Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 684
________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य. १ उ. ६ मू. ४ शस्त्रभेदनिरूपणम् ६६१ द्विविधम् , तत्र-द्रव्यशस्त्रं-स्वकाय-परकायो-भयकायभेदात् त्रिविधम् । तत्रस्वकायशस्त्रेत्रसकायस्य त्रसकायः,यथा-मृगादीनां व्याधकुक्कुरादयः,मनुष्यादीनां मनुष्यादयः। परकायशस्त्रम्-पाषाणजलाग्निलगुडखङ्गतोमरछरिकादयः । उभयकायशस्त्रम्-लगुडखगादिधारिणो मनुष्यादयः । भावशस्त्रं तु त्रसकायं प्रति मनोवाक्कायानां दुष्प्रणिधानम् । त्रसकायसमारम्भेण, प्रसासनशीलः काया शरीरं यस्य स त्रसकायस्तस्य समारम्भः पीडाकरः सावधव्यापारस्तेन, इमंत्रसकायं विहिंसन्ति । त्रसकायहिंसायां प्रवृत्ताः खलु षड्जीवनिकायरूपं लोकं सर्वमेव विहिंसन्तीत्याह-' त्रसकायशस्त्रम्.' इत्यादि । त्रसकायशस्वंत्रसजीवोपमर्दकं शस्त्रं पूर्वोक्तप्रकार, समारम्भमाणाः त्रसकायं प्रति प्रयुजानाः अन्यान्त्रसकायभिन्नान् भेद हैं-स्वकाय, परकाय, और उभयकाय । त्रसकाय का त्रसकाय स्वकायशस्त्र हैं, जैसे मृग आदि के लिए व्याध, कुत्ता आदि, मनुष्य के लिए मनुष्य आदि । परकायशस्त्र जैसे पत्थर, जल, अग्नि, लकडी, तलबार, तोमर, शेरी आदि । उभयकायशस्त्र जैसे लाठी, तलवार आदि कारण करने वाला मनुष्य आदि । त्रसकाय के प्रति मन, वचन, और कायका अप्रशस्त व्यापार होना भावशस्त्र है । इन नाना प्रकार के शस्त्रों से त्रसकाय का समारंभ करके लोग त्रसकाय को पीडा पहुँचाते है। त्रसकाय की हिंसा में प्रवृत्ति करने वाले छह प्रकार के जीवनिकायरूप सम्पूर्ण लोक की हिंसा करते हैं, यह बात कहते हैं-त्रसकाय में, त्रसकाय की हिंसा करने वाले शस्त्रों का जो प्रयोग करते हैं वे त्रसकाय के अतिरिक्त अनेक प्रकार के पृथ्वीकाय आदि પરકાય અને ઉભયકાય, ત્રસકાયનું ત્રસકાય તે સ્વાયશસ્ત્ર છે, જેમ મૃગ આદિને માટે વાઘ-કુતરા આદિ, મનુષ્યને માટે મનુષ્ય આદિ. પરકાયશસ્ત્ર, જેમકે પથ્થર, ora, मनि, aisa, त२१॥२, माणु, ७२री माहि. मययशस्त्र, भ3-131, તલવાર આદિ ધારણ કરવાવાળા મનુષ્ય આદિ. ત્રસકાયના પ્રતિ મન, વચન અને કાયાનો અપ્રશસ્ત વ્યાપાર થ તે ભાવશસ્ત્ર છે. તે નાના પ્રકારનાં શથી ત્રસકાયને સમારંભ કરીને લેક ત્રસકાયને પીડા પહોંચાડે છે. ત્રસકાયની હિંસામાં પ્રવૃત્તિ કરવાવાળા છ પ્રકારના જવનિકાયરૂપ સપૂર્ણ લોકની હિંસા કરે છે. એ વાત કહે છે–ત્રસકાયમાં, ત્રસકાયની હિંસા કરવાવાળા–શને જે પ્રયોગ કરે છે, તે ત્રસકાયથી જૂદા અનેક પ્રકારના પૃથ્વીકાય આદિ પાંચ સ્થાવર શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧

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