Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ३५ एकोरुकद्वीपस्याकारादिनिरूपणम्
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सूर्यादिवदेव ते ज्योतिष्का अपि द्रुमगणाः, 'अणेग बहुविविहवीससा परिण या उज्जो विही उववेया' उनोक बहुविविध वित्रसापरिणतेन उद्योत विधिनाउद्योत प्रकारेण उपपेता युक्ताः 'सुहलेस्सा' शुभलेश्याः, अथ यदि सूर्यमण्डलवत्
वृक्षा अपि प्रकाशकास्तर्हि सूर्यादिवदेव दुर्निरीक्ष्यत्व तीव्रत्व जङ्गमत्वादि धर्मोपेता अपि ते वृक्षा भविष्यन्तीत्यत आह- 'सुहलेस्सा' शुभलेश्याः शुभाः तेजः पद्म शुक्लरूपाः सुखा सुखकारिणी वा लेश्या येषां ते शुभलेश्याः सुखलेश्या वा, तथा ता अपि 'मंदलेस्सा' मन्दा तीव्रता रहिता लेश्या येषां ते मन्दलेश्याः, अतएव 'मंदावलेस्सा' मन्दातपलेश्याः, मन्दातपः- मन्दो य आतपः सूर्यप्रकाशस्तत्सदृशा लेश्या येषां ते मन्दातपलेश्याः, सूर्यमण्डलाद्यातपस्य तेजो यथा दुस्सहं भवति न तथा तेषां वृक्षाणां तेजो दुःसह मित्यर्थः, 'कूडा इव ठाणfoया' कूटानीव स्थानस्थिताः, तत्र - कूटानि पर्वतादि शृङ्गाणि तद्वत् स्थानस्थिताः स्थिरा इत्यर्थः, समयक्षेत्र बहिर्वर्त्तिनो ज्योतिष्का इव ते वृक्षा अवभासयविविहवीससापरिणयाए उज्जोयविहीए उववेया' इस प्रकार की व स्वभाव से ही परिणत होने वाली अनेक रूपवाली उद्योत विधि से युक्त होते हैं। 'सुहलेस्सा' इनकी लेइया सुख कारिणी है. सूर्यादिक के प्रकाश जैसी दुर्निरीक्ष्य नहीं है आतापकारिणी नहीं है 'मंदलेस्सा' किन्तु मंद है तथा 'मंदायवलेस्सा' इनका जो आताप है वह भी मन्द है तीव्र नहीं है सूर्यातप समयानुसार दुःसह भी होता है वैसा - इनका आताप प्रकाश दुःसह नहीं है ' कूडा इव ठाणठिया ' जिस प्रकार पर्वतादि के शिखर एक स्थान पर बने रहते हैं-खडे रहते हैं - अचल रहते हैं - अर्थात् समय क्षेत्र से बाहर रहा हुवा जैसा ज्योतिष्क मण्डल एक स्थान पर अचल कहा गया है वैसे ही ये भी अपने
तेन्स्वी छे. 'अणेगबहु विविहवीससां परिणयाए उज्जोयविहीए उववेया' मा પ્રકારના સ્વભાવથીજ પરિણત થવાવાળા અનેક રૂપવાળી ઉદ્યોત વિધિથી યુકત डोय छे. 'सुइलेस्सा' तेभनी बेश्या सुखारिणी होय छे. सूर्य विगेरेना प्राશની જેમ ન જોઈ શકાય તેવી તીવ્રરૂપ હેાતી નથી. તેમ તાપ પહોંચાડવાવાળી पशु नथी. 'मंदलेस्सा' तेनी बेश्या सुख दुरवावाजी छे, पशु संह छे. तथा 'मंदावलेस्सा' तेने, ने आता छे, ते पशु संह छे, तीव्र नथी. सूर्यना તડકે સમય પ્રમાણે અસહ્ય પણ હોય છે. આના असा होतो नथी. 'कूडाइव ठाणठिया' प्रेम पर्वत સ્થાન પરજ સ્થિર રહે છે. અર્થાત્ અચલ રહે છે, બહાર રહેલ જેમ જ્યોતિષ્યમંડળ પણ એક સ્થાન પર
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જીવાભિગમસૂત્ર
તપનામ પ્રકાશ એવા विगेरेना शिमरो भे
અર્થાત્ સમય ક્ષેત્રની અચળ રહે છે, એજ