Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारागसूत्रे ये उदकशस्त्र प्रयुआनाः षड्जीवनिकायरूपं लोकं सर्वमेव विहिंसन्ति, ते द्रव्यलिगिनो नरकनिगोदादिनानाविधदुःखज्वालमालाकुले दीर्घससारे परिभ्रमन्ति, उक्तश्च
" सावज्जपूयकारी, सावज्ज उवदिसति जे अण्णू । आउक्कायवहाओ, भमंति ते दीहसंसारे ॥१॥" ॥ सू०६॥ अथ सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामिनं प्राह 'तस्थ' इत्यादि ।
मूलम्तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से
जो लोग जलशस्त्र का प्रयोग करते हुए षट्काय के समस्त जीवों की विराधना करते हैं वे द्रव्यलिंगी नरक आदि के नाना प्रकारके दुःखों की ज्वालाओं के समूह से व्याप्त लम्बे संसार में चारों ओर चक्कर लगाते हैं। कहा भी है
" जो पुरुष ज्ञानरहित होकर सावद्य का उपदेश देते हैं वे, और सावद्य पूजा करने वाले हैं वे अप्काय की हिंसा से दीर्घ संसार में भ्रमण करते हैं" ॥ सू. ६॥
सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी से कहते हैं-' तत्थ' इत्यादि।
मूलार्थ--भगवान् ने परिज्ञा का प्रतिबोध दिया है । जो इस जीवन के सुख के लिए अपनी वन्दना, मानना, पूजा, जन्म-मरण से छुटकारा, तथा दुःखों का नाश
જે લેક જલશસ્ત્રનો પ્રયોગ કરીને ષકાયના તમામ જીવોની વિરાધના કરે છે તે દ્રવ્યલિંગી, નરક નિદ આદિના નાના પ્રકારના દુઃખની જવાલાઓના સમૂહથી વ્યાપ્ત લાંબા સંસારમાં ચારેય તરફ ચકકર લગાવે છે. કહ્યું છે કે
“જે પુરુષ જ્ઞાનરહિત થઈને સાવધને ઉપદેશ આપે છે તે, અને સાવદ્ય ५४२वा वध-ein संसारमा श्रमाय ४२ छ.” ॥ १॥ (सू. १)
सूधी स्वामी भ्यू स्वामीन ४९ छ-' तत्थ' त्यादि
મૂલાઈ-ભગવાને પરિજ્ઞાને બોધ આપે છે. જે આ જીવનના સુખ માટે પોતાની વંદના, માન્યતા, પૂજા, જન્મ-મરણથી મુક્તિ તથા દુખેનાં નિવારણ માટે તે
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧