Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
धृतिं वा चित्तस्वास्थ्यम् ' मई वा' मति वा सम्यगीहापोहरूपाम् उवलभेज्जा' उपलभेत प्राप्नुयात् ततः 'सीए' शीतः बाह्य शरीरशती भावात् 'सीईभू' शीतीभूतः शरीरान्तरपि निर्वृतीभूतः सन् 'संकममाणे' सम् - एकीभावेन क्रमन् - गच्छन् 'सायासोक्खबहुले यानि बिहरिज्जा' सातासौख्यबहुलथापि सात माहाद स्तत्प्रधानं सौख्यं न तु अभिमानजनित माहूलादविरहितम् सातसौख्यबहुलवापि विरहेत् - स्वेच्छया परिभ्रमेदिति । ' एवामेव गोयमा " एवम् अनेन पूर्वकथितदृष्टान्तप्रकारेण हे गौतम! 'असम्भावपटूवणा ए' असदभाव प्रस्थापनया - असद्भावकल्पनया नेदं यक्ष्यणाणमभूत् केवलं नरकगतोष्ण वेदनायाः याथार्थ्य प्रतिपत्तये असत्कल्प्यने इत्यर्थः, 'उसिण है । इस तरह क्षण मात्रकी निद्रा के लाभ से स्वस्थ हुआ वह हाथी 'सईवा' अपनी स्मरण शक्ति को 'रतिंवा' आनन्द को 'धिवा' धैर्य को चित्त की स्वस्थता को - 'उवल भेज्जा' पा लेता है जब गर्मी से हाथी आकुल व्याकुल हो रहा था तो उस स्थिति में उसकी स्मृति रति आदि सब मन्द पड गये थे अब जब उसे चैन प्राप्त हुआ तो बातें उसे यदि आने लगी चित्त में प्रफुल्लता आ गई और मन में धैर्य जग गया इस तरह शरीर में शीतलता के प्रभाव से 'सीयभूए' स्वयं शीती भूत हुआ वह गजराज 'संकप्रमाणे २, 'अब वहां से चल देना है और 'साया सोक्खाबहुयावि विहरिज्जा' चित्त में जगी हुई एक प्रकार की आहलाद रूप प्रसन्नता रूप सुख परिणति से अपने आपको आनन्द विभोर मानने लगता है और इठलाता हुआ इधर उधर घूमने लगता है 'एवामेव गोयमा !' इसी तरह से हे गौतम! 'असम्भाव पट्टवणाए '
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ते हाथी 'सइवा' पोतानी स्मरण शक्तिने 'रतिं वा' मानं हने 'घिरं वा' धैर्यने वित्तनी स्वस्थताने 'उवल भेज्जा' या हे, न्यारे गर्मी थी ते हाथी आज વ્યાકુળ થયેા હતા ત્યારે એ સ્થિતિમાં તેની સ્મૃતિ રતિ વિગેરે મંદ થઇ ગયા હતા અને જ્યારે તેને આ રીતે ચેતન પ્રાપ્ત થયું ત્યારે તેને અનેક વાતે યાદ આવવા લાગી. ચિત્તમાં પ્રફુલ્લ પણું આવી ગયું અને મનમાં ધૈર્ય घ्यावी यु. आा रीते माह्य शरीरमा ठेउना प्रलावधी 'सीयभूए' पोते शीती लूत थयेस ते रान 'संकममाणे, संकममाणे' ते त्यांथी न्यावा लागे छे. ने 'सायासोकख बहुलेया वि विहरिज्जा' शित्तमां लगेसी येऊ अारनी આહલાદ રૂપ પ્રસન્નતા રૂપ સુખ પરિણતીથી પાતે પાતાને આનંદ રૂપ માનવા लागे छे. याने उडते ते याम तेम ३२वा लागे छे. 'एवामेव गोयमा । ' येन प्रमाणे हे गौतम! 'असम्भावपटुवणाए' अस लाव अपनाने सहने
જીવાભિગમસૂત્ર