अपेक्षा भी अधिक इष्टतर ही होता है यावत्-कान्त तर ही होता है प्रियतर ही होता है मनोज्ञतर ही होता है और मनोऽम तर ही होता है 'तीसेणं भंते ! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पण्णत्ते' हे भदन्त ! वहां के उन पुप्प एवं फलों का स्वाद कैसा होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते ગાયનું દૂધ એક વિશેષ પ્રકારના વર્ણથી, ગંધથી રસથી સ્પર્શથી યુક્ત બની જાય છે, આ ગો દુગ્ધને જે અનુપમ રવાદ હોય છે, શ્રીગૌતમસ્વામી પ્રભુશ્રીને पूछे छे , मापन् 'इमेयारूवेसिया' तो शुमा। २२। स्वाह त्यांनी वाना हाय छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४३ छ ‘णो इणद्वे समढे'
ગૌતમ! આ કથનને એ અર્થ સમર્થિત થતું નથી. અર્થાત ગોળ विरेन। २सना ॥ २वा त्यांनी पृथ्वीना होत नथी. 'तीसे णं पुढवीए एत्तो इद्रतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्ते' परंतु से પૃથ્વીને સ્વાદ તે તેઓને તેના રસ કરતાં પણ વધારે ઈષ્ટતરજ હોય છે. યાવત કાતરજ હોય છે. પ્રિયતરજ હોય છે. મનેzતરજ હોય છે. અને भनाभत२०१ हाय छे. 'तेसिं णं भंते ! पुप्पफलाण केरिसए आसाए पण्णते' હે ભગવન ત્યાંના એ પુષ્પ અને ફળને રવાદ કેવો હોય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रमुश्री ४३ छ , 'गोयमा ! से जहानामए चाउरंत चक्कवद्विस्स कल्लाणे
જીવાભિગમસૂત્ર