Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.३२ सम्यग्मिथ्याक्रिययोरेंकदानिषेधः ४८३ एवं खलु एको जीव एकेन समयेनैकां क्रिणं प्रकरोति तद्यथा- सम्यक्त्वक्रियां वा मिथ्यात्वक्रियां वा, यस्मिन् समये सम्यक्त्व क्रियां प्रकरोति नो तस्मिन् समये मिथ्यात्वक्रियां प्रकरोति, तदेव यस्मिन् समये मिथ्यात्वक्रियां प्रकरोति नो तस्मिन् समये सम्यक्त्वक्रियां प्रकरोति , सम्यक्त्वक्रियां प्रकरणतया नो मिथ्यात्वक्रियां प्रकरोति, मिथ्यात्वक्रियां प्रकरणतया नो सम्यक्त्वक्रियां प्रकरोति, एवं खलु एको जीव एकेन समयेन एकां क्रियां प्रकरोति तद्यथासम्यक्त्वक्रियां वा मिथ्यात्वक्रियां वा ॥३२॥ ___टीका-'अण्ण उत्थियाणं भंते' अन्यथिकाः खलु भदन्त ! अन्ययूथिका:परतीथिकाः चरकादय:-बौद्धमतचादिन ‘एवं आइक्खति' एवम्-वक्ष्यमाण प्रकारेण आख्यान्ति-आचक्षते सामान्येन 'एवं भासेंति' एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण भाषन्ते-स्वशिष्यान् श्रवण प्रत्यभिमुखानवबुद्धया विस्तरेण व्यक्तं कथयन्ति, ‘एवं __ इस तरह के प्रतिपादन से यही निष्कर्ष निकलता है कि जो अवि. शुद्ध लेश्या वाला जीव होता है-वह पदार्थ के यथार्थ ज्ञान से विहीन रहता है और जो विशुद्ध लेश्या वाला जीव होता है वह पदार्थ के सम्यग्रज्ञान से युक्त होता है अतः शुद्ध जानना और शुद्ध देखना ज्ञान में लेश्या की विशुद्धि के आधीन है लेश्या की अविशुद्धि वाला जीव ज्ञान की सम्यक् स्थिति से शून्य रहता है अतः अब सूत्रकार यह प्रकट कर रहे हैं कि सम्पकू क्रिया और मिथ्पाक्रिया ये दो एक काल में एक जीव में नहीं होती है इसी बात को अन्य तैर्थिकों की प्ररूपणा को बताते हुए स्पष्ट करते हैं-'अण्णउत्थिया ण भंते' इत्यादि ॥सू० ३२।
टीकार्थ-गौतम स्वामीने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है 'अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति' हे भदन्त ! अन्यतैर्थिकोंने ऐसा कहा है अपने
આ રીતના પ્રતિપાદનથી એજ સારાંશ નીકળે છે કે જે અવિશદ્ધ લેશ્યાવાળે હોય છે. તે પદાર્થને યથાર્થ જ્ઞાનથી શૂન્ય રહે છે. અને તે વિશુદ્ધ વેશ્યાવાળે જીવ હોય છે, તે પદાર્થના સમ્પ્રજ્ઞાનથી યુકત હોય છે, તેથી શુદ્ધ જાણવું અને શુદ્ધ દેખવું તે જ્ઞાનમાં વેશ્યાની વિશુદ્ધિને આધીન છે.
લેશ્યાની અવિશુદ્ધિવાળે જીવ જ્ઞાનની સમ્યક્ સ્થિતિથી રહિત હોય છે. તેથી હવે સૂત્રકાર સમ્યક્ ક્રિયા અને મિથ્યા કિયા એ બે એક જ કાળમાં એક જીવમાં હોતા નથી. એ વાત અન્ય તીથિકની પ્રરૂપણા બતાवीन २५८ ३३ छ.-'अन्न उत्थिया णं भते !' त्यादि
- श्रीगौतमस्वामी प्रभुश्रीन से पूछयु छ है 'अन्नउत्थिया णं भते एवमाइक्खति' है. सावन् अन्य तीये मे :( छ, तमामे
જીવાભિગમસૂત્ર