Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारचिन्तामणि -टीका अध्य. १ उ. ४ सू. २ अग्निकायखेदज्ञः
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उक्तमर्थे दृढीक विपर्ययेण पुनः कथयति - 'योऽशस्त्रस्य खेदज्ञः स दीर्घलोकशस्त्रस्य खेदज्ञः' इति, व्याख्या पूर्ववत् । ॥ सू० २ ॥ ॥ शस्त्रद्वारम् ॥
ननु येन शस्त्रेण वह्निः खिद्यते, तत् केन दृष्टम् ? अपि चाशस्त्रं संयमस्वरूपमिति केन दृष्टम् ? इति जिज्ञासायामाह – ' वीरेहिं '. इत्यादि ।
मूलम् -
वीरेहिं एय अभिभूय दिडं, संजएहिं सया जएहिं सया अप्पमत्तेर्हि || ३ ||
छाया
वीरैः एतद् अभिभूय दृष्टम्, संयतैः सदा यतैः सदा अप्रमत्तैः ॥ ०३॥
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इसी बात को दृढ करने के उद्देश्य से पुनः अन्यरूप से कहते हैं कि जो अशस्त्र (संयम) के खेद को जानता है वह दीर्घलोकशस्त्र के खेद को जानता है । इस की व्याख्या पहले के समान ही समझनी चाहिए | सू० २ ॥
शंका होती है कि - जिस देखा है और संयमरूप अशस्त्र
'वीरेहिं'. इत्यादि ।
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शस्त्रद्वार
शस्त्र से अग्नि को खेद होता है वह किस ने किस ने देखा है ? इसके उत्तर कहते हैं:
मूलार्थ — परिषह उपसर्ग आदि को जीतनेवाले संयत सदा यतनावान् और सदा अप्रमत्त रहने वाले वीर पुरुषों ने यह देखा है || सू० ३ ॥
આ વાતને દૃઢ કરવાના ઉદ્દેશથી ફરી ખીજા રૂપથી કહે છે કે જે અશસ્ર (સયમ)ના ખેદને જાણે છે તે દીલેાકશસ્ત્રના પેદને જાણે છે. તેની વ્યાખ્યા પ્રથમ डेली छे ते प्रमाणे समन्न्वी लेहो. (सू. २ )
शस्त्रद्वार
શંકા થાય છે કે જે શસ્ત્રથી અગ્નિને ખેદ થાય છે તે કાણે જોયુ છે ? અને संयभरूप यशस्त्र आलेले छे ? तेना उत्तरमा ४ छे:- 'वीरेहिं'. त्याहि.
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર ઃ ૧
भूसार्थ - परीषद्ध-उपसर्ग साहिने कतवावाणा, संयत-संयभी सहा यतनाવાન્ અને સદા અપ્રમત્ત રહેવાવાળા વીરપુરુષાએ તે જોયુ છે. (સૂ. ૩)