Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारचिन्तामणि -टीका अध्य०१ उ.५ सू. ६ वनस्पतिकायहिंसाकारणानि ६२९
मूलम् —
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । इमस्स चैव जीवियस्स परिवंदणमाण- पूयणाए, जाइमरणमोयणाए, दुःक्खपडिघायहेउं से सयमेव वणस्सइसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा वणस्सइसत्थं समारंभावेइ, अण्णे वणस्सइसत्थं समारंभमाणे समजा, तं से अहियाए, तं से अबोहीए | सू० ६ ॥
छाया-
तत्र खलु भगवता परिज्ञा प्रवेदिता । अस्य चैव जीवितस्य परिवन्दन - मानन - पूजनाय, जातिमरणमोचनाय, दुःखप्रतिघातहेतुं स स्वयमेव वनस्पतिशास्त्रं समारभते, अन्यैर्वा वनस्पतिशस्त्रं समारम्भयति, अन्यान् वा वनस्पतिशस्त्रं समारभमाणान् समनुजानाति, तत् तस्याहिताय, तत् तस्याबोधये ॥ सू० ६ ॥
टीका
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तत्र = वनस्पतिकायसमारम्भे, भगवता - श्रीमहावीरेण, परिज्ञा = सम्यगव - बोधः खलु निश्चयेन प्रवेदिता प्रतिबोधिता - कर्मबन्धसमुच्छेदार्थं जीवेन परि
मूलार्थ - - वनस्पतिकाय के आरंभ के संबंध में भगवान् ने सम्यक् बोध दिया है । इस जीवन के वन्दन, मानन और पूजन के लिए, जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए तथा दुःखों का विनाश करने के लिए स्वयं वनस्पतिका यशस्त्र का आरंभ करता है, दूसरों से आरंभ करता और आरंभ करने वाले दूसरों का अनुमोदन करता है । वह आरंभ अहित के लिए, उसकी अबोधि के लिए होता है | सू० ६ ॥
उस के
टीकार्थ -- वनस्पतिकाय के आरंभ के विषय में भगवान् श्री महावीर स्वामीने सम्यक् उपदेश दिया है । अर्थात् भगवान ने बतलाया है कि - कर्मबंध को नष्ट करने के
મૂલા—વનસ્પતિકાયના આરંભના સમ્બંધમાં ભગવાને સમ્યક્ ખાધ આપ્યા छे. या वनना वहन, भानन, भने पूजन भाटे, नन्भ-भरणुथी छुटवाने भाटे તથા દુ:ખાના વિનાશ કરવા માટે સ્વયં વનસ્પતિકાયશસ્ત્રના આરંભ કરે છે, ખીજા પાસે આરભ કરાવે છે, અને આરભ કરવાવાળા બીજાને અનુમેાદન આપે છે. તે आरंभ तेना अडित भाटे तेन तेनी सोधि भाटे होय छे. ॥ सू० ६ ॥
ટીકાથ—વનસ્પતિકાયના આરંભના વિષયમાં ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીએ સમ્યક્ ઉપદેશ આપ્યા છે. અર્થાત્ ભગવાને બતાવ્યું છે કેઃ-કમબંધને નષ્ટ કરવા માટે
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર ઃ ૧