Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२७८
आचारागसूत्रे इमे स्पर्शन-रसनोभयेन्द्रियाः द्वीन्द्रिया जीवा असंख्याताः।
(२) त्रीन्द्रियाःत्रीन्द्रियाः पिपीलिकादयः-पिपीलिका-रोहिणिका-कुन्थु-यूक-लिक्ष-मत्कुणमत्कोटक-शुलशुल-गोपदिका-खजूरा-कर्णशूलादयः प्रसिद्धाः । इमे स्पर्शन-रसनघाणेन्द्रियाः । त्रीन्द्रिया असंख्याताः।
(३) चतुरिन्द्रियाःचतुरिन्द्रियाः भ्रमरादयः-भ्रमर-वटर-मक्षिका-दंश-मशक-वृश्चिक-कीटकसारी-पतङ्गादयः प्रसिद्धाः। इमे स्पर्शन-रसन-घ्राण-चक्षु-रिन्द्रियाः । चतुरिन्द्रिया अपि असंख्याताः। इन्द्रियां होती हैं । द्वीन्द्रिय जीव असंख्यात हैं।
___(२) त्रीन्द्रियपिपीलिका (कीडी), रोहिणिका, कुन्थुवा, जू, लीख, खटमल, मकोडा, शुलशुल, गोपदिका, खजूरा, कर्णशूल, आदि त्रीन्द्रिय जीव प्रसिद्ध हैं। इनके स्पर्शन रसना और घ्राण, ये तीन इन्द्रिया होती हैं । त्रीन्द्रिय जीव असंख्यात हैं।
(३) चतुरिन्द्रियभ्रमर, वटर, मक्खी, डांस, मच्छर, विच्छू, कीट, पतङ्ग, कंसारी, आदि चौइन्द्रिय जीव प्रसिद्ध हैं। इनके स्पर्शन, रसना, प्राण, और चक्षु, ये चार इन्द्रियाँ होती हैं । ये जीव असंख्यात हैं। રસના એ બે ઇન્દ્રિયે વાળા જી અસંખ્યાત છે.
(२) श्रीन्द्रियछी, शहिणि, थुपा, j, दीप, भiss, मी, शुलशुस, गोपहिया, કાનખજૂરા, કર્ણફૂલ આદિ ત્રીન્દ્રિય જીવ પ્રસિદ્ધ છે. તેને સ્પર્શન, રસના, અને ઘાણ. આ ત્રણ ઈન્દ્રિય હોય છે. ત્રીન્દ્રિય જીવ અસંખ્યાત છે.
(3) तुरिन्द्रिय___सभरा, १८२, भाभी, iस, भ७२, वी छी, हीट, यत, सारी माहि यार ઈન્દ્રિયવાળા જીવ પ્રસિદ્ધ છે. તેમને સ્પર્શન રસના, ઘાણ અને નેત્ર આ ચાર ઈન્દ્રિય હોય છે. એ જીવ અસંખ્યાત છે.
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧