Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
णीय' अवधिज्ञानिनश्च 'जे अन्नाणी' येत्वज्ञानिनः, 'अत्थे गइया दुअन्नाणी ' सन्त्येhi द्वयज्ञानिनः 'अत्थे गइया ति अन्नाणी' सन्त्येक के व्यज्ञानिनः 'जे दुअन्नाणी
नियमा मइ अन्नाणी य सुय अन्नाणीय' तत्र ये द्वयज्ञानिनस्ते नियमतो मत्य ज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनश्च ये असंज्ञिपञ्चेन्द्रियेभ्य उत्पद्यन्ते ते अपर्याप्तावस्थायां द्वय ज्ञानिनः शेष काले तु तेषामपि व्यज्ञानिता 'जे ति अन्नाणी विभंगनाणी वि' ये तु व्यज्ञानिनः ते नियमा मइ अन्नाणी सुय अन्नाणी ते नियमतो मत्यज्ञानोनः श्रुताज्ञानिनो विभङ्ग ज्ञानिनोऽपि भवन्तिति । सेसा णं वाले होते हैं - 'तं जहा' जैसे- 'आभिणियो हियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी' मतिज्ञान वाले होते हैं श्रुतज्ञान वाले होते हैं और अवधि ज्ञान वाले होते है । जे अन्नाणी' और जो अज्ञानी होते हैं वे 'अत्थेगइया दुअन्नाणी ' कितनेक तो दो अज्ञान वाले होते है ' अत्थेगइया ति अन्नाणी' और कितनेक तीन अज्ञान वाले होते हैं । 'जे दुअन्नाणी' जो नारक दो अज्ञान वाले होते हैं - वे 'नियमा मइ अन्नाणी य सुय अनाणी य' नियम से एक मतिअज्ञानवाले और दुसरे श्रुत अज्ञानवाले होते हैं तथा - 'जे ति अन्नाणी ते नियमा-मइ अन्नाणी, सुय अन्नाणी विभंगानाणी वि'जो नारको तीन अज्ञान वाले होते हैं वे नियम से मति अज्ञान वाले होते हैं, श्रुत अज्ञान वाले होते हैं, और विभंगज्ञान वाले होते हैं । जो जीव असंज्ञी पञ्चेन्द्रियों में से आकर के उत्पन्न होते हैं वे अपर्याप्तावस्था में ही दो अज्ञान वाले होते है और पीछे के समय में तो वे भी तीन अज्ञान वाले हो जाते हैं । इसीलिये कितनेक नारकी दो अज्ञान वाले होते हैं ऐसा कहा गया है । 'सेसाण
बियि नाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी' भतिज्ञान वाजा होय छे. श्रुतज्ञान बाजा होय छे, भने अवधिज्ञानी वाजा होय छे, 'जे अन्नाणी' भने । अज्ञानी होय छे, तेथे नियमथी 'अत्थे गइया ति अन्नाणी' भने डेंटला त्र ज्ञानवाण होय छे, 'जे दु अण्णाणी' ने नारो मे अज्ञान वाजा होय छे, तेथे। 'नियमा मइ अन्नाणी य सुय अन्नाणीय' नियमथी नभति अज्ञ नवाजा भने श्रुत अज्ञान बाजा छे. 'जे ति अन्नाणी ते नियमा मइ अन्नाणी सुय अण्णाणी विभंग नाणी' ने नारडीयो त्राशु अज्ञान वाजा होय छे. तेथ्यो नियमथी भति अज्ञान વાળા હાય છે, શ્વેત અજ્ઞાન વાળા હોય છે અને વિભગજ્ઞાન વાળા હાય છે. જે જીવા અસ'ની પંચેન્દ્રિયામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, તે અપર્યાપ્ત અવસ્થામાં જ એ અજ્ઞાન વાળા હોય છે, અને પછીના સમયમાં તે તે પણ ત્રણ અજ્ઞાનવાળા થઈ જાય છે. તેથી જ કેટલાક નારકીચેા એ અજ્ઞાનવાળા હાય છે, તેમ કહેવામાં આવ્યું છે.
જીવાભિગમસૂત્ર